क्या ज्वालामुखी राख का बादल उत्तर भारत की ओर बढ़ रहा है?
सारांश
Key Takeaways
- इंडोनेशिया से आया ज्वालामुखी राख का बादल उत्तर भारत की ओर बढ़ रहा है।
- यह सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ₂) से भरा हुआ है।
- कुछ क्षेत्रों में एसओ₂ का स्तर प्रभावित हो सकता है।
- दिल्ली और अन्य मैदानी क्षेत्रों में ऐशफॉल की संभावना कम है।
- स्वास्थ्य पर असर सीमित रहेगा, लेकिन संवेदनशील लोगों को सावधानी बरतनी चाहिए।
नई दिल्ली, २५ नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय मौसम विज्ञान एजेंसी इंडियामेटस्काई ने सोमवार रात को अपने आधिकारिक 'एक्स' हैंडल पर एक महत्वपूर्ण सूचना साझा की है। इसके अनुसार, इंडोनेशिया के किसी सक्रिय ज्वालामुखी से निकला ऐश प्लम (राख का बादल) अब ओमान-अरब सागर क्षेत्र से होते हुए उत्तर और मध्य भारत के मैदानी इलाकों की दिशा में बढ़ रहा है। यह प्लम मुख्य रूप से सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ₂) गैस से भरा हुआ है, जबकि ज्वालामुखी की राख की मात्रा कम से मध्यम स्तर की है।
इंडियामेटस्काई के अनुसार, इस बादल का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई) पर कोई विशेष असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि यह वायुमंडल के मध्य स्तर (मिड-लेवल एटमॉस्फियर) पर है और यह जमीन की सतह तक नहीं पहुंच रहा है। हालांकि, कुछ विशेष क्षेत्रों में एसओ₂ का स्तर प्रभावित हो सकता है। खासकर नेपाल की पहाड़ियों, हिमालयी क्षेत्र और उत्तर प्रदेश का तराई बेल्ट (गोरखपुर, बहराइच, लखीमपुर खीरी आदि) प्रभावित हो सकते हैं। इसका कारण यह है कि प्लम का कुछ हिस्सा हिमालय से टकराएगा, जिससे एसओ₂ का एक भाग नीचे आ सकता है। इसके बाद यह बादल आगे चीन की ओर बढ़ जाएगा।
मैदानी क्षेत्रों की बात करें तो दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के बड़े हिस्सों में ऐशफॉल (राख का गिरना) की संभावना बहुत कम है।
सतह पर एक्यूआई में कोई महत्वपूर्ण बदलाव की उम्मीद नहीं है। हल्के-फुल्के कण कुछ स्थानों पर गिर सकते हैं, लेकिन यह बहुत सीमित मात्रा में होगा। हवाई यातायात पर भी असर संभव है; कुछ उड़ानें देरी हो सकती हैं या रूट में बदलाव किया जा सकता है।
स्वास्थ्य पर असर के संदर्भ में, प्लम ऊपरी वायुमंडल में है और एसओ₂ का अधिकांश हिस्सा हिमालयी क्षेत्रों में ही नीचे आएगा। इसलिए, दिल्ली-एनसीआर जैसे घनी आबादी वाले मैदानी इलाकों में सांस की तकलीफ या आंखों में जलन जैसे लक्षण आम लोगों को नहीं होंगे। फिर भी संवेदनशील लोग (जैसे अस्थमा, सीओपीडी के मरीज) तराई और पहाड़ी क्षेत्रों में सावधानी बरतें।
इंडियामेटस्काई ने स्पष्ट किया है कि यह स्थिति कुछ दिनों तक बनी रह सकती है, लेकिन यह कोई बड़ा प्रदूषण संकट नहीं है।