क्या मुक्ति-गुप्तेश्वर महादेव ऑस्ट्रेलिया का 13वां ज्योतिर्लिंग है? मंदिर की शैली अद्भुत है
सारांश
Key Takeaways
- मुक्ति-गुप्तेश्वर महादेव मंदिर भगवान शिव का 13वां ज्योतिर्लिंग है।
- यह मंदिर ऑस्ट्रेलिया में स्थित है और इसकी नींव 1997 में रखी गई थी।
- मंदिर में 1,128 छोटे मंदिर हैं जो अद्वितीय हैं।
- यहाँ हर सुबह भव्य पूजा होती है।
- कुंड में भक्तों के लिखे 20 लाख नोट हैं।
नई दिल्ली, 21 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत के विभिन्न हिस्सों में भगवान शिव के पवित्र स्थल 12 ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान शिव को समर्पित 13वां ज्योतिर्लिंग भी है?
अभी तक हमारे देश में 12 ज्योतिर्लिंगों की पवित्र यात्रा की जाती है, लेकिन ऑस्ट्रेलिया में भगवान शिव को समर्पित 13वां ज्योतिर्लिंग स्थापित है, जिसे लगभग 26 साल पुराना माना जाता है।
ऑस्ट्रेलिया के सिडनी के पास मिंटो में मुक्ति-गुप्तेश्वर महादेव मंदिर 13वें ज्योतिर्लिंग के रूप में स्थापित है। इस मंदिर में भगवान शिव को समर्पित 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियां भी दर्शाई गई हैं, और भक्त मंदिर की भव्यता और आस्था से खींचे चले आते हैं।
स्थानीय लोग इस मंदिर को भगवान शिव का 13वां ज्योतिर्लिंग मानते हैं। यहाँ बनाए गए शिवलिंग भगवान शिव के 108 रुद्र नामों और 1008 सहस्त्र नामों को दर्शाते हैं। हर मूर्ति भगवान शिव के एक छोटे मंदिर का प्रतिनिधित्व करती है, और इस प्रकार मुक्ति-गुप्तेश्वर मंदिर के अंदर कुल 1,128 छोटे मंदिर हैं, जो इसे अद्वितीय बनाते हैं। हर सुबह पुजारी 13वें ज्योतिर्लिंग, अन्य 12 ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृतियों, 108 रुद्र शिवों और 1008 सहस्त्र नामों की पूजा करते हैं।
मंदिर के गर्भगृह में एक छिपा हुआ कुंड है, जिसमें भक्तों के द्वारा लिखे गए 20 लाख नोट हैं, जिन पर 'ओम नमः शिवाय' मंत्र लिखा है। माना जाता है कि इस कुंड में ऑस्ट्रेलिया की 81 पवित्र नदियों का जल और पांच महासागरों का पानी भी है, जिसमें आठ कीमती धातुएं मिली हैं। इसके अलावा, मंदिर के पास भगवान गणेश का मंदिर भी है, जिसका निर्माण 1997 में प्रारंभ हुआ था, जबकि शिव मंदिर में भगवान शिव की प्राण प्रतिष्ठा 1999 में हुई थी।
मुक्ति-गुप्तेश्वर महादेव मंदिर की नींव 1997 में रखी गई थी, जब ऑस्ट्रेलिया में हिंदू देवी-देवताओं के प्रति बढ़ती भक्ति देखी गई थी। उस समय नेपाल के तत्कालीन राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह ने भगवान शिव की प्रतिमा भेंट की थी, जिसके 2 साल बाद, 1999 में मंदिर का निर्माण कार्य पूरा हुआ और महाशिवरात्रि के दिन प्रतिमा की प्राण-प्रतिष्ठा की गई।