क्या राज ठाकरे के खिलाफ गैर-मराठी भाषियों पर हमले का मामला सुप्रीम कोर्ट में आगे बढ़ेगा?

सारांश
Key Takeaways
- याचिका का ठुकराया जाना दर्शाता है कि कानूनी प्रक्रियाओं का पालन आवश्यक है।
- राज ठाकरे की राजनीतिक स्थिति पर सवाल उठता है।
- सुप्रीम कोर्ट का निर्णय महत्वपूर्ण है और आगे की राजनीतिक दिशा तय कर सकता है।
नई दिल्ली, 11 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के नेता राज ठाकरे और उनकी पार्टी पर गैर-मराठी भाषियों के खिलाफ कथित हमलों से संबंधित एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में आगे नहीं बढ़ पाई। शीर्ष अदालत ने इस पर सोमवार को सुनवाई करने से इनकार कर दिया, जिसके बाद याचिकाकर्ता ने याचिका वापस ले ली।
इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि राज ठाकरे की भूमिका गैर-मराठी भाषियों पर हो रहे हमलों में है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया था कि राज ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सख्त कार्रवाई की जाए। इसके साथ ही, चुनाव आयोग को निर्देश देने की मांग की गई थी कि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना की मान्यता रद्द की जाए।
याचिकाकर्ता ने बताया कि उन्होंने संबंधित अधिकारियों से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हुई, जिस कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
याचिका में 5 जुलाई को शिवसेना (यूबीटी) नेता और राज ठाकरे के चचेरे भाई उद्धव ठाकरे द्वारा आयोजित विजय रैली का भी जिक्र किया गया। इसमें कहा गया था कि राज ठाकरे ने गैर-मराठी बोलने वालों की पिटाई को उचित ठहराया।
बॉम्बे हाईकोर्ट के वकील घनश्याम उपाध्याय ने यह याचिका दायर की थी। इसमें राज ठाकरे के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने की मांग की गई थी। उन्होंने आरोप लगाया था कि राज ठाकरे ने हिंदी भाषी लोगों के खिलाफ नफरत फैलाने और हिंसा भड़काने वाले बयान दिए। उन्होंने कहा कि केंद्र और महाराष्ट्र की सरकारों को सुनिश्चित करना चाहिए कि राज और उनकी पार्टी ऐसी घटनाओं को अंजाम न दें और इन घटनाओं से कठोरता से निपटा जाए।
याचिकाकर्ता ने भारत के चुनाव आयोग और महाराष्ट्र राज्य चुनाव आयोग से एमएनएस की राजनीतिक मान्यता को वापस लेने का निर्देश देने का भी अनुरोध किया था।