क्या इंडिगो फ्लाइट संकट पर सीजेआई को पत्र लिखकर तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई?
सारांश
Key Takeaways
- इंडिगो ने १,००० से अधिक उड़ानें रद्द कीं।
- यात्री अनुच्छेद २१ के उल्लंघन का सामना कर रहे हैं।
- सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई है।
- कई यात्रियों को आवश्यक सुविधाएं नहीं मिलीं।
- इंडिगो की उड़ानें लगातार बाधित हो रही हैं।
नई दिल्ली, ६ दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। देश की प्रमुख एयरलाइन इंडिगो की उड़ानों में बड़े पैमाने पर रद्दीकरण की स्थिति के चलते अब सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है। सुप्रीम कोर्ट के वकील नरेंद्र मिश्रा ने मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) को एक पत्र भेजकर इस संकट पर स्वतः संज्ञान लेने और तात्कालिक हस्तक्षेप की मांग की है।
पत्र में प्रस्तुत याचिका में कहा गया है कि इंडिगो ने हाल के दिनों में १,००० से अधिक उड़ानें रद्द की हैं, जिससे लाखों यात्री देशभर के एयरपोर्ट पर फंसे हुए हैं, जो कि एक प्रकार का मानवीय संकट है।
मिश्रा ने इसे यात्री के मौलिक अधिकारों, विशेषकर अनुच्छेद २१ (जीवन और गरिमा के अधिकार) का गंभीर उल्लंघन करार दिया है।
इस विस्तृत याचिका में बताया गया है कि इंडिगो की उड़ानें लगातार चौथे दिन (५ दिसंबर २०२५) भी बाधित रहीं। छह प्रमुख मेट्रो शहरों में एयरलाइन का समय पर प्रदर्शन केवल ८.५ प्रतिशत रह गया। हजारों यात्री (जिनमें बुजुर्ग, बच्चे, दिव्यांग और बीमार लोग शामिल हैं) एयरपोर्ट पर घंटों तक फंसे रहे।
एयरपोर्ट पर आवश्यक सुविधाओं जैसे भोजन, पानी, आराम, कपड़े, दवाइयां और रहने की बुनियादी सेवाएं नहीं दी गईं, जबकि एयरलाइन ने खुद स्वीकार किया कि इसके पास पर्याप्त व्यवस्थाएं नहीं थीं। अनेक मामलों में आपातकालीन चिकित्सा जरूरतों की अनदेखी की गई।
याचिका में कहा गया है कि इंडिगो ने नई उड़ान ड्यूटी टाइम लिमिटेशन (एफडीटीएल) चरण-२ को लागू करने में गंभीर चूक की। यह नियम पायलटों की सुरक्षा और थकान के ध्यान में रखते हुए बनाया गया था, लेकिन एयरलाइन की गलत योजना और रोस्टरिंग के कारण पूरा संचालन प्रभावित हुआ। इसे गंभीर कुप्रबंधन और यात्रियों के प्रति अन्याय बताया गया है।
हजारों उड़ानें रद्द होने के साथ ही टिकटों की कीमतें भी अचानक बढ़ गईं। याचिका में बताया गया कि मुंबई-दिल्ली सेक्टर में टिकट की कीमत ५०,००० रुपए तक पहुंच गई है। इसे यात्रियों का खुलेआम शोषण कहा गया है।
याचिका में आरोप लगाया गया कि डीजीसीए और नागरिक उड्डयन मंत्रालय समय पर स्थिति को संभालने में असफल रहे। हालांकि, डीजीसीए ने बाद में कुछ नियमों में अस्थायी छूट भी दी, लेकिन पत्र में कहा गया है कि यह राहत तब दी गई जब संकट अपने चरम पर था।
याचिका में यह प्रश्न उठाया गया है कि क्या बड़े पैमाने पर उड़ान रद्दीकरण से उत्पन्न मानवीय संकट अनुच्छेद २१ का उल्लंघन है? क्या निजी एयरलाइन द्वारा की गई यह चूक यात्रियों के मौलिक अधिकारों का हनन माना जा सकता है? क्या डीजीसीए ऐसी स्थिति में एफडीटीएल नियमों में अस्थायी छूट दे सकता है? क्या मंत्रालय और डीजीसीए ने अपने कानूनी कर्तव्यों में चूक की है? क्या सुप्रीम कोर्ट सार्वजनिक हित में दिशा-निर्देश जारी कर सकता है?
याचिका में कोर्ट से स्वतः संज्ञान लेने के चार मुख्य कारण बताए गए हैं, जिनमें अनुच्छेद २१ का उल्लंघन (भोजन, पानी, दवा, सुरक्षा की कमी), नियामक निकायों की असफलता, जनहित और राष्ट्रीय महत्व, जवाबदेही और मुआवजा शामिल हैं।
याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि मामले में तुरंत स्वतः संज्ञान लेकर इसे पीआईएल के रूप में स्वीकार किया जाए। विशेष बेंच बनाकर तुरंत सुनवाई की जाए। इंडिगो को आदेश दिया जाए कि वह मनमाने रद्दीकरण रोके, सुरक्षित तरीके से सेवाएं बहाल करे और सभी फंसे यात्रियों के लिए मुफ्त वैकल्पिक व्यवस्था कराए।