क्या सपा नेता एसटी हसन के बयान पर महंत रविंद्र पुरी का आक्रोश उचित है?

सारांश
Key Takeaways
- एस.टी. हसन का बयान विवाद का कारण बना।
- महंत रविंद्र पुरी ने इसकी निंदा की।
- कांवड़ यात्रा के लिए सरकार ने उचित प्रबंध किए हैं।
- धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना आवश्यक है।
- सामाजिक सौहार्द बनाए रखना जरूरी है।
हरिद्वार, 2 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। समाजवादी पार्टी के प्रमुख नेता एस.टी. हसन ने उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में एक दुकानदार की पैंट उतारकर धर्म की पहचान करने की घटना की तुलना जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 22 अप्रैल को हुई आतंकवादी घटना से की है। उनके इस विवादास्पद बयान पर व्यापक हंगामा मचा हुआ है। साधु-संतों ने इस पर गहरा रोष व्यक्त किया है और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रविंद्र पुरी ने इसे शर्मनाक करार दिया है।
महंत रविंद्र पुरी ने बुधवार को राष्ट्र प्रेस से बातचीत के दौरान कहा, “जिन शब्दों का उपयोग एस.टी. हसन कर रहे हैं, वह खुद उग्रवादी हो सकते हैं। इसलिए इस मामले की जांच होना चाहिए।” उन्होंने यह भी कहा कि जब लोग खाने में थूक रहे थे, तब सपा नेता ने कुछ नहीं कहा।
महंत ने अखिलेश यादव पर भी तंज कसते हुए कहा कि वह सनातन के खिलाफ हो चुके हैं। उन्होंने कहा कि 2027 के विधानसभा चुनाव में उनकी हार निश्चित है, क्योंकि उनके पास न तो ब्राह्मण हैं और न यादव। उनके साथ केवल उनका परिवार है।
कांवड़ यात्रा पर महंत ने कहा कि हर साल सरकार की ओर से कांवड़ यात्रियों के लिए उचित व्यवस्था की जाती है। इस बार भी सरकार पूरी तरह से तैयार है। लाखों कांवड़िए हरिद्वार आते हैं और यहां से गंगाजल लेकर शिवालयों में भगवान शिव का अभिषेक करते हैं। उन्होंने हरिद्वार के निवासियों से कांवड़ यात्रियों की सेवा करने की अपील की।
सपा नेता एस.टी. हसन ने मुजफ्फरनगर में दुकानदार की पैंट उतारकर पहचान करने के मामले में कहा था कि क्या आम नागरिकों को यह अधिकार है कि वे किसी दुकानदार की पैंट उतरवाकर उसकी पहचान कर सकें?
उन्होंने कहा, "कांवड़ रूट को लेकर सरकार का आदेश है कि नेम प्लेट लगाई जाए, मैं इस निर्णय से सहमत हूं। इस्लाम कभी यह नहीं सिखाता कि आप अपनी पहचान छिपाकर कारोबार करें। ऐसे फैसलों को लागू करने का काम प्रशासन का होता है। मैं पूछता हूं, क्या आम नागरिकों को यह अधिकार है कि वे किसी दुकानदार की पैंट उतरवाकर चेक कर सकें? क्या पहलगाम में आतंकियों ने पैंट नहीं उतरवाई थी? ऐसा करने वालों और पहलगाम के आतंकियों में क्या अंतर रह गया? मैंने जो कहा है, उसमें क्या गलत है? क्या उन लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होनी चाहिए, जो ऐसा करके सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ रहे हैं?"