क्या अनुशासन ने जेपी नड्डा की पहचान बनाई और संगठन ने उन्हें शक्ति दी?
सारांश
Key Takeaways
- अनुशासन और संगठन से ही सफलता मिलती है।
- शिक्षा और खेल का गहरा संबंध है।
- घर का माहौल विचारों को आकार देता है।
- राजनीति में सादगी और मेहनत जरूरी हैं।
- युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं जेपी नड्डा।
नई दिल्ली, 1 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। किसी ने नहीं सोचा था कि 2 दिसंबर 1960 को पटना में जन्मा एक बच्चा आगे चलकर विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी भाजपा का शीर्ष नेतृत्व संभालेगा। उनकी शांत मुस्कान, सौम्य व्यवहार और संगठन की गहरी समझ ने उन्हें उस राजनीतिक मुकाम तक पहुंचाया, जिसकी कल्पना उनके साथी भी नहीं कर सके। हम बात कर रहे हैं भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा (जेपी नड्डा) की।
पटना के कॉन्वेंट स्कूल में अपने अध्ययन के दौरान ही जगत प्रकाश नड्डा ने संकेत दे दिया था कि वे किसी एक ट्रैक पर नहीं रुकने वाले। कक्षा की पढ़ाई हो या रेस का मैदान, वे हमेशा आगे ही दिखते थे। उन्हें स्कूल के स्वीमिंग पूल पर जाने की अनुमति थी और वे माइल रेस के चैंपियन भी रहे। स्वीमिंग में वे जूनियर कैटेगरी में बिहार के नंबर-4 तक पहुंचे। जेपी नड्डा ने एक इंटरव्यू में अपने खेल प्रेम के बारे में बताया था।
इस खेल अनुशासन ने उनके व्यक्तित्व में ऐसी गति, ऊर्जा और निरंतरता भरी, जो राजनीति में उनके लिए आधार बनी। स्कूल भले कॉन्वेंट रहा हो, लेकिन विचारों की बुनियाद घर में ही रखी गई थी। उनके पिता पटना विश्वविद्यालय में प्रोफेसर थे और घर में नियम था- डिनर सब साथ में। इसी डिनर टेबल पर नड्डा ने जयप्रकाश नारायण के आंदोलन, इंदिरा गांधी की इमरजेंसी और बदलते राजनीतिक परिदृश्यों को पहली बार समझा।
अपने पिता के सहायक रमाकांत पांडे के माध्यम से नड्डा का जुड़ाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से हुआ। जेपी नड्डा संघ के माध्यम से राजनीति की पगडंडी पर चल पड़े और यह रास्ता जेपी आंदोलन तक पहुंच गया। पटना की सड़कों पर निकलते विशाल जुलूस, नानाजी देशमुख का समर्पण और जयप्रकाश नारायण के आदर्श, ये सब किशोर उम्र में जेपी नड्डा की धड़कनों में शामिल हो गए। वे जेपी आंदोलन के सबसे कम उम्र के कार्यकर्ताओं में से एक थे।
एक इंटरव्यू में जेपी नड्डा ने कहा था, "जब एक लंबा जुलूस गांधी मैदान से निकला था, जयप्रकाश नारायण ने आशीर्वाद दिया था और हम ज्ञापन देने गए थे।" उन्होंने बताया कि आपातकाल से पहले जब आंदोलन चल रहा था तब जयप्रकाश पर लाठियां पड़ीं। उस समय नानाजी देशमुख उनके बचाव में आए थे।
कक्षा से आंदोलन की ओर बढ़ते हुए जेपी नड्डा ने सेंट जेवियर्स से मैट्रिक पूरी कर पटना कॉलेज में प्रवेश लिया, जहाँ माहौल पहले से ही राजनीतिक था। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े जगत प्रकाश नड्डा ने 1977 में छात्र संघ सचिव का चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। यह उनके राजनीतिक व्यक्तित्व का पहला औपचारिक परिचय था।
1976-78 के दौरान वे पटना कॉलेज में पॉलिटिकल साइंस ऑनर्स के छात्र रहे और राजनीति उनके जीवन का हिस्सा बन गई।
ग्रेजुएशन के बाद, जब वे हिमाचल लौटे, तो उनका सफर मोड़ लेता दिखा। शिमला के लॉ कॉलेज में दाखिला मिला, लेकिन करियर को लेकर उलझन थी। इसी बीच उन्होंने कभी एनडीए का एग्जाम दिया तो कभी यूपीएससी की तैयारी के बारे में सोचा। उनके बैच से 15 आईएएस ऑफिसर्स निकले, लेकिन पढ़ाई के बीच भी एक चीज स्थिर थी और वह था राजनीति का जुनून।
शुरुआत से ही नड्डा सादगी पसंद थे, जो न सिर्फ अच्छे वक्ता थे, बल्कि उनमें अद्भुत नेतृत्व क्षमता भी थी।
लॉ कॉलेज में पढ़ते हुए वे मिमिक्री भी करते थे और दोस्तों के बीच उनकी यह कला प्रसिद्ध थी। उनके एक मित्र अमित कश्यप ने भविष्यवाणी की थी, 'एक दिन तुम केंद्र में मंत्री बनोगे।' समय ने साबित किया कि यह मजाक नहीं, एक भविष्य कथन था।
उसी दौर में शिमला में वामपंथ का रुतबा था, लेकिन जेपी नड्डा के तेवर अलग थे। पढ़ाई से अलग समय मिला तो उसे राजनीति के लिए खपाना शुरू कर दिया।
1986–89 तक वे एबीवीपी के राष्ट्रीय महासचिव रहे। इस दौरान उन्होंने संगठन की हर चुनौती का सामना किया। 1991 जेपी नड्डा के जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था। भाजपा युवा मोर्चा का नेतृत्व उनके हाथ में आया, और यह वह पल था जब संगठन ने उन्हें भविष्य का चेहरा मान लिया।
धीरे-धीरे राजनीति उनका ध्येय बनती गई। न कोई प्रदर्शन, न कोई दिखावा, सिर्फ सादगी, अनुशासन और निरंतर मेहनत। अपने लंबे राजनीतिक करियर में उन्होंने संगठन को मजबूती प्रदान की। आज वे केंद्र सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं और लगभग 18 करोड़ सदस्यों वाली भाजपा का नेतृत्व कर रहे हैं, जो न सिर्फ उनकी व्यक्तिगत उपलब्धि है, बल्कि भारतीय राजनीति के अद्भुत सफर का प्रतिबिंब भी है।