क्या झारखंड के नगर निकायों में हेमंत सरकार ने दलितों का आरक्षण घटाकर अन्याय किया?
सारांश
Key Takeaways
- हेमंत सोरेन सरकार पर दलितों के अधिकारों का हनन करने का आरोप।
- रांची नगर निगम में एससी के लिए बहुत कम वार्ड आरक्षित।
- सरकार की नीतियों में सुधार की आवश्यकता।
- दलित समाज के आंदोलन की चेतावनी।
- सामाजिक न्याय का उल्लंघन।
रांची, 23 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड विधानसभा के पूर्व नेता प्रतिपक्ष और भाजपा नेता अमर कुमार बाउरी ने हेमंत सोरेन सरकार पर अनुसूचित जाति (एससी) समाज को उसके अधिकारों से वंचित करने का आरोप लगाया है।
मंगलवार को भाजपा प्रदेश कार्यालय में आयोजित प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा कि नगर निकाय चुनावों में एससी के आरक्षण को कम करके सरकार ने दलित समाज के साथ विश्वासघात किया है। उन्होंने रांची नगर निगम का उदाहरण देते हुए कहा कि पूरे नगर निगम में एससी के लिए महज दो वार्ड आरक्षित किए गए हैं, जो सामाजिक न्याय की भावना के विपरीत है।
अमर कुमार बाउरी ने कहा कि जल–जंगल–जमीन और झारखंडियों के हितों की बात कर सत्ता में आई सरकार अपने वादों से भटक चुकी है। उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य में लगभग 50 लाख की एससी आबादी आज भी बुनियादी अधिकारों और सरकारी योजनाओं से वंचित है।
उन्होंने यह भी दावा किया कि सरकार के एक मंत्री ने स्वयं एससी समाज की स्थिति सुधारने के लिए सरकार से लिखित आग्रह किया है, जो हालात की गंभीरता को दर्शाता है। उन्होंने कहा कि एससी बच्चों को विदेश में उच्च शिक्षा दिलाने की मांग लंबे समय से उठती रही है, लेकिन इस दिशा में अब तक कोई ठोस पहल नहीं हुई। इसके उलट सरकार नई-नई योजनाओं की घोषणा कर रही है, जिनमें एससी समाज की भागीदारी नगण्य है।
नगर निकाय चुनावों को लेकर बाउरी ने आरोप लगाया कि सरकार न्यायालय के निर्देशों के दबाव में आनन-फानन में चुनाव कराने की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने के मामले में भी सरकार ने जमीनी सर्वे के बिना मतदाता सूची के आधार पर निर्णय लिया, जिससे ओबीसी समाज के साथ भी अन्याय हुआ है।
उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार राजनीतिक कारणों से अलग-अलग नगर निकायों में अलग-अलग नियम लागू कर रही है और एक वर्ग विशेष को दबाने का प्रयास कर रही है। यह बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के संविधानिक मूल्यों की अवहेलना है। भाजपा नेता ने मांग की कि नगर निगम चुनावों में पूर्ण पारदर्शिता सुनिश्चित की जाए, ताकि सभी वर्गों को न्याय मिल सके। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि सरकार ने अपनी नीतियों में सुधार नहीं किया तो दलित समाज संविधान के दायरे में रहते हुए आंदोलन के लिए मजबूर होगा।