क्या चेन्नई तट पर बना जहरीला झाग मछुआरों की आजीविका को खतरे में डाल रहा है?

सारांश
Key Takeaways
- चेन्नई के समुद्र तट पर जहरीला झाग फैल गया है।
- झाग का कारण रासायनिक अपशिष्ट है जो कूम नदी से समुद्र में आया है।
- स्थानीय मछुआरों की आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है।
- विशेषज्ञों ने स्वास्थ्य समस्याओं की चेतावनी दी है।
- प्रशासन ने समस्या के समाधान का वादा किया है।
चेन्नई, 23 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिलनाडु में उत्तर-पूर्वी मानसून की शुरुआत के साथ, चेन्नई के समुद्र तट पर एक गंभीर पर्यावरणीय संकट उत्पन्न हुआ है, जो मछुआरों की आजीविका को संकट में डाल सकता है।
सेम्बरमबक्कम झील के अपने अधिकतम जल स्तर पर पहुंचने के बाद, कूम नदी में अतिरिक्त पानी छोड़ा गया है। इस पानी ने नदी में जमा रासायनिक अपशिष्ट को बहाकर पट्टिनप्पक्कम के निकट समुद्र में पहुंचा दिया है। नतीजतन, पट्टिनप्पक्कम से श्रीनिवासपुरम तक लगभग एक किलोमीटर लंबे समुद्र तट पर सफेद जहरीला झाग बन गया है।
श्रीनिवासपुरम में 500 से अधिक परिवार निवास करते हैं, जिनकी आजीविका पूरी तरह से समुद्र पर निर्भर है। इस क्षेत्र के मछुआरे प्रतिदिन मछली पकड़कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। लेकिन समुद्र में फैला यह जहरीला झाग उनकी सेहत और आजीविका के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। यह झाग बच्चों के लिए आकर्षक हो सकता है, लेकिन विशेषज्ञों के अनुसार, इसमें मौजूद रासायनिक तत्व गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न कर सकते हैं।
स्थानीय मछुआरों का कहना है कि झाग के कारण मछलियां कम पकड़ी जा रही हैं, जिससे उनकी आय पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। कुछ मछुआरों ने बताया कि झाग में मौजूद रसायनों से त्वचा में जलन और सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। पर्यावरणविदों का कहना है कि यह झाग अनुपचारित औद्योगिक और घरेलू अपशिष्ट जल के कारण बन रहा है, जो कूम नदी के माध्यम से समुद्र में पहुंच रहा है।
स्थानीय निवासियों ने प्रशासन से इस समस्या के समाधान की मांग की है। उनका कहना है कि अपशिष्ट जल के उपचार के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस मामले की जांच शुरू कर दी है और जल्द ही उचित कार्रवाई का वादा किया है। पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि यदि इस समस्या पर तात्कालिक ध्यान नहीं दिया गया, तो यह समुद्री जीवन और स्थानीय समुदाय के लिए और भी बड़ा खतरा बन सकता है।