क्या आप जानते हैं जगद्धात्री पूजा के बारे में? मां दुर्गा का शक्तिशाली स्वरूप, अहंकार पर विजय का प्रतीक

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क्या आप जानते हैं जगद्धात्री पूजा के बारे में? मां दुर्गा का शक्तिशाली स्वरूप, अहंकार पर विजय का प्रतीक

सारांश

जगद्धात्री पूजा एक विशेष पर्व है जो मां दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक है। यह पर्व अहंकार पर विजय पाने का संदेश देता है और इस पर्व की पौराणिक कहानियाँ अद्वितीय हैं।

Key Takeaways

  • जगद्धात्री पूजा का आयोजन कार्तिक माह में होता है।
  • यह अहंकार पर विजय का प्रतीक है।
  • पूजा में 16 प्रकार के मसालों से बनी धूप का उपयोग होता है।
  • यह पर्व बंगाल की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है।
  • रामकृष्ण परमहंस भी मां जगद्धात्री के उपासक थे।

नई दिल्ली, 29 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। सभी ने बंगाल में दुर्गा पूजा की प्रसिद्धि के बारे में सुना होगा, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मां जगद्धात्री की पूजा की जाती है।

यह पर्व केवल धार्मिक नहीं है, बल्कि यह आत्मसंयम और अहंकार पर विजय पाने का संदेश भी देता है।

जगद्धात्री माता के पीछे एक पौराणिक कथा भी है, जिसमें बताया गया है कि जब देवताओं ने महिषासुर पर विजय प्राप्त की, तो उन्हें अहंकार हो गया। वे मां रानी की शक्तियों को भूलकर अहंकार में डूब गए थे। इस स्थिति को सुधारने के लिए मां दुर्गा ने जगद्धात्री का अवतार लिया और देवताओं को एक तिनका हटाने के लिए कहा। जब उन्होंने इसे हटाने में असफलता पाई, तब उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने माता से क्षमा मांगी।

एक अन्य कथा के अनुसार, देवी ने हस्तिरूपी करिंद्रासुर नामक असुर का वध किया था। देवी की सवारी में सिंह के नीचे हाथी की छवि भी होती है।

पश्चिम बंगाल में देवी जगद्धात्री की पूजा की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई। कहा जाता है कि राजा कृष्णचंद्र राय ने दुर्गा पूजा के दौरान माता की पूजा नहीं की थी। इसके बाद उन्होंने कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को जगद्धात्री की पूजा का आरंभ किया, जो धीरे-धीरे पूरे बंगाल और पूर्वी भारत में फैल गया। आज यह त्योहार करोड़ों लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है।

माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस मां जगद्धात्री के बड़े उपासक थे। वे कहते थे कि मां की उपासना से मनुष्य के भीतर का भय, क्रोध, वासना और अहंकार समाप्त होने लगता है।

माता के पूजन के दौरान जलने वाली धूप 16 प्रकार के मसालों से निर्मित होती है। बाहरी धूप का उपयोग नहीं किया जाता। जगद्धात्री पूजा बंगाल की संस्कृतिक धरोहर है।

Point of View

जो न केवल बंगाल बल्कि पूरे पूर्वी भारत में मनाया जाता है। यह पर्व हमें आत्मसंयम और अहंकार पर विजय पाने का संदेश देता है, जो आज की दुनिया में भी प्रासंगिक है।
NationPress
29/10/2025

Frequently Asked Questions

जगद्धात्री पूजा कब मनाई जाती है?
जगद्धात्री पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है।
जगद्धात्री पूजा का महत्व क्या है?
यह पूजा मां दुर्गा के शक्तिशाली स्वरूप का प्रतीक है और अहंकार पर विजय का संदेश देती है।
इस पूजा की शुरुआत कब हुई थी?
पश्चिम बंगाल में देवी जगद्धात्री की पूजा की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई।
इस पूजा के दौरान क्या विशेष होता है?
माता के पूजन में 16 प्रकार के मसालों से बनी धूप का उपयोग किया जाता है।
जगद्धात्री पूजा का पौराणिक कथा क्या है?
कथा के अनुसार, देवताओं ने मां दुर्गा के अहंकार के कारण उन्हें जगद्धात्री का अवतार लेना पड़ा।