क्या चुनाव आयोग राजनीतिक दलों की तरह काम कर रहा है? : टीएस सिंहदेव

सारांश
Key Takeaways
- चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
- राजनीतिक दलों की तरह कार्य करने का आरोप।
- महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में गड़बड़ी के उदाहरण।
- हरियाणा के चुनाव में वीवी पैड की बैटरी की स्थिति संदिग्ध।
- बिहार में एसआईआर प्रक्रिया की चुनौतियाँ।
अंबिकापुर, 23 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के 'हिंदुस्तान में इलेक्शन चोरी' वाले बयान पर सियासत तेज हो गई है। इसपर प्रतिक्रिया देते हुए कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव ने चुनाव आयोग पर तीखा हमला बोला। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग राजनीतिक दल की तरह काम कर रहा है।
टीएस सिंहदेव ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा कि लोग चुनाव आयोग पर विश्वास करते थे। यह एक संवैधानिक संस्था है। ईडी की तरह ही अब चुनाव आयोग से विश्वास हटता जा रहा है। यह एक राजनीतिक दल की तरह काम कर रहा है। उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग मैनिपुलेशन का हिस्सा बन सकता है, यह किसी ने नहीं सोचा था।
उन्होंने महाराष्ट्र विधानसभा का जिक्र करते हुए कहा कि पांच साल में जोड़े जाने वाले वोट महज पांच महीने में जोड़े गए। महाराष्ट्र में शाम 5 बजे के बाद 8 प्रतिशत अतिरिक्त मतदान हुआ। एक घर में कभी भी आठ हजार नाम मतदाता सूची में नहीं जोड़े गए, लेकिन यह मामला महाराष्ट्र के शिरडी विधानसभा में सामने आया।
उन्होंने कहा कि हरियाणा के चुनाव में वीवी पैड की बैटरी वोटिंग के बाद भी 99 प्रतिशत चार्ज रही। साक्ष्य मांगने पर चुनाव आयोग नए नियम पारित कर देता है। लोगों को जानकारी भी नहीं दी गई। गड़बड़ी योजनाबद्ध तरीके से की गई। पहले झारखंड में मुद्दा बनाया गया कि बाहर से लोगों को लाकर बसाया गया, जिनमें रोहिंग्या की बात आती है। बाहर से लोगों को रोकने के लिए केंद्र सरकार जिम्मेदार है, लेकिन इसके बावजूद लोग कैसे देश में आ गए?
कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव ने बिहार एसआईआर को लेकर चुनाव आयोग पर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि बिहार में भाजपा को चुनाव जीतना है, यह उनकी मंशा है। अब बिहार में एसआईआर शुरू कर दिया गया। पुरानी मतदाता सूची को शून्य कर नई वोटर लिस्ट तैयार हो रही है। एसआईआर में ऐसे प्रमाण पत्र मांगे जा रहे हैं, जो लोगों के पास आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। एसआईआर में आधार कार्ड, राशन कार्ड जैसे दस्तावेज को स्वीकार नहीं किया जा रहा है। इन सारी बातों से पता चलता है कि कहीं न कहीं मतदाता सूची को व्यापक पैमाने पर प्रभावित करने की संभावना बनती चली जा रही है।