क्या उधमपुर में मशरूम की खेती ने जोगिंदर की जिंदगी को बदल दिया?
सारांश
Key Takeaways
- मशरूम की खेती से निरंतर आय होती है।
- स्थानीय किसानों के लिए यह एक महत्वपूर्ण आय का स्रोत है।
- युवाओं को रोजगार मिलने से स्थानीय अर्थव्यवस्था में सुधार हो रहा है।
- सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर सफलता पाई जा सकती है।
- मशरूम की खेती में रुचि बढ़ रही है।
उधमपुर, 22 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। जम्मू-कश्मीर के उधमपुर में मशरूम की खेती ने लोगों की ज़िंदगी में महत्वपूर्ण बदलाव लाया है। यह एक संपर्क साधन और भरोसेमंद आय का स्रोत है, विशेषकर बेरोजगार युवाओं के लिए। इस क्षेत्र में कृषि में एक नई क्रांति का आगाज़ हो रहा है। मशरूम की खेती स्थानीय किसानों के लिए आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत बन गई है।
सही सेटअप और प्रशिक्षण के साथ, नियंत्रित मशरूम की खेती पूरे वर्ष की जा सकती है, जिससे किसानों को निरंतर आय होती है। एचएडीपी कार्यक्रम के तहत मशरूम उगाने वाले जोगिंदर की जिंदगी में बदलाव आया है।
उन्होंने राष्ट्र प्रेस से बात करते हुए अपने सफल कारोबार के बारे में विस्तार से बताया। वह इस वर्ष से मशरूम की खेती के व्यवसाय में हैं और अपनी सफलता का श्रेय सरकार की विभिन्न योजनाओं को देते हैं।
उन्हें विभाग से 1500 बैग मिले और जून के महीने में पहले ही प्रयास में लगभग 40 क्विंटल मशरूम प्राप्त हुआ। अब, वह वर्ष के अंत तक 40 क्विंटल से अधिक मशरूम देने की योजना बना रहे हैं। अगला लॉट अगस्त में लगाया गया है, जिसमें 1700 बैग लगाए गए हैं। इस बार भी 40 क्विंटल से अधिक मशरूम निकला है और उत्पादन अभी भी जारी है। उन्होंने युवाओं से मशरूम की खेती में आगे आने की अपील की है।
जोगिंदर ने अपनी यूनिट में कई महिलाओं और पुरुषों को रोजगार दिया है। मशरूम स्थानीय बाजार और मंडी में बेचा जाता है, और वह प्रतिदिन तीन क्विंटल मशरूम मंडी में भेजते हैं।
उन्होंने कहा, "मैंने अपने प्लांट में कई लोगों को रोजगार दिया है। इससे स्थानीय लोग आर्थिक रूप से सशक्त हो रहे हैं।"
मशरूम विकास अधिकारी विनोद गुप्ता ने राष्ट्र प्रेस से बातचीत में बताया कि मशरूम की खेती से रोजगार बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इससे अन्य लोग भी मशरूम की खेती में रुचि ले रहे हैं। जोगिंदर की प्रेरणा से कई लोग अपने घर पर 100 से 200 बैग लगाने लगे हैं।