क्या भारत के रक्षा विशेषज्ञ अमेरिका के ईरान पर हमले को सही मानते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु संयंत्रों को नष्ट किया।
- भारतीय रक्षा विशेषज्ञों ने अमेरिका के कदम का समर्थन किया।
- स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार का विकास जरूरी है।
- ईरान और पाकिस्तान ने आतंकवाद को बढ़ावा दिया है।
- अमेरिका और इजरायल सत्ता परिवर्तन के इच्छुक हैं।
कोलकाता, 22 जून (राष्ट्र प्रेस)। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे संघर्ष में अब सुपर पावर अमेरिका की भी भागीदारी हो गई है। भारतीय समयानुसार रविवार तड़के 4:30 बजे अमेरिका ने ईरान के परमाणु संयंत्रों पर बम गिराए। अमेरिका ने ईरान के तीनों परमाणु संयंत्रों को नष्ट करने का दावा किया है। भारत के रक्षा विशेषज्ञों ने अमेरिका के इस कदम का समर्थन किया है।
रक्षा विशेषज्ञ आर.के. श्रीवास्तव ने रविवार को समाचार एजेंसी राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा, "आज अमेरिका ने ईरान के तीन परमाणु ठिकानों पर 'मदर ऑफ ऑल बम' गिराकर इतिहास रचा है। इजरायल और भारत की एक ही विरासत है। दोनों देशों ने आतंकवाद की विभीषिका का सामना किया है। हमें परमाणु बम की धमकी दी जाती है। पहले भारत ने पाकिस्तान और पीओके पर 'ऑपरेशन सिंदूर' के तहत आतंकवादी ठिकानों को निशाना बनाया। आज अमेरिका ने इजरायल-ईरान युद्ध में पहली बार हस्तक्षेप किया है। यह अमेरिका के दृढ़ निश्चय का परिचायक है।"
आर.के. श्रीवास्तव ने कहा कि किसी भी देश के विकास के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और रोजगार की आवश्यकता होती है। ईरान और पाकिस्तान ने अपने लोगों को इससे दूर रखा है और आतंकवाद को बढ़ावा दिया है। भारत और अमेरिका का जो जवाब इन दोनों देशों को मिला है, वह आने वाली पीढ़ियों के लिए यादगार रहेगा।
रक्षा विशेषज्ञ जी.जे. सिंह ने बेंगलुरु में राष्ट्र प्रेस से चर्चा करते हुए कहा, "मैं मानता हूं कि ईरान ने संवर्धित यूरेनियम का अधिकांश हिस्सा हटा दिया होगा। लेकिन अमेरिका ने ईरान के परमाणु संयंत्रों में जो सुविधाएं थीं, उन्हें समाप्त कर दिया होगा। अमेरिका ने सबसे घातक बम का उपयोग किया, जो 200 फुट नीचे जाकर विस्फोट करता है। मुझे लगता है कि अमेरिका के हमले से ईरान को बड़ा नुकसान हुआ होगा।"
उन्होंने कहा कि अमेरिका और इजरायल ईरान में सत्ता परिवर्तन चाहते हैं क्योंकि अयातुल्ला खामनेई लगभग 46 वर्षों से वहाँ की सत्ता पर काबिज हैं और उनके शासन की नीति "अमेरिका और इजरायल की मौत" के सिद्धांत पर आधारित है। ईरान अमेरिका को 'बड़ा शैतान' और इजरायल को 'छोटा शैतान' मानता है। यही कारण है कि दोनों देश ईरान में सत्ता परिवर्तन की इच्छा रखते हैं।