क्या महादेव का ऐसा धाम है जहाँ 6 महीने देवता शिवलिंग की पूजा करते हैं?

सारांश
Key Takeaways
- केदारनाथ का मंदिर 80 फीट ऊँचा है।
- यह पांचवां ज्योतिर्लिंग है।
- यहाँ 6 महीने तक पूजा की जाती है।
- पांडवों की कथा से जुड़ा है।
- गौरी कुंड का पानी हमेशा गर्म रहता है।
नई दिल्ली, 6 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। महादेव का एक अद्भुत ज्योतिर्लिंग जो हिमालय के ऊँचे पर्वतों में स्थित है। यह पवित्र स्थान चार धाम और पंच केदार में से एक है। जहाँ बाबा केदार की अवधारणा है, उस क्षेत्र का ऐतिहासिक नाम "केदार खंड" है। इस 80 फीट ऊँचे मंदिर का निर्माण पाण्डवों द्वारा महाभारत काल के बाद होने की मान्यता है।
कहा जाता है कि यहाँ भगवान शिव का एक अंश विद्यमान है। जबकि भगवान का कूबड़ केदारनाथ में, भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमहेश्वर में और सिर सहित बाल कल्पेश्वर में प्रकट हुए। केदारनाथ और उपरोक्त चार मंदिरों को पंच केदार माना जाता है। यहाँ दर्शन के साथ-साथ नेपाल के काठमांडू में भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन की भी सलाह दी जाती है।
केदारनाथ मंदिर के अंदर एक शंक्वाकार चट्टान है, जिसमें भगवान शिव को उनके सदाशिव रूप में पूजा जाता है। इस धाम का इतिहास भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण, पांडवों और आदिगुरु शंकराचार्य से जुड़ा हुआ है। शिवपुराण की रुद्र संहिता में लिखा है कि प्राचीन काल में बदरीवन में विष्णु भगवान के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर भगवान शिव का रोज पूजन करते थे। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव यहाँ प्रकट हुए।
महादेव का यह पांचवां ज्योतिर्लिंग उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में है। इसे अर्द्धज्योतिर्लिंग कहा जाता है। मान्यता है कि पशुपतिनाथ मंदिर को मिलाकर यह पूर्ण होता है। यह मंदिर दर्शन के लिए 6 महीने तक खुला रहता है, और जब मंदिर दर्शनार्थियों के लिए बंद किया जाता है तो यहाँ एक अखंड दीपक जलाया जाता है। आश्चर्य की बात है कि जब 6 महीने बाद मंदिर का पट खुलता है तो दीपक जलता रहता है।
बाबा केदार जहाँ विराजते हैं, वहाँ मंदाकिनी नदी का उद्गम स्थल है। केदार भगवान शिव का एक अन्य नाम है, जो रक्षक और संहारक माने जाते हैं। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर 400 साल तक बर्फ के नीचे दबा रहा। एक लघु हिमयुग के दौरान यह मंदिर पूरी तरह से बर्फ के नीचे था। वैसे, केदारनाथ का अर्थ "क्षेत्र का स्वामी" या "भगवान" होता है। काशी केदार महात्म्य में कहा गया है कि यहाँ दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
शिवपुराण के अनुसार, जो व्यक्ति केदारनाथ के दर्शन करता है और वहाँ के कुंड का जलपान करता है, वह जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिंग स्त्रोत में केदारनाथ का उल्लेख है।
महाद्रिपार्श्वे च तटे रमन्तं सम्पूज्यमानं सततं मुनीन्द्रैः |
सुरासुरैर्यक्ष महोरगाढ्यैः केदारमीशं शिवमेकमीडे ||
जो भगवान शंकर पर्वतराज हिमालय के समीप मंदाकिनी के तट पर स्थित केदारखंड नामक श्रृंग में निवास करते हैं और मुनीश्वरों द्वारा हमेशा पूजित हैं, देवता-असुर, यक्ष-किन्नर व नाग आदि भी जिनकी पूजा करते हैं, उन्हीं अद्वितीय कल्याणकारी केदारनाथ नामक शिव की मैं स्तुति करता हूँ।
कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर के निकट एक रेतस नामक कुंड है। कुंड के पास ओम नमः शिवाय बोलने पर पानी में बुलबुले उठते हैं। इस कुंड का पानी पीने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं केदारनाथ नाथ की यात्रा जहाँ से शुरू होती है, वहाँ गौरी कुंड स्थित है। गौरी कुंड का पानी हमेशा गर्म रहता है। इस मंदिर के बारे में पुराणों में मान्यता है कि जब छह महीनों तक इस मंदिर के कपाट बंद रहते हैं, तब यहाँ देवतागण महादेव की पूजा करते हैं।
केदारनाथ मंदिर के पीछे शंकराचार्य की समाधि है, जो आध्यात्मिक गुरु और दार्शनिक आदि शंकराचार्य का 'अंतिम विश्राम स्थल' है। इसके साथ ही केदारनाथ धाम के सबसे नज़दीकी पवित्र स्थलों में से एक भैरव नाथ मंदिर है। भैरव नाथ मंदिर के दर्शन के बिना केदारनाथ मंदिर के दर्शन अधूरे माने जाते हैं। भैरव नाथ इस क्षेत्र के संरक्षक देवता और रक्षक हैं।
केदारनाथ मंदिर से वाहन के बाद ट्रैकिंग करके आप उस पवित्र स्थान पर पहुँच सकते हैं जहाँ भगवान शिव ने देवी पार्वती से विवाह किया था। यहाँ अग्नि कुंड में निरंतर आग जलती रहती है। यह त्रियुगीनारायण मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है।