क्या जीएसटी 2.0 के मुद्दे पर जयराम रमेश का सवाल सही है, 'क्या परिषद केवल एक औपचारिकता बन गई है?'

सारांश
Key Takeaways
- जयराम रमेश ने जीएसटी 2.0 पर सवाल उठाए हैं।
- जीएसटी परिषद की भूमिका पर चर्चा।
- सरकार को राजस्व सुरक्षा के मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। कांग्रेस के प्रमुख नेता जयराम रमेश ने जीएसटी 2.0 के संदर्भ में केंद्र सरकार की हालिया घोषणाओं पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि कांग्रेस ने जीएसटी 2.0 के पक्ष में लंबे समय से आवाज उठाई है। उन्होंने सवाल उठाया, "क्या जीएसटी परिषद अब सिर्फ एक औपचारिकता बनकर रह गई है?"
जयराम रमेश ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर लिखा, "भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने लंबे समय से जीएसटी 2.0 की वकालत की है, जो दरों की संख्या को घटाए, उपभोग की वस्तुओं पर टैक्स की दरें कम करे, टैक्स चोरी और विवादों को कम करे, इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर को समाप्त करे, एमएसएमई पर प्रक्रियागत बोझ को कम करे और जीएसटी के दायरे का विस्तार करे।" केंद्रीय वित्त मंत्री ने कल शाम जीएसटी परिषद की बैठक के बाद बड़े ऐलान किए। हालांकि, प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2025 के स्वतंत्रता दिवस भाषण में इसके निर्णयों की सारगर्भित घोषणा पहले ही कर दी थी। "क्या जीएसटी परिषद अब सिर्फ एक औपचारिकता बन गई है?"
जयराम रमेश ने जीएसटी 1.0 पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा, "निजी खपत में कमी, निजी निवेश की सुस्त दरें और अंतहीन वर्गीकरण विवादों के बीच केंद्र सरकार को अब यह मानना पड़ा है कि जीएसटी 1.0 अपनी अंतिम सीमा तक पहुंच चुका है। दरअसल, जीएसटी 1.0 की डिजाइन ही त्रुटिपूर्ण थी।" कांग्रेस ने जुलाई 2017 में इस पर ध्यान दिया था जब प्रधानमंत्री ने इसे लागू करने का निर्णय लिया था। इसे गुड एंड सिंपल टैक्स कहा गया था, लेकिन यह ग्रोथ सप्रेसिंग टैक्स साबित हुआ।
उन्होंने कहा, "कल की घोषणाओं ने सुर्खियां बटोरीं, क्योंकि प्रधानमंत्री पहले ही प्री-दीवाली डेडलाइन तय कर चुके थे।" यह माना जा रहा है कि दर कटौती के लाभ उपभोक्ताओं तक पहुंचेंगे। हालांकि, असली जीएसटी 2.0 का इंतजार अभी भी जारी है। "क्या यह नया जीएसटी 1.5 (अगर इसे ऐसा कहा जा सके) निजी निवेश, विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहित करेगा, यह देखना बाकी है।" क्या इससे एमएसएमई पर बोझ कम होगा, यह तो समय ही बताएगा।
जयराम रमेश ने राज्यों की मांग का जिक्र करते हुए कहा, "इस बीच, राज्यों की एक अहम मांग, जो कि सहकारी संघवाद की सच्ची भावना से की गई थी, यानी राजस्व की पूर्ण सुरक्षा के लिए पांच और वर्षों तक मुआवजा अवधि का विस्तार, अभी भी अनसुलझी है।" दर कटौती के बाद इस मांग का महत्व और भी बढ़ गया है।