क्या मालेगांव ब्लास्ट केस का फैसला पीड़ितों को मायूस करेगा?

सारांश
Key Takeaways
- 17 साल की कानूनी लड़ाई का अंत
- सभी आरोपियों को बरी किया गया
- पीड़ित परिवारों की निराशा
- सुप्रीम कोर्ट में अपील का निर्णय
- न्याय प्रणाली पर सवाल उठाए गए
मालेगांव, 31 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। मालेगांव बम विस्फोट मामले में 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद आखिरकार राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने गुरुवार को अपना फैसला सुनाया। अदालत ने सबूतों के अभाव में सभी सातों आरोपियों को बरी कर दिया। लेकिन, इस फैसले ने पीड़ित परिवारों को मायूस किया है। स्थानीय लोगों और पीड़ितों ने इसे न्याय नहीं, बल्कि एक बड़ी नाइंसाफी बताया है और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का एलान किया है।
कोर्ट के फैसले पर मौलाना कय्यूम कासमी ने कहा, "हमें जो उम्मीद थी, उस तरह से फैसला नहीं आया। हेमंत करकरे ने जो उम्मीद की किरण दिखाई थी, वो हमारे पक्ष में नहीं आई। मालेगांव के पीड़ित गरीब और मजलूम हैं, लेकिन उनके हक में फैसला नहीं आया। हम अब सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।"
मौलाना कासमी ने आगे कहा कि, "आज का फैसला मालेगांव के लिए मायूसी लेकर आया है। अदालतों पर जो भरोसा था, उसमें भी लोगों के बीच कमी महसूस हो रही है। यह फैसला पंजानामा तैयार करने वालों की गलती का नतीजा है। कई मामलों में आरोपियों को सिर्फ कागजी कमियों के कारण छोड़ दिया गया है। हम मानते हैं कि हुकूमत और अदालतों पर दबाव था, जिससे हमें इंसाफ नहीं मिला।"
पीड़ित के पिता लियाकत शेख ने भी फैसले पर नाराजगी जताते हुए कहा, "हमारे साथ गलत हुआ है। दोषियों को सजा मिलनी चाहिए थी। उन्हें सबूतों के साथ पकड़ा गया था। यह सरासर नाइंसाफी है। अब हम सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे।"
एक अन्य पीड़ित के पिता ने कहा कि 17 साल के बाद कोर्ट का यह फैसला हमारे लिए चौंकाने वाला है। हमें इंसाफ नहीं मिला है। हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे। हर हाल में हमें न्याय चाहिए। परिवार के एक सदस्य ने कहा कि आज कोर्ट का जो फैसला आया है, वह न्याय नहीं है। हम इंसाफ चाहते हैं और इसके लिए हम सुप्रीम कोर्ट जाएंगे।