क्या शिवाजी गणेशन ने जहांगीर की पत्नी नूरजहां का किरदार निभाकर अपने करियर की शुरुआत की?

सारांश
Key Takeaways
- शिवाजी गणेशन का असली नाम विल्लुपुरम चिन्नैया पिल्लई गणेश मूर्ति था।
- उन्होंने 10 साल की उम्र में घर छोड़कर अभिनय की दुनिया में कदम रखा।
- वे 300 से अधिक फिल्मों का हिस्सा रहे।
- उनकी फिल्में अक्सर बॉक्स ऑफिस पर रिकॉर्ड तोड़ती थीं।
- उन्होंने नूरजहां का किरदार निभाकर अपने करियर की शुरुआत की।
नई दिल्ली, 1 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। तमिल सिनेमा में कई सुपरस्टार्स रहे हैं, लेकिन कुछ ऐसे सितारे हैं जिन्हें फैंस भगवान की तरह मानते थे। ऐसे ही एक अभिनेता हैं शिवाजी गणेशन।
शिवाजी का जन्म 1 अक्टूबर, 1928 को मद्रास के तंजौर जिले में हुआ था। उस समय भारत ब्रिटिश शासन के अधीन था। उनका असली नाम विल्लुपुरम चिन्नैया पिल्लई गणेश मूर्ति था, लेकिन सिनेमा में कदम रखते ही वे शिवाजी गणेशन के नाम से प्रसिद्ध हो गए।
अपने करियर में 300 से अधिक फिल्मों में काम करने वाले शिवाजी गणेशन ने कई हिट फिल्में दी, लेकिन उनकी कुछ प्रमुख फिल्में जैसे 'पाराशक्ति', 'नवरात्रि', 'कर्णन', 'थिल्लाणा मोहनम्बाल', 'कप्पालोटिया थमिज़ान' उनके करियर के मील का पत्थर साबित हुईं। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत थिएटर से की, जहां उन्होंने शिवाजी कांड साम्राज्यम पर आधारित नाटक में शिवाजी का किरदार निभाया, जिसके बाद लोग उन्हें इसी नाम से पुकारने लगे।
शिवाजी गणेशन के फैंस उनकी अदाकारी के इस कदर दीवाने थे कि वे उन्हें भगवान की तरह पूजते थे। जब भी उनकी कोई फिल्म रिलीज होती थी, खास कर महिलाएं आरती की थाली लेकर सिनेमाघर पहुंचती थीं। उनकी फिल्में बॉक्स ऑफिस पर हमेशा रिकॉर्ड तोड़ती थीं।
बचपन से ही उन्हें अभिनय का शौक था, लेकिन उनके परिवार ने इस पेशे का विरोध किया। 7 साल की उम्र में ही उन्होंने तय कर लिया था कि वे नाटक और मंचों में भाग लेंगे। परिवार वालों ने बहुत समझाया, लेकिन शिवाजी ने नहीं माना। 10 साल की उम्र में अपने जुनून को पूरा करने के लिए उन्होंने घर छोड़ दिया और ड्रामा कंपनी के साथ काम करना शुरू किया।
शिवाजी गणेशन में इतनी ऊर्जा थी कि छोटी उम्र में ही वे लंबी-लंबी लाइनें याद कर लेते थे और उन्हें मंच पर बोलने में कोई परेशानी नहीं होती थी। उनकी इस प्रतिभा से सभी प्रभावित थे। उन्हें पहली फिल्म निर्माता पी.एस. पेरुमल ने दी, जब वे मंच पर जहांगीर की पत्नी नूरजहां का रोल निभा रहे थे। शिवाजी को हमेशा अच्छे किरदार की तलाश रहती थी। मुगल शासक के नाटक के लिए जब कोई महिला अभिनेत्री नहीं मिली, तो शिवाजी ने खुद यह किरदार निभाने का फैसला किया और मंच पर अपनी अदाकारी से सबका दिल जीत लिया।