क्या आप जानते हैं ‘लिंगम के राजा’ के मंदिर के बारे में, जहां एक साथ पूजे जाते हैं ‘हर’ और ‘हरि’?

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क्या आप जानते हैं ‘लिंगम के राजा’ के मंदिर के बारे में, जहां एक साथ पूजे जाते हैं ‘हर’ और ‘हरि’?

सारांश

भुवनेश्वर का लिंगराज मंदिर, जो ‘हर’ और ‘हरि’ का अद्भुत संगम है, ओडिशा की धार्मिक संस्कृति का प्रतीक है। सावन के इस पावन माह में यहाँ भक्तों की भीड़ उमड़ती है। जानें इस अद्भुत मंदिर की खासियतें और यहाँ मनाए जाने वाले बड़े त्योहारों के बारे में।

Key Takeaways

  • लिंगराज मंदिर भगवान शिव और विष्णु का अद्भुत संगम है।
  • यह मंदिर 11वीं शताब्दी में बना है।
  • गैर-हिंदुओं का प्रवेश निषेध है।
  • महाशिवरात्रि और चंदन यात्रा यहाँ के मुख्य त्योहार हैं।
  • बिंदुसागर सरोवर यहाँ का प्रमुख आकर्षण है।

भुवनेश्वर, 21 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सावन का पावन माह आ गया है। शिवालयों में भक्तों की लंबी कतारें लगी हैं और हर दिशा में ‘हर हर महादेव’ की गूंज सुनाई दे रही है। ओडिशा की राजधानी भुवनेश्वर में स्थित ‘लिंगम के राजा’ का लिंगराज मंदिर है, जहां भक्त भक्ति भाव से पहुंचते हैं और ‘हर’ के साथ ‘हरि’ का दर्शन करते हैं।

लिंगराज यह मंदिर भगवान शिव (हर) और भगवान विष्णु (हरि) के एक स्वरूप हरिहर को समर्पित है, जो शैव और वैष्णव संप्रदायों के मिलन का प्रतीक है। 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा जजाति केशरी ने इस मंदिर का निर्माण कराया था। यहां स्थापित स्वयंभू शिवलिंग का व्यास 8 फुट और ऊंचाई 8 इंच है। कलिंग स्थापत्य शैली में बना यह मंदिर अपनी बारीक नक्काशी और विशाल मीनार के लिए भी प्रसिद्ध है। प्रांगण में स्थित अन्य छोटे मंदिरों से सुसज्जित इस परिसर की भव्यता दूर से ही मन मोह लेती है।

गैर-हिंदुओं का मंदिर में प्रवेश निषेध है। उनके लिए मंदिर परिसर के बाहर एक मंच बनाया गया है, जहां से वे इसकी भव्यता का दर्शन कर सकते हैं।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, लिंगराज मंदिर का उल्लेख ब्रह्म पुराण में मिलता है। एक कथा के अनुसार, देवी पार्वती ने यहीं ‘लिट्टी’ और ‘वसा’ नामक राक्षसों का वध किया था। संग्राम के बाद माता पार्वती को प्यास लगी, जिसके लिए भगवान शिव ने बिंदुसागर सरोवर बनाया, जिसमें सभी पवित्र नदियों का जल समाहित है। यह सरोवर मंदिर के उत्तर में है और चंदन यात्रा जैसे उत्सवों का केंद्र है।

लिंगराज मंदिर में महाशिवरात्रि, अशोकाष्टमी और चंदन यात्रा जैसे त्योहार धूमधाम से मनाए जाते हैं। महाशिवरात्रि के साथ ही सावन समेत अन्य धार्मिक अवसरों पर भी बड़ी संख्या में भक्त यहां पहुंचते हैं। वे उपवास रखकर भगवान शिव को प्रसाद चढ़ाते हैं और रात में महादीप जलाकर उपवास तोड़ते हैं। चंदन यात्रा अक्षय तृतीया से शुरू होने वाला 21 दिवसीय उत्सव है, जिसमें भगवान की मूर्तियों को बिंदुसागर सरोवर में चंदन और जल से स्नान कराया जाता है।

अशोकाष्टमी पर भगवान लिंगराज की रथयात्रा निकलती है, जिसमें उनकी मूर्ति को रामेश्वर मंदिर ले जाया जाता है। मंदिर के पास बिंदुसागर सरोवर और एकाम्र वन उद्यान भी दर्शनीय हैं। एकाम्र वन में औषधीय गुणों वाले पौधे और हिंदू देवी-देवताओं से जुड़े वृक्ष इसे खास बनाते हैं। पर्यटक मुक्तेश्वर, राजरानी, अनंत वासुदेव और परशुरामेश्वर जैसे नजदीकी मंदिरों की मनमोहक वास्तुकला का भी आनंद ले सकते हैं।

Point of View

बल्कि यह ओडिशा की सांस्कृतिक धरोहर का भी प्रतीक है। यह मंदिर न केवल भक्तों के लिए आस्था का केंद्र है, बल्कि पर्यटन के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। सरकार को इसे संरक्षित करने के लिए और प्रयास करने की आवश्यकता है।
NationPress
21/07/2025

Frequently Asked Questions

लिंगराज मंदिर का इतिहास क्या है?
लिंगराज मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में सोमवंशी राजा जजाति केशरी द्वारा किया गया था।
क्या गैर-हिंदुओं का मंदिर में प्रवेश है?
गैर-हिंदुओं का मंदिर में प्रवेश निषेध है, उनके लिए एक विशेष मंच बनाया गया है।
चंदन यात्रा कब होती है?
चंदन यात्रा अक्षय तृतीया से शुरू होकर 21 दिनों तक चलती है।
इस मंदिर में प्रमुख त्योहार कौन से मनाए जाते हैं?
महाशिवरात्रि, अशोकाष्टमी और चंदन यात्रा यहाँ के प्रमुख त्योहार हैं।
लिंगराज मंदिर का विशेष आकर्षण क्या है?
इस मंदिर की विशेषता इसका स्वयंभू शिवलिंग और अद्वितीय वास्तुकला है।