क्या परमवीर मनोज ने 24 साल की उम्र में पहाड़ सा हौसला दिखाकर कारगिल में पाक को पस्त किया?

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क्या परमवीर मनोज ने 24 साल की उम्र में पहाड़ सा हौसला दिखाकर कारगिल में पाक को पस्त किया?

सारांश

कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की वीरता और साहस की कहानी जो हर भारतीय को प्रेरित करती है। 24 साल की उम्र में, उन्होंने कारगिल युद्ध में अद्वितीय साहस का परिचय दिया और अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे का मान बढ़ाया। जानिए उनकी शौर्यगाथा और बलिदान का महत्व।

Key Takeaways

  • कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की वीरता को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
  • उन्होंने 24 वर्ष की आयु में अद्वितीय साहस का परिचय दिया।
  • उनकी शहादत ने भारतीय सेना की विजय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • उनके बलिदान को याद रखने के लिए लखनऊ में स्मारक स्थापित किए गए हैं।
  • उनकी शौर्यगाथा हर भारतीय के लिए प्रेरणा है।

नई दिल्ली, 24 जून (राष्ट्र प्रेस)। वीरता, साहस और देशभक्ति की चर्चा करते समय भारत माता के उन सपूतों का स्मरण होता है, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे का मान बढ़ाया। इन्हीं में से एक हैं कैप्टन मनोज कुमार पांडेय, जिनकी वीरता, साहस और देशभक्ति को देश हमेशा याद करेगा।

परमवीर चक्र से सम्मानित कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की शौर्यगाथा हर भारतीय के लिए प्रेरणा का स्रोत है। केवल 24 वर्ष की आयु में, उन्होंने खालूबार की दुर्गम चोटियों पर दुश्मनों की नाक में दम कर दिया और अपने प्राणों की आहुति देकर तिरंगे की शान बढ़ाई।

कैप्टन मनोज कुमार पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गांव में हुआ था। उनके पिता, गोपीचंद पांडेय, एक छोटे व्यवसायी थे, जबकि मां, मोहिनी पांडेय ने उनमें वीरता और देशभक्ति की भावना को जागृत किया। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा लखनऊ के सैनिक स्कूल और रानी लक्ष्मीबाई मेमोरियल सीनियर सेकेंडरी स्कूल से प्राप्त की। 1990 में, उन्हें उत्तर प्रदेश एनसीसी जूनियर डिवीजन का सर्वश्रेष्ठ कैडेट चुना गया।

12वीं कक्षा के बाद, मनोज ने राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए), खड़कवासला, पुणे में प्रवेश लिया। एनडीए के इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि वे सेना में क्यों शामिल होना चाहते हैं, तो उन्होंने कहा, "परमवीर चक्र जीतने के लिए।" यह बात श्रींजॉय चौधरी की पुस्तक "डिस्पैचेज फ्रॉम कारगिल" में उल्लेखित है। प्रशिक्षण पूरी करने के बाद, 1997 में उन्हें 1/11 गोरखा राइफल्स की पहली बटालियन में लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन मिला। उनकी पहली तैनाती कश्मीर घाटी में हुई, जहां उन्होंने आतंकवादियों के खिलाफ कई सफल अभियान चलाए।

1999 के कारगिल युद्ध में, कैप्टन मनोज पांडेय को खालूबार चोटी पर कब्जा करने का कार्य सौंपा गया, जो 10,000 फीट से अधिक ऊँचाई पर स्थित थी। यह चोटी रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण थी, क्योंकि इससे पाकिस्तानी घुसपैठियों को रसद आपूर्ति में बाधा पहुंचाई जा सकती थी।

2-3 जुलाई 1999 की रात, मनोज ने अपनी बटालियन के साथ आगे बढ़ना शुरू किया। भीषण ठंड और दुश्मन की गोलीबारी के बावजूद, उन्होंने निडरता से नेतृत्व किया। अपनी खुकरी से चार दुश्मन सैनिकों को मार गिराया और तीन बंकरों को नष्ट कर दिया। हालांकि, तीसरे बंकर को नष्ट करते समय उनके कंधे और पैर में गोलियां लगीं, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। चौथे बंकर पर ग्रेनेड फेंकते समय उन्हें दुश्मन की मशीनगन से गोली लगी और वे शहीद हो गए।

उनके बलिदान से खालूबार पर तिरंगा लहराया और भारतीय सेना ने छह बंकरों पर कब्जा कर लिया, जिसमें कई दुश्मन सैनिक मारे गए और एक बड़ा हथियारों का जखीरा भी जब्त किया गया।

हालांकि, कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की परमवीर चक्र जीतने की ख्वाहिश पूरी हुई, लेकिन उन्हें मरणोपरांत यह सर्वोच्च वीरता सम्मान दिया गया। 26 जनवरी 2000 को तत्कालीन राष्ट्रपति केआर नारायणन ने उनके पिता को यह सम्मान सौंपा।

उनकी वीरता को सम्मानित करने के लिए लखनऊ के सैनिक स्कूल का नाम बदलकर कैप्टन मनोज कुमार पांडेय यूपी सैनिक स्कूल रखा गया। लखनऊ के गोमती नगर में उनके नाम पर एक चौराहा और उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई है। 2003 में बनी फिल्म एलओसी कारगिल में उनके किरदार को अभिनेता अजय देवगन ने निभाया और अमर चित्र कथा ने उनकी वीरता पर एक कॉमिक बुक भी प्रकाशित की।

मनोज की डायरी में लिखे उनके विचार उनकी देशभक्ति और साहस को दर्शाते हैं। उन्होंने लिखा था, "कुछ लक्ष्य इतने महान होते हैं कि उन्हें पाने में विफल होना भी गौरवपूर्ण होता है।" 1999 युद्ध के नायकों में से एक, कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की शौर्यगाथा न केवल कारगिल युद्ध की विजय का प्रतीक है, बल्कि यह हर भारतीय को देश के लिए समर्पण और बलिदान की भावना सिखाती है। उनकी वीरता और परमवीर चक्र की उपलब्धि आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।

Point of View

बल्कि हर भारतीय के दिल में गूंजती है। यह संघर्ष और बलिदान की भावना को सुदृढ़ करती है, जो हमारी राष्ट्रीय पहचान का अभिन्न हिस्सा है।
NationPress
24/06/2025

Frequently Asked Questions

कैप्टन मनोज कुमार पांडेय का जन्म कब हुआ?
उनका जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रुधा गांव में हुआ था।
कैप्टन मनोज ने किस युद्ध में शहादत दी?
कैप्टन मनोज कुमार पांडेय ने 1999 के कारगिल युद्ध में शहादत दी।
उन्हें कौन सा पुरस्कार मिला?
उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया।
उनका योगदान किस प्रकार से याद किया जाता है?
उनकी वीरता को सम्मानित करने के लिए लखनऊ के सैनिक स्कूल का नाम बदलकर उनके नाम पर रखा गया है।
कैप्टन मनोज की कहानी का क्या महत्व है?
उनकी कहानी हमें देशभक्ति और साहस का पाठ पढ़ाती है और आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करती है।