क्या सदाशिवराव भाऊ ने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा की?

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क्या सदाशिवराव भाऊ ने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा की?

सारांश

सदाशिवराव भाऊ, एक ऐसा नाम जो साहस, बलिदान और राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बन गया है। क्या आप जानते हैं कि उन्होंने अपने जीवन का बलिदान देकर कैसे इतिहास को बदल दिया? जानिए उनकी वीरता की कहानी।

Key Takeaways

  • सदाशिवराव भाऊ ने अपने प्राणों की आहुति देकर राष्ट्रीय एकता की रक्षा की।
  • उनकी सैन्य रणनीतियाँ आज भी प्रासंगिक हैं।
  • उनका बलिदान हमें प्रेरित करता है।
  • तीसरे पानीपत युद्ध ने भारतीय इतिहास को बदल दिया।
  • उनकी पत्नी ने उनकी मृत्यु को स्वीकार नहीं किया, जो उनकी वीरता का प्रतीक है।

नई दिल्ली, 4 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। सदाशिवराव भाऊ मराठा साम्राज्य के एक महान सेनापति और प्रशासक थे, जिन्हें विशेष रूप से तीसरे पानीपत युद्ध (1761) में अपने साहसिक नेतृत्व के लिए जाना जाता है। उन्होंने अपने प्राणों की आहुति देकर देश की एकता और स्वाभिमान की रक्षा की।

सदाशिवराव भाऊ का जन्म 4 अगस्त 1730 को सासवड, पुणे के निकट एक मराठी चित्पावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे बाजीराव प्रथम के छोटे भाई चिमाजी अप्पा और रखमाबाई (पेठे परिवार) के पुत्र थे।

उनकी माता की मृत्यु उनके जन्म के एक महीने बाद हो गई थी, और जब वे 10 वर्ष के थे तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया। इस स्थिति में उनकी परवरिश दादी राधाबाई और चाची काशीबाई ने की। उनकी शिक्षा सतारा में रामचंद्र बाबा शेणवी के मार्गदर्शन में हुई, जो एक कुशल शिक्षक थे।

सदाशिवराव भाऊ ने अपनी प्रारंभिक सैन्य उपलब्धि 1746 में कर्नाटक अभियान के दौरान हासिल की, जहां उन्होंने महादोबा पुरंदरे और सखाराम बापू के साथ मिलकर कई क्षेत्रों पर विजय प्राप्त की। उनकी रणनीति और नेतृत्व ने उन्हें नानासाहेब पेशवा के शासन में वित्त मंत्री और बाद में सेनापति के पद तक पहुंचाया।

1760 में, जब अहमद शाह अब्दाली ने पंजाब पर आक्रमण किया, तो नानासाहेब ने सदाशिवराव को मराठा सेना का नेतृत्व सौंपा ताकि दिल्ली और उत्तरी भारत की रक्षा की जा सके। इस अभियान के लिए उन्होंने 45,000 से 60,000 सैनिकों की सेना तैयार की।

तीसरे पानीपत युद्ध में, सदाशिवराव भाऊ ने अब्दाली की सेना के खिलाफ कड़ा संघर्ष किया। उनकी रणनीति तोपखाने के उपयोग पर आधारित थी, लेकिन खाद्य आपूर्ति की कमी और गठबंधन की अनुपस्थिति ने उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया।

युद्ध के दौरान, उनके भतीजे विश्वासराव की मृत्यु ने मराठा सेना के मनोबल को तोड़ा, और अंततः 14 जनवरी 1761 को वे युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए। उनकी पत्नी पार्वती बाई युद्ध के दौरान उनके साथ थीं और उन्होंने उनकी मृत्यु को स्वीकार करने से इनकार कर दिया।

सदाशिवराव भाऊ का जीवन साहस, बलिदान और मराठा साम्राज्य की रक्षा के लिए समर्पण का प्रतीक है। उनकी मृत्यु के बाद पुणे में सदाशिव पेठ नामक क्षेत्र उनके सम्मान में स्थापित किया गया। इतिहास में उनकी एक भूल के कारण उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा, लेकिन उनकी बहादुरी और योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता।

Point of View

बल्कि सम्पूर्ण देश की एकता और स्वाभिमान के लिए महत्वपूर्ण है। हमें उनके बलिदान से प्रेरणा लेनी चाहिए और राष्ट्रीय भावना को सशक्त बनाना चाहिए।
NationPress
03/08/2025

Frequently Asked Questions

सदाशिवराव भाऊ का जन्म कब हुआ?
उनका जन्म 4 अगस्त 1730 को सासवड, पुणे के निकट हुआ।
सदाशिवराव भाऊ ने किस युद्ध में प्रमुख भूमिका निभाई?
उन्होंने तीसरे पानीपत युद्ध (1761) में प्रमुख भूमिका निभाई।
सदाशिवराव भाऊ की शिक्षा किसके मार्गदर्शन में हुई?
उनकी शिक्षा सतारा में रामचंद्र बाबा शेणवी के मार्गदर्शन में हुई।
सदाशिवराव भाऊ का योगदान क्या था?
उनका योगदान मराठा साम्राज्य की रक्षा और भारतीय एकता के लिए महत्वपूर्ण था।
सदाशिवराव भाऊ की मृत्यु कब हुई?
उनकी मृत्यु 14 जनवरी 1761 को तीसरे पानीपत युद्ध में हुई।