क्या पिंगली वेंकैया ने भारत को तिरंगा देकर राष्ट्र का मान बढ़ाया?

सारांश
Key Takeaways
- पिंगली वेंकैया का जन्म 2 अगस्त 1878 को हुआ।
- उन्होंने 1921 में तिरंगे का डिज़ाइन प्रस्तुत किया।
- तिरंगे के रंगों का गहरा अर्थ है।
- उनका निधन 4 जुलाई 1963 को हुआ।
- भारत सरकार ने 2009 में उनका योगदान मान्यता दी।
नई दिल्ली, 3 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। 4 जुलाई को देश स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया को विशेष तरीके से याद किया जाता है। ये वही महान व्यक्तित्व हैं, जिन्होंने भारत को 'तिरंगा' प्रदान किया। तीन रंगों वाला राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा का डिज़ाइन तैयार करने वाले पिंगली वेंकैया की 4 जुलाई को पुण्यतिथि है।
उनका जन्म 2 अगस्त 1878 को आंध्र प्रदेश के मछलीपट्टनम के निकट भटला पेनुमारु में हुआ था। वे एक स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ शिक्षक, लेखक और कृषि वैज्ञानिक भी थे। ग्रामीण आंध्र प्रदेश में पले-बढ़े वेंकैया ने बाद में कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी से शिक्षा प्राप्त की। इसी दौरान उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई।
जब भारत अपनी आज़ादी के लिए संघर्षरत था, तब एक राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता महसूस की गई। उस समय झंडे के कुछ प्रारूपों पर विचार किया गया। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने पिंगली वेंकैया से भारत के लिए एक राष्ट्रीय ध्वज तैयार करने का आग्रह किया। इस पर वेंकैया ने अपने प्रयास शुरू किए। 5 साल तक दुनिया भर के राष्ट्रीय झंडों का अध्ययन करने के बाद लगभग 30 डिज़ाइन प्रस्तुत किए गए। इनमें से तिरंगे को राष्ट्रीय ध्वज के रूप में चुना गया।
1921 में पिंगली वेंकैया द्वारा बनाए गए ध्वज को पहले के मुकाबले कहीं अधिक पहचानने योग्य बनाया गया। इसमें तीन रंगों की धारियां थीं, जो भारत के विभिन्न समुदायों की एकता का प्रतीक थीं। बीच में चरखा आर्थिक आत्मनिर्भरता का संदेश देता था।
1931 में इस ध्वज को अंतिम रूप दिया गया। इसमें केसरिया रंग को साहस, सफेद को शांति और हरे रंग को उर्वरता और समृद्धि का प्रतीक माना गया। धर्म चक्र ने चरखे की जगह ली, जो धर्म, न्याय और प्रगति के शाश्वत चक्र का प्रतीक है। इसे 22 जुलाई 1947 को भारतीय संविधान सभा की बैठक में अपनाया गया था।
15 अगस्त 1947 की सुबह 5:30 बजे फहराया गया तिरंगा एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक था। यह क्षण खुशी और गर्व से भरा था। आज़ादी के दीवानों की आंखों के सामने वह यात्रा तैर गई जो लंबी और कठिन थी। उस मुश्किल रास्ते पर चलकर ही स्वतंत्र भारत का सपना साकार हुआ था। यही तिरंगा आज भारत की पहचान है।
कहा जाता है कि देश के प्रति अपने योगदान और समर्पण के बावजूद पिंगली वेंकैया गरीबी और गुमनामी में रहे। उन्होंने अपने अंतिम दिन बेहद सादगी के साथ बिताए और 4 जुलाई 1963 को उनका निधन हो गया। 2009 में भारत सरकार ने उनके योगदान को याद करते हुए एक डाक टिकट जारी किया था।