क्या रागेश्वरी लूंबा की बीमारी ने उनके करियर को बर्बाद किया? अब वे लोगों को कर रही हैं जागरूक
सारांश
Key Takeaways
- रागेश्वरी लूंबा की कहानी प्रेरणा का स्रोत है।
- बीमारियों के खिलाफ लड़ाई में हार नहीं माननी चाहिए।
- सोशल मीडिया का उपयोग जागरूकता फैलाने के लिए किया जा सकता है।
- संगीत और कला में समर्पण से सफलता मिलती है।
- दुर्लभ बीमारियों के प्रति जागरूकता आवश्यक है।
नई दिल्ली, 15 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। बॉलीवुड में कई ऐसे चेहरे आए हैं जिन्होंने अपने समय में अपनी खूबसूरती और अदाकारी से दर्शकों का दिल जीता। ऐसी ही एक एक्ट्रेस और सिंगर हैं रागेश्वरी लूंबा, जो आज सोशल मीडिया के माध्यम से ट्रामा और बीमारियों से निपटने के लिए थेरेपी के बारे में जानकारी साझा कर रही हैं।
रागेश्वरी लूंबा का जन्म एक संगीत परिवार में हुआ था, जहां उनके पिता, त्रिलोक सिंह लूंबा, एक प्रसिद्ध भारतीय संगीतकार और गायक रहे हैं, जो राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता भी हैं। उनकी मधुर आवाज बचपन से ही उनके साथ थी। पढ़ाई के बाद, उन्होंने मॉडलिंग से अपने करियर की शुरुआत की और कई विज्ञापनों में दिखाई दीं।
उनका पहला बड़ा ब्रेक 1993 में फिल्म 'आंखें' से मिला, जिसमें उन्होंने अक्षय कुमार और चंकी पांडे के साथ काम किया। इसके बाद, रागेश्वरी ने 'मैं अनाड़ी तू खिलाड़ी' और 'दिल कितना नादान' जैसी फिल्मों में भी काम किया। वर्ष 2002 में, वे 'तुम जियो हजारों साल' में नजर आईं। उन्होंने अपनी अभिनय और गायकी से दर्शकों का दिल जीता।
22 साल की उम्र में, उन्होंने अपना पॉप एल्बम 'दुनिया' जारी किया, जिसने बड़ी सफलता प्राप्त की। इसके बाद, 1997 में उनके एल्बम 'वाई टू के' ने भी धूम मचाई। उन्होंने कई पॉप गाने जारी किए, जिनमें 'प्यार का रंग', 'रफ्तार', 'चाहत', और 'कुड़ी ए पंजाब दी' शामिल हैं।
हालांकि, रागेश्वरी की जिंदगी में एक घटना ने सब कुछ बदल दिया। 1993 में, उन्हें एक दुर्लभ बीमारी 'बेल्स पाल्सी' का पता चला, जिसने उनके मुंह और गले को बुरी तरह प्रभावित किया। डॉक्टरों ने कहा था कि वे कभी गाना नहीं गा पाएंगी, लेकिन रागेश्वरी ने हार नहीं मानी और खुद को बीमारी से पूरी तरह मुक्त किया। आज, वे फिल्मों से दूर अपने परिवार के साथ समय बिता रही हैं और सोशल मीडिया के जरिए लोगों को दुर्लभ बीमारियों के बारे में जागरूक कर रही हैं।