क्या सरकार सिर्फ नाम बदलने की राजनीति में जुटी है? : सांसद राजीव शुक्ला
सारांश
Key Takeaways
- मनरेगा का नाम बदलकर विकसित भारत–जी राम जी किया गया है।
- कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह केवल नाम बदलने में लगी है।
- सरकार को जमीनी हकीकत पर ध्यान देना चाहिए।
- राज्यों पर बढ़ा हुआ बोझ मनरेगा की गतिविधियों को प्रभावित कर सकता है।
- नाम बदलने से योजनाओं में सुधार नहीं होता।
नई दिल्ली, 18 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। मनरेगा का नाम बदलकर 'विकसित भारत–जी राम जी' किए जाने को लेकर विपक्षी दल लगातार सरकार पर हमले कर रहे हैं। इसी संदर्भ में कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला का एक बयान भी सामने आया है, जिसमें उन्होंने केंद्र सरकार पर कड़ी आलोचना की है। राजीव शुक्ला ने स्पष्ट कहा कि मनरेगा योजना मनमोहन सिंह सरकार की एक अत्यंत सफल और जनहितकारी योजना थी, जिससे गांवों में रह रहे गरीबों को सीधे और बड़े लाभ मिले थे।
उन्होंने कहा कि मनरेगा के अंतर्गत ग्रामीण क्षेत्रों में लोगों को रोजगार मिला, जिससे उनकी आमदनी में वृद्धि हुई और पलायन में कमी आई। लेकिन वर्तमान सरकार ने कोई नई और ठोस योजना शुरू नहीं की है। इसके बजाए पुरानी योजनाओं के नाम बदलकर केवल भ्रम पैदा किया जा रहा है। सरकार का ध्यान केवल नाम बदलने और उस पर श्रेय लेने पर है, जबकि जमीनी हकीकत में कोई वास्तविक काम नहीं हो रहा।
कांग्रेस सांसद ने कहा कि नया नाम इतना जटिल है कि आम लोग इसे पढ़ और समझ नहीं पा रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नाम बदलने से योजना में सुधार नहीं आता, बल्कि इससे समस्याएं और बढ़ सकती हैं।
राजीव शुक्ला ने आरोप लगाया कि नए परिवर्तनों के माध्यम से केंद्र सरकार अपनी जिम्मेदारियों को राज्यों पर डाल रही है। उन्होंने कहा कि राज्यों को अब अधिक बोझ उठाना पड़ रहा है, जबकि केंद्र सरकार अपने योगदान को कम कर रही है। कई राज्य पहले से आर्थिक दबाव में हैं और ऐसे में मनरेगा जैसी योजना का सही संचालन करना उनके लिए कठिन हो जाएगा।
उन्होंने आगे कहा कि सरकार काम के दिनों को बढ़ाने की बात कर रही है, लेकिन असलियत यह है कि जिन दिनों लोगों को वास्तव में काम की आवश्यकता होती है, उन दिनों काम देने से मना कर दिया जाता है। इससे गरीब मजदूरों को सबसे अधिक नुकसान हो रहा है।
राजीव शुक्ला का कहना है कि नए बिल में कई खामियां हैं, जो मनरेगा योजना को बुरी तरह प्रभावित करेंगी। अगर यही स्थिति बनी रही, तो गांवों के गरीब और मजदूर वर्ग को जो लाभ पहले मिल रहा था, वह अब नहीं मिल पाएगा। उन्होंने कहा कि नाम बदलने के बजाय योजना को मजबूत करने और गरीबों के हित में काम करने पर ध्यान देना चाहिए।
वहीं, सोनिया गांधी से पंडित नेहरू की चिट्ठियां वापस मांगे जाने के मुद्दे पर भी राजीव शुक्ला ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि यह बेहद आश्चर्यजनक है, क्योंकि दो दिन पहले ही सरकार ने स्पष्ट किया था कि नेहरू से जुड़े कोई भी दस्तावेज प्रधानमंत्री संग्रहालय और पुस्तकालय से गायब नहीं हुए हैं। ऐसे में अचानक बुधवार को चिट्ठियां मांगना समझ से परे है।