क्या राहुल गांधी पर 'वोट चोरी' के आरोप सही हैं?

सारांश
Key Takeaways
- राहुल गांधी के आरोपों पर भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव की प्रतिक्रिया महत्वपूर्ण है।
- कांग्रेस का वोट प्रतिशत लगातार घट रहा है।
- क्षेत्रीय दलों का उभार कांग्रेस की गिरावट का मुख्य कारण है।
- लोकतंत्र में जनता अपने विकल्पों का चयन करती है।
- 2014 और 2019 के चुनाव परिणाम कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण रहे हैं।
नई दिल्ली, 12 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी द्वारा लगाए गए 'वोट चोरी' के आरोपों पर भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की। उन्होंने कहा कि यह आरोप मुख्यतः कांग्रेस पर ही अधिक सटीक बैठता है।
भाजपा नेता जीवीएल नरसिम्हा राव ने राष्ट्र प्रेस से संवाद करते हुए कहा, "कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी द्वारा किया गया 'वोट चोरी' का आरोप, वास्तव में उन पर ही अधिक लागू होता है। यह केवल एक झूठा प्रचार है। यदि हम कांग्रेस की वोट परफॉर्मेंस का गहराई से अध्ययन करें, तो स्पष्ट है कि 1984 में कांग्रेस का प्रदर्शन अपने उच्चतम स्तर पर था, लेकिन 1989 के बाद से कांग्रेस का वोट लगातार गिरता गया, और 2014 तक आते-आते, कांग्रेस अपने मूल वोट बैंक का लगभग दो-तिहाई हिस्सा खो चुकी थी। उन्होंने 1989 में अपने वोट को वीपी सिंह के कारण गंवाया। इसके बाद, बिहार में लालू प्रसाद और उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव ने उनका वोट प्रतिशत कम किया, जबकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और तमिलनाडु में करुणानिधि के कारण भी उन्होंने वोट खोया। मैं पूछता हूं कि क्या ये लोग कांग्रेस पार्टी के लिए 'वोट चोर' कहे जाएंगे।"
उन्होंने आगे कहा, "कांग्रेस का वोट बैंक किसी 'चोरी' के कारण नहीं गया, बल्कि क्षेत्रीय दलों के उभार और उनकी लोकप्रियता के कारण घटा है। यदि राहुल गांधी की शब्दावली में देखा जाए, तो यह कहा जाएगा कि कांग्रेस से वोट खींचने वाले सभी क्षेत्रीय दल 'चोर' हैं। लेकिन सच्चाई यह है कि लोकतंत्र में जनता अपने विकल्प चुनती है और कांग्रेस की गिरावट उसकी नीतियों, नेतृत्व और संगठनात्मक कमजोरियों का परिणाम है।"
जीवीएल नरसिम्हा राव ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों का उल्लेख किया, जब कांग्रेस क्रमशः 44 और 52 सीटों तक सिमट गई, जबकि भाजपा ने 282 और 303 सीटें जीतीं। उन्होंने कहा कि 2024 में भी, कांग्रेस का प्रदर्शन सुधार के बावजूद (99 सीटें) भाजपा के मुकाबले कमजोर रहा, जो क्षेत्रीय दलों की ताकत और जनता के बदलते रुझान को स्पष्ट रूप से दर्शाता है।