क्या कुड़मी समाज का रेल रोको आंदोलन झारखंड, बंगाल और ओडिशा में प्रभाव डालेगा?

सारांश
Key Takeaways
- कुड़मी जाति ने आदिवासी का दर्जा देने की मांग की है।
- आंदोलन 20 सितंबर से शुरू होगा।
- झारखंड पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं।
- पिछले आंदोलन ने समुदाय को एकजुट किया है।
- यह आंदोलन सरकार की नीतियों पर सवाल उठाता है।
रांची, 18 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कुड़मी समुदाय के संगठनों ने आदिवासी (एसटी) का दर्जा देने की मांग को लेकर 20 सितंबर से रेल रोको आंदोलन का ऐलान किया है। आंदोलन की घोषणा के साथ ही झारखंड पुलिस ने कड़े सुरक्षा इंतजाम किए हैं और संभावित संवेदनशील इलाकों में विशेष सतर्कता बरती जा रही है।
खुफिया एजेंसियों ने भी इस आंदोलन को लेकर रेल प्रशासन को अलर्ट किया है।
इससे पहले, सितंबर 2023 में भी इसी मुद्दे पर कुड़मी जाति के हजारों लोगों ने झारखंड, ओडिशा और बंगाल में लगातार पांच दिन तक रेलवे ट्रैक को जाम कर दिया था। उच्चस्तरीय वार्ता के बाद तब यह आंदोलन स्थगित किया गया था।
झारखंड में टोटेमिक कुड़मी विकास मोर्चा (टीकेवीएम) के अध्यक्ष शीतल ओहदार का कहना है कि वार्ता में जिन मुद्दों पर सहमति बनी थी, उन पर सरकार एक कदम भी आगे नहीं बढ़ी। ऐसे में फिर से आंदोलन के सिवा कोई विकल्प नहीं है।
झारखंड में मुरी, गोमो, नीमडीह, घाघरा, चांडिल, हंसडीहा, छोटा गम्हरिया, डुमरी, गंजिया बराज और पारसनाथ जैसे प्रमुख रेलवे स्टेशनों और रूटों पर आंदोलनकारियों के जुटने की संभावना है। इन स्थानों पर अतिरिक्त पुलिस बल और मजिस्ट्रेट की तैनाती की जाएगी ताकि किसी भी अप्रिय घटना को रोका जा सके।
अधिकारियों ने बताया कि आंदोलन के दौरान यात्रियों की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखना सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। रेलवे संपत्ति की रक्षा के लिए भी खास निगरानी रखी जा रही है।
कुड़मी समुदाय वर्तमान में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की श्रेणी में आता है। समुदाय का कहना है कि एसटी का दर्जा न मिलने से वे शिक्षा, रोजगार और आरक्षण में मिलने वाले अधिकारों से वंचित हो रहे हैं। पिछले कई वर्षों से वे इस मांग को लेकर आंदोलन करते आ रहे हैं। रेल रोको और धरना-प्रदर्शन उनके विरोध के प्रमुख तरीके रहे हैं। एक हफ्ता पहले, नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर कुड़मी संगठनों ने जोरदार प्रदर्शन किया था।
साल 2023 में पश्चिम बंगाल में भी कुड़मी संगठनों ने रेल रोको आंदोलन का ऐलान किया था, तब कोलकाता हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए रेल रोकने के आंदोलन को गैरकानूनी करार दिया था।