क्या अनजान साहब की 'ब्लैक लेडी' की चाहत पूरी हुई थी?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- अनजान साहब ने अपने जीवन में कई संघर्ष किए।
- 'ब्लैक लेडी'' का मतलब था फिल्मफेयर अवॉर्ड।
- उनका योगदान आज भी सिनेमा में महत्वपूर्ण है।
- उन्होंने कई हिट गाने लिखे, जो सदाबहार हैं।
- उनकी कहानी हमें सिखाती है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। यह कहानी है कलम के जादूगर और प्रसिद्ध गीतकार लालजी पांडेय, जिन्हें 'अनजान' साहब के नाम से जाना जाता है। एक समय था जब अनजान साहब ने अपने लिखे हुए गीतों से सबको दीवाना बना दिया था। फिल्म इंडस्ट्री में ऐसा कोई नहीं था, जो उनके गानों से अंजान रहा हो। इतने प्रसिद्ध होने के बावजूद, अनजान साहब को जीवन में जिसकी खोज थी, वह थी 'ब्लैक लेडी'।
"यह जो 'ब्लैक लेडी' है, उससे मुझे गहरी मोहब्बत थी। मैं चाहता था कि वह मुझे मिले, लेकिन कई बार भाग्य साथ नहीं देता।" यह अनजान साहब का दर्द था, जो फिल्मी दुनिया की चकाचौंध में कहीं दब गया था। एक मौके पर, जब वे अपने बेटे समीर अनजान को फिल्मफेयर अवॉर्ड देने पहुंचे थे, तब उन्होंने यह सब साझा किया।
इस मौके पर अनजान साहब मंच पर बिना सहारे खड़े थे। उनके चेहरे पर खुशी और गर्व था, क्योंकि उनका बेटा वह सम्मान प्राप्त कर रहा था, जिसके लिए उन्होंने जीवनभर संघर्ष किया।
उनकी कहानी और 'ब्लैक लेडी' के बारे में समीर अनजान ने एक इंटरव्यू में बताया था। यह स्पष्ट करना आवश्यक है कि वह 'ब्लैक लेडी' दरअसल फिल्मफेयर अवॉर्ड था, जो भारतीय सिनेमा का सबसे बड़ा सम्मान है। इस अवॉर्ड की मूर्ति एक महिला को दर्शाती है, जो एक नृत्य शैली में अपने हाथ ऊपर उठाए हुए है।
फिल्मों में कई हिट गाने देने के बावजूद, अनजान साहब को यह अवॉर्ड नहीं मिल पाया।
उनकी कैरियर की शुरुआत ऐसी थी कि वे लगातार व्यस्त रहे। फिल्म 'गोदान', जिसमें राजकुमार ने अभिनय किया, उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ लेकर आई। इसके बाद उन्हें गुरुदत्त की फिल्म 'बहारें फिर भी आएंगी' में गाने लिखने का मौका मिला।
उनकी दोस्ती प्रसिद्ध संगीतकार कल्याणजी और आनंद जी के साथ बढ़ी। फिल्म 'दो अंजाने' में उनके गाने लोगों के दिलों में बस गए। इसके बाद अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी ने 'खून पसीना', 'मुकद्दर का सिकंदर' और 'डॉन' जैसी फिल्मों में सभी गाने हिट कर दिए।
इससे अनजान साहब को वह उच्चता मिली, जिसकी वे तलाश कर रहे थे। 1990 के दशक में आई फिल्म 'शोला और शबनम' के गाने भी सफल रहे।
हालांकि, 13 सितंबर 1997 का दिन फिल्म जगत के लिए एक दुखद घड़ी लेकर आया, जब गीतों के 'अनजान' को हमेशा के लिए खो दिया गया। फिर भी, भारतीय सिनेमा में अनजान साहब का नाम आज भी गर्व से लिया जाता है।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                            