क्या आपने ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ पर रक्षा मंत्रालय के समारोह के बारे में सुना?
सारांश
Key Takeaways
- वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ पर विशेष समारोह आयोजित किया गया।
- समारोह में सामूहिक गायन किया गया।
- बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की अमर पंक्तियों का सम्मान किया गया।
- यह अवसर राष्ट्रीय गौरव और एकता का प्रतीक है।
- रक्षा मंत्री ने गीत के महत्व पर जोर दिया।
नई दिल्ली, 7 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। नई दिल्ली के साउथ ब्लॉक स्थित रक्षा मंत्रालय में शुक्रवार को राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की रचना के 150 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में एक विशेष समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), रक्षा सचिव तथा रक्षा मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित रहे। इस विशेष अवसर पर चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल अनिल चौहान और रक्षा सचिव राजेश कुमार सिंह सहित सभी अधिकारियों ने ‘वंदे मातरम्’ का सामूहिक गायन किया।
इस कार्यक्रम के माध्यम से सभी ने बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय की अमर पंक्तियों को नमन किया। ये वे अमर पंक्तियां हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान पूरे राष्ट्र को एक सूत्र में बांध दिया था। वंदे मातरम, आज भी देशभक्ति, एकता और निस्वार्थ सेवा की भावना को जीवित रखे हुए हैं।
रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि ‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं, बल्कि भारत की आत्मा की आवाज है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को प्रेरित किया और आज भी हर नागरिक को राष्ट्र के प्रति कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण का भाव देती है। रक्षा मंत्रालय में हुए इस समारोह के दौरान स्वतंत्रता आंदोलन में ‘वंदे मातरम’ के ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डाला गया और इसे राष्ट्रीय गौरव, एकता तथा मातृभूमि के प्रति प्रेम का प्रतीक बताया गया।
रक्षा मंत्रालय ने इस आयोजन के माध्यम से यह संदेश दिया कि भारतीय सशस्त्र बल और मंत्रालय देश के मूलभूत मूल्यों, राष्ट्रवाद, एकता, और सेवा भाव के प्रति सदैव समर्पित हैं।
वहीं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने कहा कि हमारे राष्ट्रीय गीत ‘वंदे मातरम’ की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर हम उन अमर पंक्तियों को नमन करते हैं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की ज्योति प्रज्वलित की और जो आज भी पीढ़ियों को प्रेरणा देती हैं। उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय द्वारा रचित ‘वंदे मातरम’ केवल एक गीत नहीं है, यह हमारे महान राष्ट्र की धड़कन है, भक्ति और एकता का वह आह्वान है जो हर भारतीय को मातृभूमि की आत्मा से जोड़ता है। इसकी पंक्तियां हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों, हमारे बलिदानों और एक साझा नियति की याद दिलाती हैं।