क्या सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाओं में कविता, नाटक और व्यंग्य का अद्भुत संगम है?

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क्या सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाओं में कविता, नाटक और व्यंग्य का अद्भुत संगम है?

सारांश

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएं हिंदी साहित्य में एक अद्वितीय स्थान रखती हैं। उनकी लेखनी में कविता, नाटक और व्यंग्य के अद्भुत तत्व समाहित हैं, जो समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर करते हैं। जानें, कैसे उनके शब्द आज भी समाज की धड़कन बने हुए हैं।

Key Takeaways

  • सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की रचनाएं साहित्य में बहुआयामी हैं।
  • उनकी कविताएं नई कविता आंदोलन का हिस्सा रहीं।
  • व्यंग्य के माध्यम से उन्होंने समाज की वास्तविकताएं उजागर कीं।
  • बाल साहित्य में उनका योगदान भी महत्वपूर्ण है।
  • उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

नई दिल्ली, 22 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। हिंदी साहित्य में कुछ लेखक ऐसे होते हैं, जिनकी लेखनी में कविता, नाटक, व्यंग्य और बाल साहित्य का अनोखा समागम होता है। सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ऐसी ही एक अद्वितीय शख्सियत थे, जिनकी रचनाएं शब्दों के साथ-साथ संवेदना, अनुभव और समाज की धड़कन को पकड़ने की क्षमता रखती थीं।

15 सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में जन्मे सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ने छोटे कस्बे से निकलकर हिंदी साहित्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी। बस्ती में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने बनारस के क्वींस कॉलेज से इंटरमीडिएट और इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए की डिग्री प्राप्त की। इलाहाबाद में साहित्यिक माहौल ने उनकी लेखनी को नई दिशा दी।

करियर की शुरुआत में उन्होंने एजी ऑफिस में डिस्पैचर की नौकरी की, लेकिन उनकी रचनात्मकता किसी और दिशा में प्रवाहित हो रही थी। उन्होंने दिल्ली में ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग में सहायक संपादक के रूप में कार्य किया, फिर भी उनका दिल साहित्य में ही लगा रहा।

1964 में 'अज्ञेय' के आग्रह पर वे 'दिनमान' पत्रिका से जुड़े। यहां उनके स्तंभ 'चरचे और चरखे' ने व्यंग्य और सामाजिक टिप्पणी के अनूठे अंदाज में पाठकों का दिल जीत लिया।

सर्वेश्वर की कविताएं 'नई कविता' आंदोलन का हिस्सा बनीं और 'तीसरा सप्तक' में शामिल की गईं। उनकी रचनाएं प्रेम, पीड़ा और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों को बखूबी उजागर करती थीं। 'तुम्हारे साथ रहकर...' जैसी कविताएं आज भी पाठकों को भावुक करती हैं।

उनके नाटक 'बकरी' ने तीखे राजनीतिक व्यंग्य से आपातकाल के दौरान सरकार को असहज कर दिया, जिसके कारण इसे प्रतिबंधित किया गया। 'अब गरीबी हटाओ', 'हवालात', और 'लड़ाई' जैसे नाटकों ने मंच को जीवन्तता प्रदान की।

बाल साहित्य में भी सर्वेश्वर का योगदान अनमोल रहा। 'बतूता का जूता' और 'महंगू की टाई' जैसी रचनाएं बच्चों की किताबों में आज भी मौजूद हैं। 1982 में वे 'पराग' पत्रिका के संपादक बने और अंत तक इससे जुड़े रहे। 1983 में कविता संग्रह 'खूंटियों पर टंगे लोग' के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

23 सितंबर 1983 को सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का निधन हो गया। उनकी रचनाएं आज भी हिंदी साहित्य की धरोहर हैं, जो समाज को आईना दिखाने का कार्य करती रहेंगी।

Point of View

बल्कि व्यंग्य के माध्यम से समाज की वास्तविकताएं भी उजागर कीं। उनके कार्य आज भी प्रासंगिक हैं और हमें समाज की समस्याओं की ओर ध्यान आकर्षित करते हैं।
NationPress
22/09/2025

Frequently Asked Questions

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म कब हुआ?
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का जन्म 15 सितंबर 1927 को उत्तर प्रदेश के बस्ती में हुआ।
उनकी प्रसिद्ध रचनाएं कौन सी हैं?
उनकी प्रसिद्ध रचनाओं में 'बकरी', 'तुम्हारे साथ रहकर...', और 'बतूता का जूता' शामिल हैं।
उन्हें कौन सा पुरस्कार मिला?
उन्हें 1983 में कविता संग्रह 'खूंटियों पर टंगे लोग' के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला।
क्या वे किसी पत्रिका के संपादक रहे?
जी हां, वे 1982 में 'पराग' पत्रिका के संपादक बने और अंत तक इससे जुड़े रहे।
उनका निधन कब हुआ?
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना का निधन 23 सितंबर 1983 को हुआ।