क्या उद्धव ठाकरे ने हिंदी भाषा के खिलाफ अपनी स्थिति स्पष्ट की?

सारांश
Key Takeaways
- हिंदी भाषा पर जबरदस्ती का विरोध
- भ्रष्टाचार के आरोपों का उल्लेख
- बांग्लादेश के प्रधानमंत्री पर सवाल उठाना
- भाषाई पहचान का महत्व
- राजनीतिक संवाद में हिंदी का स्थान
मुंबई, 23 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। शिवसेना-यूबीटी के नेता उद्धव ठाकरे ने हिंदी भाषा के प्रति अपने विचार व्यक्त किए हैं। एक कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि उन्हें किसी भी भाषा या राष्ट्र के प्रति कोई विरोध नहीं है, लेकिन हिंदी को जबरदस्ती थोपने का वह विरोध करते हैं।
उद्धव ठाकरे ने कहा, "जब मैं दिल्ली गया था, तो मुझसे पूछा गया कि आप हिंदी का विरोध क्यों करते हैं? मैंने कहा, अगर प्यार से बात करेंगे, तो कोई समस्या नहीं, लेकिन जबरदस्ती नहीं चलेगी।" उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा, "एक हिंदी पत्रकार ने मुझसे सवाल पूछा और मैंने उसी की भाषा में जवाब दिया। मैंने कहा, 'क्या तुम मेरी हिंदी समझ पा रहे हो?' मुझे भी हिंदी आती है, और मैं उतनी हिंदी बोल लेता हूं जितनी ज़रूरी हो।"
उद्धव ठाकरे ने केंद्र सरकार और भाजपा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते हुए कहा, "आज जो 'महाविकास गाड़ी' और 'इंडिया गाड़ी' को भ्रष्टाचार से जोड़कर दिखाया जा रहा है, वही भ्रष्टाचार आज ये लोग बढ़ावा दे रहे हैं। जब प्रधानमंत्री महाराष्ट्र आते हैं, तो उनके चारों ओर जो लोग होते हैं, वह कोई 'कुंभ मेला' नहीं, बल्कि 'दंभ मेला' होता है।"
उद्धव ठाकरे ने कहा, "आदर्श घोटाले से लेकर 70 हजार करोड़ के घोटाले तक के आरोप पहले खुद प्रधानमंत्री ने लगाए थे, फिर वही लोग मंत्री कैसे बन गए? भ्रष्टाचारियों को आप खुद बढ़ावा दे रहे हैं।" उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों की बात करते हुए उन्होंने कहा कि जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं, उन्हें ही भाजपा सरकार में पद दिया जा रहा है।
इस दौरान, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना के भारत दौरे पर भी ठाकरे ने केंद्र सरकार की नीति पर सवाल उठाए और कहा, "आप शेख हसीना को भारत बुलाते हैं, जबकि बांग्लादेश का विरोध करते हैं। यह दोहरी नीति क्यों?"