क्या स्वयं प्रकाश एक इंजीनियर हैं जिन्होंने प्रेमचंद की मशाल को अपने हाथों में लिया?
सारांश
Key Takeaways
- स्वयं प्रकाश ने हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- उनकी कहानियों में सामाजिक यथार्थवाद की गहरी समझ है।
- उन्होंने मजदूर आंदोलनों और वर्ग शोषण पर ध्यान केंद्रित किया है।
- उनका लेखन कभी हताशावादी नहीं रहा।
- स्वयं प्रकाश ने रचनात्मकता और विचारधारा के बीच संतुलन स्थापित किया।
नई दिल्ली, 6 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। सोचिए, एक ऐसा इंसान जो मशीन के पुर्जों और नट-बोल्टों के बीच फंसा हुआ था, जिसने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा प्राप्त की, वह हिंदी साहित्य में अपनी कहानियों के माध्यम से एक नई ‘सामाजिक इंजीनियरिंग’ का सूत्रधार बनता है। यह कहानी है स्वयं प्रकाश की।
इंदौर (मध्य प्रदेश) में जन्मे स्वयं प्रकाश का जीवन और उनकी रचनाएँ दोनों ही भौगोलिक दृष्टि से व्यापक रहीं। इंजीनियरिंग की पढ़ाई और औद्योगिक क्षेत्रों में कार्य करने के कारण उनका अधिकांश समय राजस्थान के विस्तृत और शोरगुल वाले वातावरण में बीता। यह उनके लिए केवल रोजी-रोटी का माध्यम नहीं था, बल्कि उनकी साहित्यिक दृष्टि का ‘ब्लूप्रिंट’ बन गया।
जब वे अपनी प्रमुख कहानी ‘संहारकर्ता’ में मजदूर आंदोलन के ‘अर्थवाद’ में फंसने के दुःख को व्यक्त करते हैं, तो लगता है जैसे कोई अंदरूनी व्यक्ति अपनी विफलताओं का विश्लेषण कर रहा हो। यह औद्योगिक पृष्ठभूमि उन्हें प्रेमचंद की परंपरा के उस सिरे पर खड़ा करती है, जो सामाजिक संघर्षों को केवल सैद्धांतिक नहीं, बल्कि व्यवहारिक प्रामाणिकता भी देती है।
साठोत्तरी कहानी का काल वैचारिक आग्रहों के कारण ‘सूख’ चुका था। आलोचकों ने कहा कि कहानियाँ ‘स्लोगन और निर्देशों के बोझ’ तले अपनी जीवन-रस को खो चुकी थीं। ऐसे रचनात्मक सूखे में स्वयं प्रकाश का लेखन एक हरी-भरी मरूद्यान की तरह उभरा।
उन्हें उन कहानीकारों में प्रमुख माना गया, जिन्होंने जनपक्षधरता (प्रगतिशील मूल्यों) को अपनाया, लेकिन रचनात्मकता के साथ कभी समझौता नहीं किया। उनके पास ठोस वैचारिक आधार था, फिर भी उनकी ‘किस्सागोई’ कला का क्षरण नहीं हुआ।
स्वयं प्रकाश का सृजन संसार विशाल और विविध है, लेकिन उनकी केंद्रीय पहचान एक कहानीकार की रही। उनके नौ से अधिक कहानी संग्रह प्रकाशित हुए, जिनमें ‘सूरज कब निकलेगा’, ‘आएंगे अच्छे दिन भी’, ‘आदमी जात का आदमी’ और ‘संधान’ सबसे चर्चित रहे। उनकी कहानियों की प्रासंगिकता का प्रमाण यह है कि उनका अनुवाद रूसी भाषा में भी किया गया है।
कहानी के साथ-साथ उन्होंने पांच उपन्यास भी लिखे। इनमें ‘विनय’ और ‘ईंधन’ विशेष रूप से चर्चित रहे, जो मध्यवर्गीय जीवन की जटिलताओं और सामाजिक-राजनीतिक तनावों पर केंद्रित हैं। लेकिन उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को समझने के लिए ‘हमसफरनामा’ पढ़ना आवश्यक है। यह संकलन उनके समकालीन कथाकारों, कवियों और संस्कृतिकर्मियों पर केंद्रित रेखाचित्रों का संग्रह है। यह कृति इंगित करती है कि स्वयं प्रकाश केवल एक रचनाकार नहीं थे, बल्कि एक सक्रिय ‘साहित्यिक कार्यकर्ता’ और अपने समय के कलात्मक संवाद को समझने वाले एक जागरूक साहित्यिक नेता थे। उन्होंने ‘वसुधा’ और ‘क्यों’ जैसी लघु पत्रिकाओं का संपादन भी किया।
स्वयं प्रकाश को प्रेमचंद की स्थापित सामाजिक यथार्थवादी परंपरा का एक महत्वपूर्ण और सशक्त कथाकार माना जाता है। उनकी कहानियों का मूल निम्न वर्ग के प्रति सहानुभूति, सामाजिक सरोकार और वर्ग शोषण के खिलाफ चेतना पर केंद्रित था।
उन्होंने लगातार जाति, संप्रदाय और लिंग के आधार पर होने वाले भेदभावों के खिलाफ भी प्रतिकार का स्वर उठाया।
उनकी वैचारिक प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा चमत्कार यह था कि उनका लेखन हताशावादी नहीं था। साठोत्तरी दौर की कहानियों में जहाँ खीज, ऊब और अवसाद का माहौल था, वहीं स्वयं प्रकाश की कथा दृष्टि में जीवन-जगत के प्रति एक सकारात्मक और संघर्षशील दृष्टिकोण निहित था, जो निराशा को खारिज करता था। उनका यथार्थवाद हमेशा परिवर्तन और समाधान की दिशा में अग्रसर होता था।
‘संहारकर्ता’ कहानी को जनपक्षधर धारा की आवश्यक आत्म-समीक्षा माना जाता है। यह कहानी जन आंदोलनों के आंतरिक विरोधाभासों और कमियों को उजागर करती है, जिससे वह केवल एक वैचारिक समर्थक नहीं, बल्कि चिंतनशील आलोचक बन जाती है। वहीं, ‘मेरे और कोहरे के बीच’ कहानी मध्यवर्गीय दंभ और पाखंड पर गहरी आलोचनात्मक टिप्पणी है। कहानी में एक ‘खुले दिमाग’ का पति अपनी पत्नी (जूली) के शादी से पूर्व के संबंध को जानकर तिलमिला उठता है। यह मध्यवर्गीय पाखंड का पर्दाफाश है। लेकिन स्वयं प्रकाश कहानी को यहीं खत्म नहीं करते। वे पति के भीतर व्यक्तित्वांतरण (सकारात्मक बदलाव) दिखाते हैं, और अंत में वह अपनी पत्नी को केवल एक ‘ऑब्जेक्ट’ के रूप में नहीं, बल्कि एक मनुष्य के रूप में स्वीकारता है।
अपने जीवनकाल में स्वयं प्रकाश को कथा लेखन के लिए कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें आनंद सागर कथाक्रम सम्मान (2011), राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (रंगे राघव पुरस्कार सहित), पहल सम्मान और वनमाली स्मृति पुरस्कार प्रमुख हैं।
7 दिसंबर 2019 को उनके निधन के बाद साहित्यिक जगत ने उनकी कहानियों को भारत के सामाजिक विकास में ‘जरूरी हस्तक्षेप’ बताया। एक इंजीनियर, एक संपादक और एक कथाकार के रूप में, स्वयं प्रकाश ने विचारधारा और रचनात्मकता के बीच संतुलन स्थापित करके एक ऐसी विरासत छोड़ी है, जो हिंदी साहित्य में एक सूर्य के समान प्रकाशित रहेगी।