क्या शाहपुर विधानसभा सीट पर सियासी मुकाबला राजद बनाम भाजपा रोमांचक होगा?

सारांश
Key Takeaways
- शाहपुर विधानसभा सीट पर भाजपा और राजद के बीच मुकाबला है।
- यह क्षेत्र ‘धान का कटोरा’ के नाम से प्रसिद्ध है।
- 2015 और 2020 में आरजेडी ने जीत हासिल की थी।
- यहां के धार्मिक स्थल आस्था का केंद्र हैं।
- यादव और ब्राह्मण मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पटना, 22 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। बिहार के भोजपुर जिले की शाहपुर विधानसभा सीट एक बार फिर से राजनीतिक गतिविधियों का प्रमुख केंद्र बन गई है। यह सीट आरा लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आती है और इसमें शाहपुर और बिहिया प्रखंड शामिल हैं। इस बार के विधानसभा चुनाव में कुल 11 उम्मीदवार यहां से चुनावी मैदान में हैं। भाजपा के राकेश रंजन और राजद के मौजूदा विधायक राहुल तिवारी फिर से चुनावी जंग में हैं। इसके साथ ही जन स्वराज पार्टी की पद्मा ओझा भी अपनी किस्मत आजमा रही हैं।
शाहपुर को शाहाबाद का ‘धान का कटोरा’ कहा जाता है क्योंकि यह क्षेत्र अपनी उपजाऊ भूमि और धान की भरपूर पैदावार के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन, गंगा और सोन नदियों के बीच स्थित यह इलाका अक्सर बाढ़ और कटाव जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करता है।
यह क्षेत्र एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित है, जो आरा और बक्सर को जोड़ता है। आरा यहां से लगभग 30 किलोमीटर, बक्सर 40 किलोमीटर और पटना लगभग 85 किलोमीटर की दूरी पर है।
धार्मिक दृष्टिकोण से भी शाहपुर समृद्ध है। यहां के महावीर स्थान और कुंडेश्वर धाम जैसे प्राचीन मंदिर आस्था का केंद्र बने हुए हैं। वहीं, बिलौती रोड पर स्थित मंदिर बाणासुर से जुड़ा माना जाता है। इसके अलावा, लकर शाह की मजार भी शाहपुर में बहुत प्रसिद्ध है।
राजनीतिक रूप से शाहपुर को समाजवादियों का गढ़ माना जाता रहा है। 1952 से 1969 तक बिहार के पूर्व गृह मंत्री रामानंद तिवारी ने लगातार पांच बार यहां से जीत हासिल की। कांग्रेस को पहली बार 1972 में यहां सफलता मिली। इसके बाद, 2000 और 2005 में राजद के टिकट पर शिवानंद तिवारी विधायक बने। इसके बाद भाजपा की मुन्नी देवी ने लगातार दो बार इस सीट पर जीत दर्ज की।
2015 में आरजेडी ने यह सीट फिर से अपने कब्जे में ली और राहुल तिवारी विधायक बने। 2020 में भी उन्होंने भाजपा की मुन्नी देवी को हराकर दूसरी बार जीत हासिल की। शाहपुर में राहुल तिवारी के पास जीत की हैट्रिक लगाने का सुनहरा अवसर है।
इस सीट पर यादव और ब्राह्मण मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं, जबकि कुर्मी और राजपूत मतदाताओं का भी प्रभाव देखा जाता है।