क्या पृथ्वीराज कपूर भारतीय सिनेमा के 'पापाजी' थे, जो झोला वाले फकीर बन गए?
सारांश
Key Takeaways
- पृथ्वीराज कपूर भारतीय सिनेमा के एक महान अभिनेता थे।
- उन्होंने थिएटर से अपने करियर की शुरुआत की।
- उनकी गहरी आवाज और अभिनय क्षमता ने उन्हें पहचान दिलाई।
- पृथ्वी थिएटर्स की स्थापना उनके सपने का हिस्सा थी।
- उन्हें मरणोपरांत दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
नई दिल्ली, 2 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय सिनेमा की वह प्रमुख हस्ती, जिसकी गहरी आवाज में संवादों की प्रस्तुति के सामने अन्य कलाकार भी बेजान लगते थे। यह कहानी है पृथ्वीराज कपूर की, जिनकी अभिनय क्षमता ने सिनेमा की दुनिया को और अधिक मजबूत किया।
3 नवंबर 1906 को अविभाजित भारत के पंजाब (वर्तमान में पाकिस्तान का फैसलाबाद) में जन्मे पृथ्वीराज कपूर को बचपन से ही अभिनय का शौक था। जब एक शिक्षित और आकर्षक युवक बंबई (अब मुंबई) फिल्म नगरी पहुंचा, तो वह शीघ्र ही सहायक कलाकार से हीरो बन गया।
साइलेंट फिल्म के दौर में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी और छोटे से छोटे अभिनय से अपनी काबिलियत को दर्शाया। पृथ्वीराज कपूर ने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की। पहली बोलती फिल्म 'आलम आरा' हो या केएल सहगल के साथ 'प्रेसिडेंट' या 'दुश्मन', हर फिल्म में उन्होंने अपनी अनूठी शैली और गहरी आवाज के लिए पहचान बनाई।
उनके जानने वाले उन्हें 'पापाजी' कहकर पुकारते थे, शायद इसलिए कि वह हमेशा सहायता करते थे और जूनियर कलाकारों के अधिकार के लिए बात करते थे।
हालांकि, उनके जीवन में एक ऐसा किस्सा है जब वह थिएटर के बाहर झोली लेकर खड़े होते थे। 1944 में पृथ्वी थिएटर्स की स्थापना करने के बाद, उन्होंने अपने सपनों को पूरा करने के लिए हर चीज़ दांव पर लगा दी।
कमाई इतनी नहीं थी कि वह अच्छे से गुजारा कर सकें। उनकी आमदनी का अधिकांश भाग थिएटर के काम में लग जाता था।
हालात उनके सामने पहाड़ जैसे थे और टिके रहने के लिए उन्होंने फकीर वाला झोला उठा लिया। जब लोग शो देखकर बाहर निकलते थे, तो खुद पृथ्वीराज झोली लेकर खड़े हो जाते। समाचार पत्रों में इस कहानी का उल्लेख मिलता है।
पृथ्वी थिएटर्स 1960 तक 16 वर्षों तक चला। 5,982 दिनों में 2,662 शो किए गए। पृथ्वीराज कपूर ने हर एक शो में मुख्य भूमिका निभाई, यानी औसतन हर तीसरे दिन एक शो। हालांकि, 1960 में उनके स्वास्थ्य में गिरावट के कारण इसे बंद करना पड़ा। 29 मई 1971 को उन्हें इस दुनिया से विदाई मिली।
पृथ्वीराज कपूर को सिनेमा और थिएटर में उनके योगदान के लिए 1972 में मरणोपरांत दादासाहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्होंने 1954 और 1956 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और 1969 में भारत सरकार से 'पद्म भूषण' पुरस्कार भी प्राप्त किया।