क्या समुद्री भोजन से फैल रहा है जरूरी एंटीबायोटिक 'कोलिस्टिन' के प्रति प्रतिरोध?

सारांश
Key Takeaways
- कोलिस्टिन अब कई मामलों में बेअसर हो रही है।
- बैक्टीरिया में प्रतिरोध विकसित हो रहा है।
- आयातित समुद्री भोजन में प्रतिरोधी जीन पाए जा रहे हैं।
- समस्या का विस्तार हो सकता है।
- सही उपायों की आवश्यकता है।
न्यू यॉर्क, 22 जून (राष्ट्र प्रेस)। अमेरिका के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने बताया है कि एक अत्यंत आवश्यक और अंतिम उपचार के रूप में उपयोग की जाने वाली एंटीबायोटिक 'कोलिस्टिन' अब कई मामलों में प्रभावी नहीं रह गई है। इसका कारण यह है कि कुछ बैक्टीरिया इस दवा के प्रति अब प्रतिरोधी (रोग से लड़ने वाली दवाओं पर असर न होने वाले) बन चुके हैं।
दुनिया भर में, कोलिस्टिन के प्रति प्रतिरोध बढ़ रहा है, जिससे उपचार के विकल्प कम हो रहे हैं और संक्रमित व्यक्तियों को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ रहा है। जॉर्जिया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक ऐसा तरीका खोजा है जिससे कोलिस्टिन प्रतिरोध जीन फैल रहे हैं।
एक नए अध्ययन में, माइक्रोबायोलॉजिस्ट इस्मत कासेम और उनकी टीम ने अटलांटा के आसपास के 8 खाद्य बाजारों से खरीदे गए आयातित झींगा और स्कैलप्स में पाए जाने वाले बैक्टीरिया का अध्ययन किया। इन खाद्य पदार्थों में ऐसे बैक्टीरिया पाए गए हैं, जिनमें कोलिस्टिन प्रतिरोधी जीन मौजूद थे।
कोलिस्टिन केवल तब दी जाती है जब अन्य सभी दवाएं बेकार हो जाती हैं। यह गंभीर और जानलेवा संक्रमण के इलाज में उपयोग की जाती है। लेकिन अब यह दवा कई बार प्रभावी नहीं हो पा रही है, जिससे उपचार के विकल्प कम हो रहे हैं और लोगों की जान को खतरा बढ़ रहा है।
वैज्ञानिक इस्मात कासेम और उनकी टीम ने यह भी बताया कि ये प्रतिरोधी जीन बैक्टीरिया से बैक्टीरिया में आसानी से फैल सकते हैं। ये जीन प्लास्मिड नामक एक छोटे डीएनए के हिस्से में होते हैं, जो एक बैक्टीरिया से दूसरे में पहुंच सकते हैं।
कासेम ने कहा, "बहुत से लोग नहीं जानते कि अमेरिका में खाया जाने वाला अधिकांश समुद्री भोजन आयातित होता है, जिसमें लगभग 90 प्रतिशत झींगा भी शामिल है। इनकी जांच में रोगाणुरोधी प्रतिरोध जीन का पता नहीं चल पाता है।" कासेम और उनकी टीम ने यह भी पाया कि ये जीन प्लास्मिड नामक एक छोटे डीएनए के हिस्से में होते हैं, जो एक बैक्टीरिया से दूसरे में पहुंच सकते हैं।
कोलिस्टिन को 1950 के दशक में गंभीर संक्रमण के इलाज के लिए शुरू किया गया था, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स जैसे कि किडनी और नर्व को नुकसान पहुंचने के कारण इसे 1980 में अमेरिका में बंद कर दिया गया था। लेकिन जब अन्य दवाएं बेअसर होने लगीं, तब इसे फिर से उपयोग में लाया गया।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी कोलिस्टिन को "बहुत जरूरी" दवाओं में शामिल किया है, क्योंकि यह कई गंभीर संक्रमणों के लिए अंतिम उपचार है।
वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि उन्होंने केवल एक स्रोत से इस प्रतिरोधी जीन का पता लगाया है, लेकिन इसके और भी स्रोत हो सकते हैं और यह समस्या और फैल सकती है।