क्या स्वतंत्रता आंदोलन की ग्रैंड ओल्ड लेडी अरुणा आसफ अली ने क्रांति की मशाल जलाए रखी?

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क्या स्वतंत्रता आंदोलन की ग्रैंड ओल्ड लेडी अरुणा आसफ अली ने क्रांति की मशाल जलाए रखी?

सारांश

अरुणा आसफ अली, स्वतंत्रता आंदोलन की एक अद्वितीय नायिका, जिन्होंने क्रांति की मशाल जलाए रखी। आज उनकी जयंती पर हम उनके साहस और संघर्ष को याद करते हैं। उनका जीवन आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत है।

Key Takeaways

  • अरुणा आसफ अली का साहस और नेतृत्व आज भी प्रेरणा स्रोत है।
  • उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया।
  • उनका जीवन हमें सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरित करता है।
  • वे एक अद्वितीय शिक्षिका, पत्रकार और राजनीतिज्ञ थीं।
  • उनका संघर्ष और विचार आज भी जीवित हैं।

नई दिल्ली, १६ जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। जब देश आजादी के लिए संघर्षरत था और हर ओर पुरुषों की भीड़ थी, तब एक अद्वितीय महिला थीं, जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती थीं और कई बार उनसे आगे भी निकल जाती थीं। उनके पास तलवार नहीं थी, लेकिन उनके विचारों की धार से अंग्रेजी हुकूमत भयभीत थी। उनका चेहरा क्रांति का प्रतीक बन गया और उनका साहस नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा बना।

एक ऐसी नारी, जिसने परंपराओं को चुनौती दी, समाज के बंधनों को तोड़ा और १९४२ के भारत छोड़ो आंदोलन में तिरंगा फहराकर यह साबित कर दिया कि स्वतंत्रता की लड़ाई सिर्फ पुरुषों की नहीं थी। आज, उनकी जयंती पर, हम नमन करते हैं उस स्वतंत्रता संग्राम की ग्रैंड ओल्ड लेडी को, जिनका जीवन हर भारतीय के लिए साहस, संकल्प और सेवा का एक जीता-जागता सबूत है।

१६ जुलाई १९०९ को हरियाणा के कालका शहर में जन्मी, ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने वालीं अरुणा गांगुली, आज भारतीय इतिहास के उन नायकों में गिनी जाती हैं जिन्होंने न केवल स्वतंत्रता आंदोलन में हिस्सा लिया, बल्कि उसे एक नई दिशा भी दी। आज उनकी जयंती पर जब हम उनके जीवन के बारे में समझने की कोशिश करते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे साहस, विद्रोह, नेतृत्व और करुणा, इन तमाम गुणों ने एक ही व्यक्ति में आकार लिया था।

अरुणा की प्रारंभिक शिक्षा नैनीताल में हुई। वहीं उनके पिता का होटल था। वे पढ़ाई में तेज थीं और सोच-समझने में गहरी। अपने स्कूल के दिनों से ही उनमें प्रश्न करने की आदत थी। यही कारण रहा कि उन्होंने न केवल सामाजिक बंदिशों को तोड़ा, बल्कि बाद में धर्म और उम्र की सीमाओं को भी चुनौती दी, जब उन्होंने खुद से २१ साल बड़े मुस्लिम नेता आसफ अली से विवाह किया। घर की चारदीवारी से लेकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हर मोर्चे पर अरुणा ने क्रांति की। उनका पूरा जीवन ही एक क्रांति था।

१९३०, १९३२ और १९४१ के सत्याग्रह आंदोलनों में उन्हें जेल जाना पड़ा। कहा जाता है कि जेल में रहने के दौरान भी वह 'भगत सिंह जिंदाबाद' के नारे लगाती थीं। ऐतिहासिक तौर पर उनका सबसे उल्लेखनीय योगदान १९४२ के 'भारत छोड़ो' आंदोलन में रहा, जब महात्मा गांधी समेत कई अन्य नेताओं को गिरफ्तार किया गया। ऐसे समय में जब पूरा आंदोलन नेतृत्व विहीन हो चला था, अरुणा आसफ अली ही थीं, जिन्होंने गोवालिया टैंक मैदान में कांग्रेस का झंडा फहराकर स्वतंत्रता की मशाल जलाए रखी।

इसी कारण वे '१९४२ की नायिका' और 'ग्रैंड ओल्ड लेडी ऑफ फ्रीडम मूवमेंट' के नाम से विख्यात हुईं। उनकी गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी हुआ, लेकिन चार वर्षों तक भूमिगत रहकर उन्होंने 'इंकलाब' पत्रिका के जरिए अपने आंदोलन को जीवित रखा। संपत्ति जब्त हो चुकी थी, लेकिन उन्होंने आत्मसमर्पण नहीं किया।

आधुनिक परिदृश्य में अरुणा जी का जीवन विचार और आदर्श की मिसाल है। साल १९४७ में वह दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनीं। इसके बाद, १९४८ में वह कांग्रेस छोड़कर सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हुईं और फिर मजदूरों के आंदोलनों से जुड़ीं। बाद में उनकी पार्टी का भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी में विलय हुआ और वे उसकी केंद्रीय समिति सदस्य और एआईटीयूसी की उपाध्यक्ष बनीं। साल १९५८ में वे दिल्ली की प्रथम महापौर चुनी गईं और नगर विकास का नया मानक स्थापित किया।

राजनीति से इतर वे सामाजिक संस्थाओं से भी सक्रिय रूप से जुड़ी रहीं। 'इंडो-सोवियत कल्चरल सोसाइटी', 'ऑल इंडिया पीस काउंसिल', 'नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमन' जैसी संस्थाओं में उन्होंने नारी सशक्तिकरण, शांति और समानता के लिए कार्य किया। वे दिल्ली से प्रकाशित वामपंथी अखबार 'पैट्रियट' की संस्थापक संपादक रहीं।

अपने असाधारण नेतृत्व और देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान के लिए कई प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त किए। १९६४ में उन्हें लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। १९९२ में उन्हें पद्म विभूषण से नवाजा गया। १९९७ में, मरणोपरांत उन्हें भारत का सर्वोच्च सम्मान, भारत रत्न प्रदान किया गया। इसके अलावा, १९९१ में जवाहरलाल नेहरू ज्ञान पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

अरुणा आसफ अली सिर्फ स्वतंत्रता सेनानी नहीं थीं। वे एक शिक्षिका, पत्रकार, राजनीतिज्ञ, महापौर, संपादक और संगठक भी थीं। लेकिन, इन सब से हटकर वह विचार की एक मशाल थीं। आज जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तब अरुणा आसफ अली का जीवन यह याद दिलाता है कि स्वतंत्रता केवल बाहरी बंधनों से आजादी पर नहीं, आंतरिक साहस और आत्मसम्मान से भी मिलती है।

२९ जुलाई १९९६ को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन, उनका संघर्ष, साहस और उनका विचार आज भी जीवित है।

Point of View

NationPress
24/07/2025

Frequently Asked Questions

अरुणा आसफ अली कौन थीं?
अरुणा आसफ अली एक प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी थीं, जिन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
क्या अरुणा आसफ अली ने कोई पुरस्कार प्राप्त किया?
हाँ, उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्म विभूषण और भारत रत्न शामिल हैं।
अरुणा आसफ अली का जन्म कब हुआ?
उनका जन्म १६ जुलाई १९०९ को हरियाणा के कालका शहर में हुआ।
उन्होंने किस आंदोलन में भाग लिया?
उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन सहित कई अन्य आंदोलनों में भाग लिया।
अरुणा आसफ अली का योगदान क्या था?
उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महिलाओं के अधिकारों और समानता के लिए आवाज उठाई।