क्या रविशंकर प्रसाद का विपक्ष से सवाल सही है, जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है तो फिर सड़कों पर क्यों उतरे?

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क्या रविशंकर प्रसाद का विपक्ष से सवाल सही है, जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है तो फिर सड़कों पर क्यों उतरे?

सारांश

क्या विपक्षी दलों का सड़क पर उतरना सही है जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है? भाजपा के रविशंकर प्रसाद ने उठाए सवाल। जानें इस विवाद के पीछे की सच्चाई और राजनीति का खेल।

Key Takeaways

  • वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण
  • सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई
  • राजनीतिक रणनीतियाँ
  • लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान
  • राजद और कांग्रेस का रवैया

पटना, 9 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय जनता पार्टी के सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बुधवार को पटना में संवाददाताओं से कहा कि विपक्षी दलों ने आज वोटर लिस्ट रिवीजन के मुद्दे पर बिहार बंद का आह्वान किया। लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी और राजद नेता तेजस्वी यादव समेत अन्य नेता सड़कों पर हैं, और यह उनका अधिकार है।

प्रसाद ने कहा कि यह समझना आवश्यक है कि देश में सांसद या विधायक का चुनाव कौन करेगा? इसका निर्णय वोटर करते हैं। केवल वही वोट डाल सकता है, जो भारत का नागरिक हो, जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक हो और जो उस स्थान का निवासी हो, जहां से वह वोट डालता है। इसलिए यदि वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण हो रहा है, तो विपक्ष को किस बात की चिंता है? दूसरी ओर, यह महत्वपूर्ण है कि इन सभी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया है, जो उनका अधिकार है।

रविशंकर प्रसाद ने राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी पार्टियों से सवाल उठाया कि क्या ये लोग अदालत पर विश्वास करते हैं या सड़कों पर? जब सुप्रीम कोर्ट में कल सुनवाई होनी है, तो आज विपक्ष सड़क पर उतरकर दबाव बनाने की राजनीति क्यों कर रहा है? क्या ये चाहते हैं कि वोटर लिस्ट में ऐसे लोग बने रहें, जिन्हें उसमें होना नहीं चाहिए, जैसे घुसपैठिए? क्या यह सच नहीं है कि कई बार रोहिंग्या या अन्य लोग गलत तरीके से वोटर लिस्ट में नाम दर्ज करवा लेते हैं? जब पूरी ईमानदारी से कार्य हो रहा है, तो आपत्ति किस बात की है? संकेत स्पष्ट है, जो लोग अवैध रूप से वोटर लिस्ट में शामिल हो गए हैं, उनके माध्यम से ये राजनीति करना चाहते हैं। सीधे शब्दों में कहें तो इन्हें लगता है कि वे बिहार चुनाव नहीं जीत पाएंगे, ठीक उसी तरह जैसे हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में हार का सामना करना पड़ा।

उन्होंने कहा कि देश के सामने यह प्रश्न उठाना आवश्यक है कि यह किस प्रकार की राजनीति है? राजद, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का यह रवैया गंभीर सवाल खड़े करता है। तथ्यात्मक जानकारी के अनुसार बिहार में 7 करोड़ 90 लाख वोटर हैं। इनमें से 4 करोड़ लोगों ने एन्यूमरेशन फॉर्म भरकर जमा कर दिए हैं। यानी 50 प्रतिशत से अधिक लोग हिस्सा ले चुके हैं और अभी 16 दिन बाकी हैं। यह प्रक्रिया तेज़ी से प्रगति पर है। दस्तावेजों की बात करें तो चुनाव आयोग ने स्पष्ट कहा है कि 2003 तक जिनका नाम वोटर लिस्ट में है, उन्हें कोई दस्तावेज देने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उस समय गहन पुनरीक्षण हुआ था। आज देश में 50 करोड़ से अधिक लोगों के बैंक खाते हैं, सभी के पास पेंशन, स्कूल सर्टिफिकेट जैसे दस्तावेज हैं। ये सभी प्रमाण होते हैं। बिहार में 1 लाख बूथ हैं और 4 लाख बीएलओ इस कार्य में लगे हुए हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इस प्रक्रिया के बाद ड्राफ्ट वोटर लिस्ट प्रकाशित की जाएगी, जिसमें सुधार के लिए समय दिया जाएगा। यदि किसी को आपत्ति है, तो वह सुनवाई के लिए आवेदन कर सकता है। यदि कोई रिटर्निंग ऑफिसर के निर्णय से असंतुष्ट है, तो वह जिला कलेक्टर के पास अपील कर सकता है। वहां भी संतोष न होने पर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के पास अपील का विकल्प है। यह पूरी प्रक्रिया सार्वजनिक रूप से बार-बार बताई गई है। सवाल यह है कि ये लोग क्या चाहते हैं? कभी ये कहते हैं कि चुनाव आयोग ठीक काम नहीं कर रहा, वोटर लिस्ट सही नहीं है। कभी ये ईवीएम पर सवाल उठाते हैं और अब मतदाता गहन पुनरीक्षण पर सवाल उठा रहे हैं। आज जब एक गहन और पारदर्शी पुनरीक्षण प्रक्रिया चल रही है और 50 प्रतिशत से अधिक लोगों ने अपनी इच्छा से फॉर्म भर दिए हैं, तब भी इनको आपत्ति क्यों है?

Point of View

लेकिन क्या यह न्यायालय के कार्यों पर प्रभाव डाल सकता है? यह महत्वपूर्ण है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया का सम्मान किया जाए और सभी दलों को अपनी बात कहने का अवसर मिले।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

क्या बिहार में वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण आवश्यक है?
हाँ, वोटर लिस्ट का पुनरीक्षण आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि केवल योग्य मतदाता ही मतदान कर सकें।
क्या विपक्ष का सड़क पर उतरना सही है?
यह राजनीतिक दृष्टिकोण पर निर्भर करता है, लेकिन न्यायालय के फैसले का सम्मान करना भी आवश्यक है।
क्या चुनाव आयोग पर भरोसा किया जा सकता है?
चुनाव आयोग एक स्वतंत्र संस्थान है, और इसके कार्यों पर विश्वास करना आवश्यक है।