क्या झारखंड के खूंटी में फौजी की संदिग्ध मौत ने ग्रामीणों का गुस्सा भड़काया?

सारांश
Key Takeaways
- राहुल मांझी की संदिग्ध मौत ने ग्रामीणों के गुस्से को जन्म दिया।
- प्रदर्शनकारियों ने निष्पक्ष जांच की मांग की।
- पुलिस ने थानेदार को निलंबित किया है।
- ग्रामीणों का आरोप है कि पुलिस ने सही कार्रवाई नहीं की।
- राहुल की अंतिम तैनाती सिलीगुड़ी में थी।
रांची, 3 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड के खूंटी जिले के मुरहू थाने में बीएसएफ जवान राहुल मांझी की रहस्यमय मौत ने ग्रामीणों के आक्रोश को जन्म दिया है। इस घटना की निष्पक्ष जांच की मांग करते हुए शुक्रवार को सैकड़ों लोगों ने थाने के बाहर प्रदर्शन किया।
प्रदर्शनकारियों ने इस घटना को हत्या करार देते हुए आरोपियों की त्वरित गिरफ्तारी की मांग की। ग्रामीणों का आरोप है कि 29 सितंबर की शाम को माहिल गांव के कुछ लोगों ने राहुल पर छेड़छाड़ का झूठा आरोप लगाया। बताया गया कि उसी शाम लगभग छह बजे बिजला उरांव, मोती उरांव, बुधुवा उरांव, कार्तिक मुंडा सहित 10-12 लोग राहुल के घर पहुंचे और उसे जबरन उठाकर माहिल गांव ले गए। वहां उसे मारपीट कर रस्सी से बांध दिया गया और बाद में पुलिस को सौंप दिया गया।
पुलिस का कहना है कि 30 सितंबर की सुबह राहुल मांझी ने थाने के शौचालय में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली। दूसरी तरफ, राहुल मांझी के परिजनों और ग्रामीणों ने पुलिस के इस दावे पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि 30 सितंबर को ही उन्होंने थाने में आवेदन देकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया।
घटना के बाद खूंटी के पुलिस अधीक्षक मनीष टोप्पो ने मुरहू थाना के थानेदार रामदेव यादव को निलंबित कर दिया। पुलिस ने आश्वासन दिया है कि सभी पहलुओं की गहराई से जांच की जाएगी। बताया गया कि राहुल मांझी बीएसएफ में तैनात थे और उनकी अंतिम तैनाती सिलीगुड़ी में थी। वह कुछ महीने पहले छुट्टी पर घर आए थे और वापस कैंप नहीं लौटे।
परिजनों और ग्रामीणों का कहना है कि झूठे आरोपों में राहुल को न केवल अपमानित किया गया, बल्कि बेरहमी से उनकी पिटाई भी की गई। इस मामले में पुलिस का रवैया एकतरफा रहा। राहुल को पीटते हुए थाना लाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय पुलिस ने राहुल को ही हवालात में बंद कर दिया। थानेदार भी उनकी मौत के जिम्मेदार हैं।