क्या सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ट्रेन विस्फोट के आरोपियों की रिहाई पर रोक लगाई?

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क्या सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ट्रेन विस्फोट के आरोपियों की रिहाई पर रोक लगाई?

सारांश

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ट्रेन विस्फोट मामले में बरी किए गए 12 आरोपियों के हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई है। हालांकि, कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इसका जेल से रिहा होने वाले आरोपियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। जानिए इस फैसले पर आरोपियों की क्या प्रतिक्रिया है और आगे की कानूनी लड़ाई कैसे चल सकती है।

Key Takeaways

  • सुप्रीम कोर्ट ने 12 आरोपियों के मामले में हाईकोर्ट के फैसले पर रोक लगाई।
  • कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस आदेश का जेल से रिहा होने वाले आरोपियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
  • आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया।
  • आरोपी वाहिद शेख ने चिंता व्यक्त की कि क्या उन्हें फिर से जेल जाना पड़ेगा।
  • आरोपी तनवीर अहमद ने न्याय मिलने की उम्मीद जताई।

मुंबई, 24 जुलाई (राष्ट्र प्रेस)। सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई ट्रेन विस्फोटों से संबंधित 12 आरोपियों को बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा बरी किए जाने के फैसले पर रोक लगाई है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का जेल से रिहा होने वाले आरोपियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। इस पर आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का स्वागत किया।

आरोपियों में से एक, वाहिद शेख ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के निर्णय के खिलाफ सरकार की याचिका दायर करने का डर था कि कहीं उन्हें वापस जेल न जाना पड़े।

वाहिद शेख ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में कहा कि रिहाई के दिन से हम सभी आरोपी खुश थे, सभी अपने परिवारों से मिल चुके थे। लेकिन, सरकार हमारी खुशी को एक दिन भी बर्दाश्त नहीं कर सकी और तुरंत सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। जब से उन्होंने याचिका दायर की, हम सभी तनाव में थे, हमें नहीं पता था कि क्या होगा। क्या हमें फिर से जेल जाना पड़ेगा? इस घटना के सभी आरोपी लगातार मेरे संपर्क में थे और मैं उन्हें आश्वस्त करता रहा। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा आया निर्णय यह बताता है कि अभी आरोपियों को जेल नहीं जाना पड़ेगा। अगर सुप्रीम कोर्ट कहता कि आरोपियों को गिरफ्तार कर लो, तो यह आश्चर्यजनक होता। बेगुनाह होते हुए 19 साल जेल में बिताने के बाद आगे की कानूनी लड़ाई कितने साल चलेगी, यह कोई नहीं बता सकता। यह बेहद दुखद है कि पुलिस ने इतने साल तक बेगुनाहों को जेल में रखा।

आरोपी तनवीर अहमद ने कहा कि शुरू से ही हमें न्याय मिलने की उम्मीद थी। हाईकोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में आरोपियों को बरी किया है। कोई भी हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकता है। सुप्रीम कोर्ट में केस जाने का मतलब है कि आज भी इंसाफ कायम है। हमें यकीन है कि सुप्रीम कोर्ट साक्ष्यों को मान्यता देगा। आतंक से पीड़ित लोगों को न्याय मिलना चाहिए।

वहीं, एक अन्य आरोपी सुहैल महमूद शेख का कहना है कि एक प्रक्रिया होती है, जिसमें दोनों पक्ष अपनी बात रखते हैं और अदालत दोनों को राहत देती है। यह एटीएस के झूठ की जीत नहीं है। उन्हें अस्थायी राहत दी गई है, बाद में सुनवाई का मौका दिया गया है, यह कोई सफलता नहीं है। सिर्फ इसलिए कि हाई कोर्ट के फैसले पर स्टे मिल गया है, इसका मतलब यह नहीं कि वे सही साबित हो गए हैं। लगभग दो दशक का समय हो गया है, जब मैं जेल गया था, तब मैं युवा था; अब मैं बूढ़ा हो गया हूं। मेरे बच्चे बड़े हो गए हैं। हमें लेकर लोगों के मन में नकारात्मक सवाल उठते हैं, लेकिन हाई कोर्ट के फैसले ने लोगों के सोचने का तरीका बदल दिया है। लोगों के बर्ताव में बदलाव आया है।

Point of View

NationPress
25/07/2025

Frequently Asked Questions

सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले पर रोक क्यों लगाई?
सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय इस कारण लिया कि मामले में और साक्ष्यों की आवश्यकता हो सकती है और यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि न्याय प्रणाली सही तरीके से कार्य करे।
क्या आरोपियों की रिहाई पर कोर्ट का फैसला असर डालेगा?
कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि इस आदेश का जेल से रिहा होने वाले आरोपियों पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या प्रतिक्रिया दी?
आरोपियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है और उन्होंने अपनी चिंता का भी इज़हार किया।
क्या हाईकोर्ट का फैसला चुनौती दी जा सकती है?
हाँ, कोई भी हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दे सकता है और यह मामला सुप्रीम कोर्ट में जा सकता है।
क्या इस मामले में आगे की कानूनी लड़ाई लंबी होगी?
आरोपियों के अनुसार, आगे की कानूनी लड़ाई कितने साल चलेगी, यह अनिश्चित है।