क्या कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों को 1824 में चुनौती नहीं दी थी?

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क्या कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने अंग्रेजों को 1824 में चुनौती नहीं दी थी?

सारांश

रानी चेन्नम्मा का साहसिक संघर्ष और बलिदान कित्तूर रियासत के लिए एक प्रेरणा है। उनकी कहानी केवल एक महिला की नहीं, बल्कि उस समय की महिलाओं के साहस की भी गाथा है। जानिए कैसे उन्होंने अंग्रेजों को चुनौती दी और अपने राज्य की रक्षा की।

Key Takeaways

  • कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने 1824 में ब्रिटिशों के खिलाफ संघर्ष किया।
  • उन्होंने अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए लड़ाई लड़ी।
  • उनका साहस और बलिदान आज भी प्रेरणा देता है।
  • रानी चेन्नम्मा का संघर्ष स्वतंत्रता संग्राम की नींव में महत्वपूर्ण है।
  • यह कहानी हमारी संस्कृति और इतिहास का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

नई दिल्ली, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। कर्नाटक के बेलगाम जिले में स्थित कित्तूर रियासत अपनी समृद्धि और शांति के लिए जानी जाती थी। इस रियासत की महिला रानी चेन्नम्मा ने अपनी अनोखी ताकत और संकल्प के लिए इतिहास में जगह बनाई।

जैसे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने 1857 में उत्तर भारत में स्वतंत्रता की मशाल जलाई, उसी तरह कित्तूर की रानी चेन्नम्मा ने 1824 में दक्षिण भारत में स्वतंत्रता की पहली चुनौती पेश की थी।

23 अक्टूबर 1778 को बेलगावी के काकती गांव में जन्मी चेन्नम्मा ने बचपन में ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तीरंदाजी में पारंगतता हासिल की। नियति ने उन्हें कित्तूर के राजा मल्लसारजा के साथ विवाह के बंधन में बांधा।

रानी चेन्नम्मा का असली साहस तब सामने आया जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की नजरें कित्तूर पर पड़ीं। इस दौरान, अधिकांश भारतीय शासक अंग्रेजों के सामने झुक गए थे, लेकिन रानी चेन्नम्मा ने अपने सम्मान और स्वतंत्रता का रास्ता चुना।

उनकी जिंदगी में दुख का पहाड़ तब टूटा जब उनके पति राजा मल्लसारजा और उनके एकमात्र पुत्र की मृत्यु हो गई। इस संकट के समय 'डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स' का खतरा मंडराने लगा।

इस सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी रियासत का शासक बिना पुरुष उत्तराधिकारी के मर जाता है, तो ब्रिटिश कंपनी उस राज्य को हड़प लेती थी। रानी ने अपने रिश्तेदार शिवालिंगप्पा को गोद लिया और उन्हें उत्तराधिकारी घोषित किया, लेकिन अंग्रेजों ने इसे ठुकरा दिया।

रानी चेन्नम्मा ने ठाकरे को स्पष्ट संदेश दिया कि कित्तूर की स्वतंत्रता उनके बच्चों की विरासत है और इसे सौंपने के बजाय वे युद्ध में मरना पसंद करेंगी।

ठाकरे ने अपनी पूरी सैन्य शक्ति कित्तूर पर झोंक दी। 20,000 ब्रिटिश सैनिकों के साथ उन्होंने किले का घेरा डाला। रानी चेन्नम्मा ने अपनी सेना को संगठित किया।

23 अक्टूबर 1824 को ऐतिहासिक युद्ध छिड़ा। रानी चेन्नम्मा की सेना ने अद्वितीय साहस का प्रदर्शन किया और ब्रिटिश सेना को पराजित किया।

युद्ध का निर्णायक क्षण तब आया जब रानी के सेनापति बालनगौडा ने ठाकरे को निशाना बनाया। ठाकरे की हत्या ने ब्रिटिश सेना में भगदड़ मचा दी।

हालांकि, रानी की पहली जीत क्षणिक थी। ईस्ट इंडिया कंपनी ने बदला लेने का संकल्प लिया। नवंबर 1824 में, कर्नल डीकन के नेतृत्व में एक बड़ी सेना ने कित्तूर को घेर लिया।

रानी चेन्नम्मा और उनके सेनापति गुरुसिद्दप्पा और रायन्ना ने बहादुरी से लड़ाई लड़ी, लेकिन गद्दारों के कारण उनका संघर्ष विफल हो गया।

अंत में, रानी चेन्नम्मा को कैद कर लिया गया और 21 फरवरी 1829 को उनकी मृत्यु हो गई। यह एक वीरांगना का दुखद अंत था, लेकिन उनका साहस हमेशा याद रहेगा।

Point of View

NationPress
22/10/2025

Frequently Asked Questions

कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का जन्म कब हुआ?
रानी चेन्नम्मा का जन्म 23 अक्टूबर 1778 को बेलगावी के काकती गांव में हुआ था।
रानी चेन्नम्मा ने किस सिद्धांत के खिलाफ संघर्ष किया?
रानी चेन्नम्मा ने 'डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स' सिद्धांत के खिलाफ संघर्ष किया, जो ब्रिटिश कंपनी की नीति थी।
कित्तूर की रानी ने कितने सैनिकों के खिलाफ युद्ध किया?
रानी चेन्नम्मा ने 20,000 ब्रिटिश सैनिकों के खिलाफ युद्ध किया।
रानी चेन्नम्मा का क्या अंत हुआ?
रानी चेन्नम्मा को कैद कर लिया गया और 21 फरवरी 1829 को उनकी मृत्यु हो गई।
कित्तूर की रानी की पहचान क्यों महत्वपूर्ण है?
कित्तूर की रानी चेन्नम्मा का संघर्ष भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का महत्वपूर्ण हिस्सा है और यह महिलाओं के साहस का प्रतीक है।