क्या एसआईआर विवाद ने जमात-ए-इस्लामी हिंद के आरोपों को सही ठहराया?

सारांश
Key Takeaways
- जमात-ए-इस्लामी हिंद ने एसआईआर प्रक्रिया पर गंभीर आरोप लगाए।
- चुनाव आयोग की जिम्मेदारी अधिकतम मतदाताओं को सूची में शामिल करना है।
- भय का माहौल बनाने का आरोप लगाया गया है।
नई दिल्ली, 2 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के खिलाफ राजनीतिक दलों के साथ-साथ मुस्लिम संगठनों ने भी विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। इस संदर्भ में, जमात-ए-इस्लामी हिंद ने एसआईआर प्रक्रिया पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। संगठन के उपाध्यक्ष सलीम इंजीनियर ने यह आरोप लगाया कि एसआईआर प्रक्रिया में ईमानदारी का अभाव है।
सलीम इंजीनियर ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि एसआईआर का कार्य संवैधानिक प्रक्रिया के तहत नहीं किया जा रहा है। चुनाव आयोग की प्राथमिक जिम्मेदारी अधिकतम मतदाताओं को सूची में शामिल करना होना चाहिए, लेकिन वह मतदाताओं को सूची से हटाने पर अधिक ध्यान दे रहा है।
उन्होंने कहा, "चुनाव आयोग ने अवैध प्रवासियों और मृत वोटर्स की संख्या को शुरू से ही बताना शुरू कर दिया था। यह दर्शाता है कि चुनाव आयोग का उद्देश्य पहले से ही मतदाता सूची से नाम हटाना रहा है।"
सलीम इंजीनियर ने यह भी आरोप लगाया कि नामों को चुुनिंदा तरीके से हटाया जा रहा है। हटाए गए नामों से यह स्पष्ट है कि वे किस समुदाय के लोग हैं और कार्रवाई की नीयत क्या है।
उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग अपने दायरे से बाहर जाकर कार्य कर रहा है। यह एक तरह से एनआरसी लागू करने का प्रयास है, जिससे लोगों में भय का माहौल उत्पन्न हो रहा है।
जमात-ए-इस्लामी हिंद के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने भी एसआईआर मुद्दे पर प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा कि सरकार को स्थिर रखने के लिए मतदाता सूची में हेरफेर किया जा रहा है।
मलिक मोतसिम खान ने कहा, "बंगाली भाषा बोलना अब जुर्म बन गया है। पश्चिम बंगाल के लोग जब दूसरे राज्यों में आते हैं, तो उन्हें बांग्लादेशी करार दिया जाता है। यह उनके लिए एक प्रकार का अन्याय है। यदि वे दूसरे देश के नागरिक हैं, तो उन्हें बॉर्डर पर रोका जाना चाहिए था। यहाँ लोग 20-25 वर्षों से रह रहे हैं, और अब अचानक यह ध्यान क्यों आया कि वे अवैध हैं? यह बहुत गलत है।"