क्या बड़ी चट्टान काटकर बनाया गया भगवान शिव का कैलाश मंदिर, जहां नहीं होती किसी देवी-देवता की पूजा?
सारांश
Key Takeaways
- कैलाश मंदिर एक चट्टान को काटकर बनाया गया है।
- इस मंदिर का निर्माण 100 वर्षों में पूरा हुआ।
- यह मंदिर यूनेस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है।
- यहाँ भगवान शिव की पूजा नहीं होती है।
- मंदिर की वास्तुकला अद्वितीय है और कई राजाओं का योगदान रहा है।
दिल्ली, 18 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। सृष्टि के रचयिता भगवान शिव का स्वरूप विश्व के हर कोने में भिन्न-भिन्न रूपों में देखने को मिलता है। लेकिन महाराष्ट्र के एलोरा में स्थित एक प्राचीन मंदिर है, जो भारत की समृद्ध वास्तुकला, महाभारत और रामायण की कथाओं के साथ-साथ भगवान शिव के विभिन्न रूपों को अद्वितीय तरीके से दर्शाता है।
हम यहां बात कर रहे हैं कैलाश मंदिर की, जिसे एक ही विशाल चट्टान को काटकर बनाया गया है।
यह मंदिर आकार में बहुत बड़ा है। सामान्यतः मंदिर जमीन के ऊपर होते हैं, लेकिन कैलाश मंदिर को एक बड़ी चट्टान को काटकर जमीन से नीचे बनाया गया है। यह अद्भुत निर्माण कार्य 100 वर्षों से अधिक समय में पूरा हुआ और कारीगरों ने बिना किसी सीमेंट या सरिया के केवल औजारों की सहायता से इसे तैयार किया।
कहा जाता है कि मंदिर के निर्माण के दौरान कई राजाओं ने योगदान दिया, जिससे इसकी वास्तुकला और नक्काशी विभिन्न परंपराओं और कलाओं का संगम बन गई। मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण की कहानियों के पात्रों को बारीकी से उकेरा गया है, और अन्य शिव रूपों तथा हिंदू देवी-देवताओं की सुंदर नक्काशी भी की गई है। यहाँ भगवान शिव के रौद्र, उग्र, शांत और प्रचंड नृत्य करती प्रतिमाएं भी देखने को मिलती हैं।
पर्यटक आज भी मंदिर के हर कोने में भगवान शिव की उपस्थिति का अनुभव करते हैं।
कैलाश मंदिर की खासियत यह है कि औरंगजेब ने इसे ध्वस्त करने का आदेश दिया था, लेकिन 1000 से ज्यादा सैनिकों के प्रयासों के बावजूद, मंदिर का एक भी हिस्सा नहीं टूट पाया। 3 वर्षों तक औरंगजेब के भेजे सैनिक इसे तोड़ने का प्रयास करते रहे, लेकिन केवल 5 प्रतिशत क्षेत्र को ही नुकसान पहुंचा पाए। आज भी मुख्य मंदिर अपनी भव्यता के साथ खड़ा है।
कहा जाता है कि इस मंदिर के निर्माण में 7000 से ज्यादा श्रमिकों ने काम किया और मालखेड के राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण ने इसकी नींव रखी। 100 वर्षों बाद इसका निर्माण कार्य पूरा हुआ। इस मंदिर में आज भी भगवान शिव की पूजा नहीं होती है और पहले भी पूजा-पाठ के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं। पर्यटक इसकी अनोखी वास्तुकला और निर्माण को देखने के लिए दूर-दूर से आते हैं। यूनेस्को ने भी इसे 'विश्व विरासत स्थल' के रूप में मान्यता दी है।