क्या रमेश खरमाले ने पीएम मोदी का धन्यवाद किया और कहा - 'मेरा कार्य तो बहुत छोटा है'?

सारांश
Key Takeaways
- पर्यावरण संरक्षण में व्यक्तिगत प्रयास महत्वपूर्ण होते हैं।
- सामाजिक सहयोग से बड़े परिवर्तन संभव हैं।
- स्वच्छ हवा की आवश्यकता को समझना चाहिए।
- छोटे कार्य भी बड़े मंच पर पहचाने जा सकते हैं।
- हर व्यक्ति को पर्यावरण के लिए सक्रिय रहना चाहिए।
पुणे, 30 जून (राष्ट्र प्रेस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को अपने मासिक रेडियो कार्यक्रम 'मन की बात' के 123वें एपिसोड में पुणे के रमेश खरमाले के पर्यावरण संरक्षण में किए गए प्रेरणादायक कार्य की सराहना की। सेना से रिटायर रमेश एक वनरक्षक हैं। उन्होंने जुन्नर की पहाड़ियों पर जल संवर्धन और पौधरोपण के माध्यम से हरियाली लाने का अद्भुत प्रयास किया है। उन्होंने दो महीने में 70 ट्रेंच बनाकर पानी का संरक्षण किया, जिससे पक्षियों की वापसी हुई है। प्रधानमंत्री ने उनके निःस्वार्थ कार्य और परिवार के सहयोग की प्रशंसा की, जिसमें उनके माता-पिता और गांव के लोग भी शामिल हैं।
पीएम मोदी से प्रशंसा पाकर रमेश खरमाले काफी खुश हैं। उन्होंने कहा, "मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने इतने छोटे स्तर के व्यक्ति के काम को इतने बड़े मंच पर पहचान दी। यह हमारे जैसे लोगों के लिए बहुत बड़ा प्रोत्साहन है जो जमीनी स्तर पर काम करते हैं। मैंने कभी नहीं सोचा था कि मेरे काम को इतने बड़े स्तर पर पहचाना जाएगा। मैं और मेरा परिवार इस सम्मान के लिए हमेशा प्रधानमंत्री के आभारी रहेंगे। मुझे किसी परिजन का फोन आया कि पीएम ने कार्यक्रम में प्रशंसा की। यकीन मानिए मुझे विश्वास नहीं हुआ था क्योंकि मैं जो कार्य कर रहा हूं वह बहुत ही छोटा है।"
उन्होंने बताया कि सेना में नौकरी के दौरान जो ट्रेनिंग मिली थी, आज उसी का परिणाम है कि वह बिना थके पर्यावरण संरक्षण में योगदान दे रहे हैं। उन्होंने कहा, "मैं जो योगदान दे रहा हूं वो बहुत छोटा है। इसके बावजूद पीएम मोदी ने अपने कार्यक्रम में मेरा नाम लिया। मुझे काफी खुशी हो रही है। हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि हम स्वच्छ हवा में सांस ले रहे हैं तो ठीक है, बल्कि हमें दूसरों के लिए भी स्वच्छ हवा कैसे मिले, इस पर सोचते हुए काम करना चाहिए। समाज को मेरा यही संदेश है।"
पूर्व सैनिक ने बताया कि वह सेना में करीब 17 साल तक रहे। साल 2012 में सेवानिवृत्त हुए। इसके बाद उन्होंने बैंक में नौकरी की, लेकिन वहां मन नहीं लगा। फिर उन्होंने युवाओं के लिए एक अकादमी शुरू की, जहां से कई युवक सेना में भर्ती हुए, लेकिन उनका मन समाज और प्रकृति की सेवा में अधिक रमता था। जुन्नर के पास स्थित धामणखेल पहाड़ी पर जल संवर्धन का कार्य शुरू किया। केवल दो महीने में, रमेश और उनकी पत्नी स्वाती ने मिलकर 300 घंटे की मेहनत से 70 गड्ढे खोदे, जिनकी कुल लंबाई 412 मीटर है।
उन्होंने बताया कि करीब 450 पौधे भी लगाए। ऑक्सीजन पार्क का निर्माण भी किया, जिसमें उन्होंने विभिन्न किस्मों के पेड़ लगाए हैं। रमेश ने बताया कि पर्यावरण संरक्षण के कार्य में माता-पिता सहित पूरे परिवार का भरपूर समर्थन मिल रहा है। पत्नी तो काम में हाथ बंटाती ही थीं, अब बच्चे भी खाली समय में पौधे लगाने के काम में साथ दे रहे हैं।
उन्होंने कहा कि बिना पानी और भोजन के हम कुछ दिन तक जीवित रह सकते हैं। लेकिन, स्वच्छ हवा के बिना जीवित रहना संभव नहीं है। इसलिए, पर्यावरण के लिए काम करना चाहिए।
रमेश ने एक कहानी सुनाते हुए कहा कि जब एक चिड़िया आग की लपटों से जल रहे जंगल को बचाने के लिए अपनी चोंच में पानी की छोटी-छोटी बूंदों को लाकर आग बुझाने का प्रयास कर सकती है, तो हम लोगों को भी जंगलों को बचाना ही पड़ेगा। पर्यावरण संरक्षण से बड़ा कोई काम नहीं हो सकता है। इसलिए, हमें पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करना ही होगा।