क्या राजेंद्र यादव थे बौद्धिक विद्रोह के सिपाही और 'नई कहानी' के अंतिम सूत्रधार?

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क्या राजेंद्र यादव थे बौद्धिक विद्रोह के सिपाही और 'नई कहानी' के अंतिम सूत्रधार?

सारांश

क्या राजेंद्र यादव ने हिंदी साहित्य में बौद्धिक विद्रोह का नया अध्याय लिखा? उनकी संपादकीय क्षमता और विचारशीलता ने 'हंस' को क्रांतिकारी मंच बना दिया। जानिए कैसे उन्होंने 'नई कहानी' आंदोलन को नई दिशा दी।

Key Takeaways

  • राजेंद्र यादव ने हिंदी साहित्य में क्रांतिकारी बदलाव लाया।
  • उन्होंने 'हंस' पत्रिका के माध्यम से विद्रोह की आवाज उठाई।
  • उनका योगदान 'स्त्री-विमर्श' और 'दलित साहित्य' को मुख्यधारा में लाने में महत्वपूर्ण रहा।
  • उनके उपन्यास समाज में व्याप्त समस्याओं को उजागर करते हैं।
  • राजेंद्र यादव का जीवन साहित्यिक संघर्ष का प्रतीक रहा।

नई दिल्ली, २७ अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। वर्ष १९८६, दिनांक ३१ जुलाई। यह मुंशी प्रेमचंद की जयंती थी और हिंदी साहित्य जगत में एक महत्वपूर्ण घटना घटित होने जा रही थी, जिसने अगले तीन दशकों तक वैचारिक विवादों को जन्म दिया। प्रतिष्ठित पत्रिकाएं आर्थिक संकट के चलते एक-एक कर बंद हो रही थीं, तब 'नई कहानी' आंदोलन के एक प्रमुख स्तंभ, एक दुबले-पतले लेकिन विचारों से भरपूर व्यक्ति ने, प्रेमचंद द्वारा १९३० में शुरू की गई 'हंस' पत्रिका को पुनर्जीवित करने का साहसिक कदम उठाया। वह व्यक्ति थे राजेंद्र यादव.

उन्होंने अक्षर प्रकाशन के तहत 'हंस' को केवल एक मासिक पत्रिका नहीं, बल्कि एक विचारों के युद्ध का मैदान बना दिया।

संपादक की कुर्सी पर बैठते ही उन्होंने घोषणा की कि अब यह पत्रिका 'भद्र' साहित्य को नहीं, बल्कि उन विद्रोहों को आवाज देगी जिन्हें सदियों से अनदेखा किया गया था।

राजेंद्र यादव, जिनका जन्म आगरा में २८ अगस्त १९२९ को हुआ, एक प्रमुख कथाकार के बजाय एक संपादक और वैचारिक कार्यकर्ता के रूप में ज्यादा पहचाने गए। १९८६ में 'हंस' का पुनर्निर्माण उनके सबसे बड़े और दीर्घकालिक योगदान में से एक था। उन्होंने इस पत्रिका को पारंपरिक सीमाओं को पार करते हुए एक क्रांतिकारी वैचारिक प्लेटफार्म में बदल दिया।

उन्होंने 'स्त्री-विमर्श' और 'दलित साहित्य' को चर्चा का केंद्र बनाया। हिंदी साहित्य में इन विषयों को मुख्यधारा में लाने का श्रेय राजेंद्र यादव को ही जाता है। उन्होंने सिर्फ इन मुद्दों को स्थान नहीं दिया, बल्कि संपादकीय माध्यम से इन्हें साहित्यिक बहस का अनिवार्य हिस्सा बना दिया, यहां तक कि 'दैहिक स्वतंत्रता' जैसे वर्जित विषयों पर भी सवाल उठाए।

राजेंद्र यादव को 'प्रतिपक्ष का बुद्धिजीवी' कहा जाता था। दिल्ली के दरियागंज स्थित 'हंस' का कार्यालय देशभर के साहित्यकारों और युवा कथाकारों के लिए एक अनौपचारिक और खुला केंद्र बन गया। राजेंद्र यादव हिंदी साहित्य के एक ऐसे स्तंभ थे, जिनका जीवन और लेखन निरंतर वैचारिक संघर्ष और सामाजिक चेतना का प्रतीक बना।

उन्होंने १९५१ से २०१३ तक अपने सक्रिय लेखन के दौरान मध्यमवर्गीय जीवन के संघर्षों, पारिवारिक टूटन और युवा पीढ़ी की चिंता को अपने केंद्र में रखा।

'सारा आकाश' उनका सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है। यह उपन्यास केवल एक कथा नहीं, बल्कि संयुक्त परिवार की व्यवस्था के खिलाफ एक तार्किक घोषणापत्र था। उपन्यास का पात्र 'शिरीष' यह तर्क करता है कि संस्कृति के नाम पर थोपी गई संयुक्त परिवार की संरचना में महिलाओं की आकांक्षाएं कुचली जाती हैं और पति स्वयं विवश होता है। इस उपन्यास ने उस समय की सामाजिक-सांस्कृतिक बहसों में तार्किक दृष्टिकोण और अंधानुकरण के विरोध को स्थापित किया। उनके अन्य महत्वपूर्ण उपन्यास 'उखड़े हुए लोग' और 'कुल्टा' भी व्यक्ति की मानसिक उलझनों और यथास्थिति को तोड़ने की तीव्र आकांक्षा को दर्शाते हैं।

२८ अक्टूबर २०१३ को जब उनकी जीवन यात्रा समाप्त हुई, तो यह केवल एक लेखक का अंत नहीं, बल्कि एक विशिष्ट साहित्यिक और सांस्कृतिक युग का अंत प्रतीत हुआ।

राजेंद्र यादव, मोहन राकेश और कमलेश्वर की त्रयी 'नई कहानी' आंदोलन की रीढ़ थी। राकेश का असमय निधन हो गया था और कमलेश्वर के देहावसान के बाद, यादव इस आंदोलन के सबसे बड़े वैचारिक प्रतीक के रूप में सक्रिय थे। 'त्रयी' की इस अंतिम कड़ी के टूटने से, उस दौर का अंत हुआ जिसने स्वतंत्रता के बाद हिंदी कथा साहित्य को मनोवैज्ञानिक गहराई और सामाजिक चेतना की नई दिशा दी।

Point of View

बल्कि समाज में व्याप्त असमानताओं के खिलाफ भी आवाज उठाई। उनका जीवन और लेखन दोनों ही हमें प्रेरणा देते हैं कि हम अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से व्यक्त करें।
NationPress
27/10/2025

Frequently Asked Questions

राजेंद्र यादव का प्रमुख योगदान क्या था?
राजेंद्र यादव ने 'हंस' पत्रिका को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ 'स्त्री-विमर्श' और 'दलित साहित्य' जैसे मुद्दों को मुख्यधारा में लाया।
'हंस' पत्रिका का उद्देश्य क्या था?
'हंस' पत्रिका का उद्देश्य भद्र साहित्य के बजाय उन विद्रोहों को आवाज देना था जो सदियों से अनदेखा किए गए थे।
राजेंद्र यादव के कौन से उपन्यास प्रसिद्ध हैं?
राजेंद्र यादव के प्रसिद्ध उपन्यासों में 'सारा आकाश', 'उखड़े हुए लोग' और 'कुल्टा' शामिल हैं।