क्या दशरथ मांझी ने पहाड़ को चुनौती देकर प्रेम और संकल्प की अमर गाथा लिखी?

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क्या दशरथ मांझी ने पहाड़ को चुनौती देकर प्रेम और संकल्प की अमर गाथा लिखी?

सारांश

दशरथ मांझी की कहानी एक साधारण मजदूर की है, जिसने अपने संकल्प और प्रेम से पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया। यह प्रेरणादायक गाथा संघर्ष और दृढ़ता की मिसाल है, जो हमें सिखाती है कि अगर ठान लिया जाए, तो कुछ भी असंभव नहीं।

Key Takeaways

  • संघर्ष का महत्व
  • दृढ़ संकल्प से सभी बाधाएं पार की जा सकती हैं
  • समाज में बदलाव लाने की क्षमता
  • प्यार से प्रेरित कार्य
  • सकारात्मक सोच की ताकत

नई दिल्ली, 17 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के गया जिले के गहलौर गांव में जन्मे दशरथ मांझी एक अद्वितीय व्यक्तित्व हैं, जिनकी कहानी असंभव को संभव करने की है। एक साधारण मजदूर, जो समाज की सबसे निचली पायदान पर खड़ा था, ने अपनी अटूट इच्छा शक्ति से प्रेरित होकर एक पहाड़ को काटकर रास्ता बना दिया। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके गांव के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन गई।

दशरथ मांझी का जीवन गरीबी और सामाजिक भेदभाव से भरा था। मुसहर समुदाय से ताल्लुक रखने वाले दशरथ को जातिगत व्यवस्था में हाशिए पर रखा गया था। उनके गांव गहलौर को वजीरगंज के निकटतम कस्बे से जोड़ने के लिए 55 किलोमीटर का खतरनाक रास्ता तय करना पड़ता था, क्योंकि बीच में एक विशाल पहाड़ खड़ा था। इस पहाड़ ने गांव वालों को स्कूल, अस्पताल और बाजार जैसी बुनियादी सुविधाओं से वंचित रखा था।

दशरथ मांझी की यह कहानी एक दुखद घटना से शुरू होती है। 1960 में, उनकी पत्नी फगुनिया एक दिन खाना और पानी लेकर पहाड़ के रास्ते जा रही थीं। इस दौरान उनका पैर फिसल गया और पानी का मटका गिरकर फूट गया। इस घटना ने दशरथ को झकझोर दिया, और उन्होंने ठान लिया कि वह इस पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे, ताकि कोई और इस दर्द को न झेले।

दशरथ मांझी ने अपनी तीन बकरियों को बेचकर छेनी-हथौड़ी खरीदी और अकेले पहाड़ को काटना शुरू कर दिया। वह रोज सुबह छेनी-हथौड़ी लेकर जाते थे, और लोग उन्हें पागल कहकर बुलाने लगे। लेकिन उनकी मेहनत रंग लाई, और कुछ ग्रामीणों ने उनकी मदद करनी शुरू कर दी।

1982 में 22 साल की मेहनत के बाद, दशरथ ने 360 फीट लंबा, 30 फीट चौड़ा और 25 फीट ऊंचा रास्ता बना दिया। इस रास्ते ने गहलौर और वजीरगंज के बीच की दूरी को 55 किलोमीटर से घटाकर मात्र 15 किलोमीटर कर दिया। यह रास्ता न केवल उनके गांव, बल्कि आसपास के 60 गांवों के लिए फायदेमंद साबित हुआ।

दशरथ मांझी की इस उपलब्धि ने उन्हें राष्ट्रीय पहचान दिलाई। बिहार सरकार ने इस रास्ते को 'दशरथ मांझी पथ' नाम दिया और उन्हें सम्मानित किया। 2006 में तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें सम्मान दिया। 2007 में कैंसर के कारण उनका निधन हो गया, लेकिन उनकी विरासत आज भी जीवित है।

Point of View

बल्कि यह समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानता के खिलाफ एक आवाज भी है। एक साधारण मजदूर ने अपने संकल्प से यह सिद्ध कर दिया कि यदि इरादा मजबूत हो, तो किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है।
NationPress
16/08/2025

Frequently Asked Questions

दशरथ मांझी कौन थे?
दशरथ मांझी बिहार के गया जिले के गहलौर गांव के एक साधारण मजदूर थे, जिन्होंने अपने संकल्प से एक पहाड़ को काटकर रास्ता बनाया।
दशरथ मांझी ने यह रास्ता क्यों बनाया?
उन्होंने अपनी पत्नी की मृत्यु के बाद यह ठान लिया कि वह पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे ताकि कोई और इस दर्द को न झेले।
दशरथ मांझी की उपलब्धि का क्या महत्व है?
उनकी उपलब्धि ने गहलौर और आसपास के गांवों को बुनियादी सुविधाओं से जोड़ दिया, जिससे लोगों का जीवन आसान हो गया।
दशरथ मांझी को किस सम्मान से नवाजा गया?
बिहार सरकार ने उनके द्वारा बनाए गए रास्ते का नाम 'दशरथ मांझी पथ' रखा और उन्हें सम्मानित किया।
दशरथ मांझी का योगदान किस प्रकार का था?
उनका योगदान न केवल उनके गांव के लिए, बल्कि पूरे देश के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो संघर्ष और दृढ़ता का प्रतीक है।