क्या श्रावण शुक्ल षष्ठी पर बन रहा अद्भुत संयोग, ऐसे करें कार्तिक देव की पूजा?
 
                                सारांश
Key Takeaways
- श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर विशेष पूजा विधियाँ हैं।
- भगवान कल्कि का अवतरण और उनका महत्व समझें।
- व्रत और पूजा से जीवन में सुख-शांति की प्राप्ति संभव है।
- स्कंद षष्ठी का धार्मिक महत्व और पूजा विधियों को जानें।
- राहुकाल से बचकर पूजा करें।
नई दिल्ली, 29 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर कल्कि महोत्सव और स्कंद षष्ठी दोनों का आयोजन किया जाएगा। इस दिन सूर्य देव कर्क राशि में और चंद्रमा कन्या राशि में स्थित होंगे। दृक पंचांग के अनुसार अभिजीत मुहूर्त उपलब्ध नहीं है और राहुकाल का समय दोपहर 12:27 बजे से लेकर 2:09 बजे तक रहेगा।
कल्कि महोत्सव, भगवान विष्णु के दसवें और अंतिम अवतार भगवान कल्कि के आगमन को समर्पित है।
धार्मिक ग्रंथों में उल्लेख है कि कलयुग के अंत में सावन माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान विष्णु का कल्कि अवतार होगा। श्रीमद्भागवत पुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक के अनुसार, जब गुरु, सूर्य और चंद्रमा एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे, तब भगवान विष्णु कल्कि अवतार में जन्म लेंगे।
कल्कि पुराण के अनुसार, भगवान कल्कि का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के एक गांव में होगा। अग्नि पुराण में भगवान कल्कि के स्वरूप का वर्णन है, जिसमें उन्हें देवदत्त नामक घोड़े पर सवार और हाथ में तलवार लिए हुए दिखाया गया है, जो दुष्टों का संहार कर सतयुग की शुरुआत करेंगे। भगवान कल्कि कलियुग के अंत में तब अवतरित होंगे जब अधर्म और अन्याय अपने चरम पर होगा। उनका उद्देश्य पापियों का नाश करना, धर्म की पुनर्स्थापना करना और सतयुग का आरंभ करना है। भगवान विष्णु के कल्कि अवतार की पूजा उनके जन्म से पूर्व से ही की जा रही है।
महाभारत और अन्य धार्मिक ग्रंथों के रचयिता महर्षि वेद व्यास जी ने पहले भविष्यवाणी की थी कि जैसे-जैसे कलयुग का समय बीतता जाएगा, धरती पर अत्याचार और पाप भी बढ़ेंगे। इसके बाद भगवान कल्कि अपने गुरु परशुराम के निर्देश पर भगवान शिव की तपस्या करेंगे और दिव्य शक्तियों को प्राप्त करेंगे।
इस दिन स्कंद षष्ठी भी मनाई जाती है, जो भगवान कार्तिकेय (स्कंद) को समर्पित है। स्कंद पुराण के अनुसार, इस दिन व्रत रखने से संतान प्राप्ति, सुख, शांति और रोगों से मुक्ति मिलती है। विशेष विधि से पूजा और व्रत से मनोवांछित लाभ प्राप्त होता है।
स्कंद पुराण के अनुसार, शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी मनाई जाती है। भगवान कार्तिकेय ने आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को तारकासुर नामक दैत्य का वध किया था, जिसके बाद इस तिथि को स्कंद षष्ठी के नाम से मनाया जाने लगा। इस विजय की खुशी में देवताओं ने स्कंद षष्ठी का उत्सव मनाया था।
इस दिन व्रत आरंभ करने के लिए सुबह ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। मंदिर या पूजा स्थल को साफ करें और पूजा स्थल में आसन पर बैठें, फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाएं और उस पर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें। सबसे पहले भगवान गणेश और नवग्रहों की पूजा करें। व्रत का संकल्प लेकर भगवान कार्तिकेय को वस्त्र, इत्र, चंपा के फूल, आभूषण, दीप-धूप और नैवेद्य अर्पित करें। भगवान कार्तिकेय का प्रिय पुष्प चंपा है, इसलिए इस दिन को स्कंद षष्ठी, कांडा षष्ठी और चंपा षष्ठी भी कहा जाता है।
भगवान कार्तिकेय की आरती और तीन बार परिक्रमा करने के बाद 'ओम स्कन्द शिवाय नमः' मंत्र का जप करें। उसके बाद आरती का आचमन कर आसन को प्रणाम करें और प्रसाद ग्रहण करें।
 
                     
                                             
                                             
                                             
                                             
                            