क्या अरुण जेटली की शख्सियत ने विपक्ष को तर्कों से मात दी और आर्थिक सुधार का इतिहास रचा?

सारांश
Key Takeaways
- अरुण जेटली का राजनीतिक सफर 1970 के दशक में शुरू हुआ।
- उन्होंने जीएसटी लागू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- जेटली न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि एक विचारक भी थे।
- उनकी वाकपटुता और तर्कशक्ति ने उन्हें संसद में एक मजबूत आवाज बनाया।
- उन्होंने संकट के समय में सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका निभाई।
नई दिल्ली, २४ अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे चेहरे होते हैं, जो अपनी बुद्धिमत्ता, वाकपटुता और नेतृत्व क्षमता से इतिहास में अमर हो जाते हैं। ऐसी ही शख्सियत थे अरुण जेटली, जिन्हें न केवल एक तेज-तर्रार वकील और राजनेता के रूप में जाना जाता था, बल्कि उनकी शायराना अंदाज और तर्कपूर्ण भाषणों ने विपक्षियों को भी उनका मुरीद बना दिया था।
२८ दिसंबर १९५२ को दिल्ली में एक पंजाबी हिंदू ब्राह्मण परिवार में जन्मे अरुण जेटली ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली में पूरी की। उनके पिता महाराज किशन जेटली एक प्रतिष्ठित वकील थे, जिनसे उन्हें वकालत का हुनर विरासत में मिला। १९७७ में दिल्ली विश्वविद्यालय के लॉ फैकल्टी से एलएलबी की डिग्री हासिल करने के बाद जेटली ने दिल्ली हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट में वकालत शुरू की। उनकी कानूनी दक्षता और तर्कशक्ति ने उन्हें जल्द ही एक प्रतिष्ठित वकील बना दिया।
अरुण जेटली का राजनीतिक जीवन १९७० के दशक में जय प्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन से शुरू हुआ। १९७४ में वे दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बने और आपातकाल (१९७५-७७) के दौरान १९ महीने जेल में रहे। इस दौरान उनकी संगठनात्मक क्षमता और नेतृत्व कौशल उभरकर सामने आया। १९७७ में जनता पार्टी की सरकार बनने पर वे जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने।
१९८० में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के गठन के बाद अरुण जेटली ने पार्टी का दामन थामकर अपने सियासी सफर को नई ऊंचाई दी। १९९१ में वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य बने और १९९९ में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में उन्हें सूचना और प्रसारण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और विनिवेश राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) नियुक्त किया गया था। इसके बाद, २३ जुलाई २००० को राम जेठमलानी के इस्तीफे के बाद जेटली को कानून, न्याय और कंपनी मामलों के मंत्री का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया।
अरुण जेटली सिर्फ एक राजनेता नहीं, बल्कि एक विचारक, रणनीतिकार और संकटमोचक थे। २००४ से २०१४ तक राज्यसभा में विपक्ष के नेता के रूप में उनकी लोकप्रियता चरम पर पहुंची। उनकी तार्किक और प्रभावशाली वक्तृत्व शैली ने उन्हें संसद में एक मजबूत आवाज बनाया। जेटली न केवल एक कुशल प्रशासक थे, बल्कि संकट के समय सरकार के लिए संकटमोचक भी साबित हुए। चाहे वह संसद में विपक्ष के सवालों का जवाब देना हो या नीतिगत फैसलों को जनता तक स्पष्ट करना, उनकी वाक्पटुता और तथ्यपरक तर्क हमेशा प्रभावशाली रहे। उनकी लेखन शैली और ब्लॉग्स ने भी जनता के बीच जटिल मुद्दों को समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
वे एक ऐसे नेता थे, जो विचारधारा और व्यवहारिकता के बीच संतुलन बनाए रखते थे। भाजपा के भीतर वे एक उदारवादी चेहरा थे, जो विभिन्न विचारधाराओं को जोड़ने में सक्षम थे। उनकी सौम्यता, बौद्धिक गहराई और हास्यबोध ने उन्हें सहयोगियों और विरोधियों दोनों का सम्मान दिलाया।
२०१४ में नरेंद्र मोदी सरकार में वित्त मंत्री बनने के बाद जेटली ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए थे। जीएसटी लागू करने में उनकी भूमिका अहम थी, जिसके लिए उन्होंने राज्यों के बीच सहमति बनाई। नोटबंदी जैसे साहसिक कदम में भी उनकी रणनीतिक दृष्टि झलकती थी। हालांकि इन फैसलों पर विपक्ष का विरोध भी झेलना पड़ा, लेकिन अरुण जेटली ने हमेशा तर्क और धैर्य के साथ जवाब दिया।
जेटली का निजी जीवन उतना ही प्रेरणादायक था जितना उनका सार्वजनिक जीवन। उनकी पत्नी संगीता जेटली और दो बच्चे उनके पारिवारिक जीवन का आधार थे। २०१९ में स्वास्थ्य खराब होने के कारण उन्होंने मंत्री पद से हटने का फैसला लिया। २४ अगस्त २०१९ को ६६ वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया।