क्या यूपीएसआईएफएस लैब अगली पीढ़ी के ड्रोन तैयार कर रही है?

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क्या यूपीएसआईएफएस लैब अगली पीढ़ी के ड्रोन तैयार कर रही है?

सारांश

उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस की फॉरेंसिक एआई एंड रोबोटिक लैब ड्रोन तकनीक में नवाचार का एक महत्वपूर्ण केंद्र बन चुकी है। यहाँ विभिन्न प्रकार के ड्रोन बनाए जा रहे हैं, जो न केवल सुरक्षा में बल्कि कृषि और आपातकालीन सेवाओं में भी सहायक साबित हो रहे हैं।

Key Takeaways

  • अगली पीढ़ी के ड्रोन तैयार करना यूपीएसआईएफएस की प्राथमिकता है।
  • स्पाई और हैवी लिफ्टिंग ड्रोन कृषि और मेडिकल सेवाओं में सहायक हैं।
  • ड्रोन तकनीक आत्मनिर्भरता की दिशा में महत्वपूर्ण है।
  • प्रदूषण और ट्रैफिक के समाधान में ड्रोन का योगदान।
  • ड्रोनमैन मिलिंदराज की विशेष भूमिका

लखनऊ, 20 अगस्त (राष्ट्र प्रेस)। भारत-पाकिस्तान सीमा पर हालिया तनाव के दौरान ड्रोन तकनीक ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के स्वदेशी विकसित ड्रोन ने न केवल सीमा पर निगरानी और जवाबी कार्रवाई में महत्वपूर्ण योगदान दिया, बल्कि अब यह रोजमर्रा की जिंदगी में भी तेजी से प्रवेश कर रहे हैं। ऑनलाइन डिलीवरी, मेडिकल इमरजेंसी, कृषि और लॉजिस्टिक कार्यों में ड्रोन का उपयोग नई ऊंचाइयों पर पहुंच रहा है।

उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेंसिक साइंस (यूपीएसआईएफएस) की फॉरेंसिक एआई एंड रोबोटिक लैब इस क्षेत्र में नवाचार की एक मिसाल बन चुकी है। यह सरकारी लैब विभिन्न प्रकार के रोबोटिक और ड्रोन प्रोजेक्ट्स के लिए एक केंद्र बन गई है।

यहां दुश्मन देशों के ड्रोन का विश्लेषण किया जाता है, जिससे उनकी तकनीक और उड़ान नियंत्रक का अध्ययन कर उनकी कुंडली तैयार की जाती है। इसे तैयार करने में 'ड्रोनमैन' के नाम से मशहूर मिलिंदराज की अहम भूमिका रही है।

मिलिंद राज ने राष्ट्र प्रेस को बताया कि लैब में 'तरकश' प्रोजेक्ट के तहत स्पाई ड्रोन से लेकर हैवी लिफ्टिंग ड्रोन तक तैयार किए जा रहे हैं। स्पाई ड्रोन नाइट विजन तकनीक से लैस हैं और कमरे के अंदर लोगों और वस्तुओं का पता लगाने में सक्षम हैं। हैवी लिफ्टिंग ड्रोन 30-35 किलो तक सामान ढो सकते हैं और 10 किलोमीटर तक दूरी तय कर सकते हैं, जिससे मेडिकल सहायता, आपातकालीन डिलीवरी और कृषि कार्यों में तेजी लाई जा सकती है।

उन्होंने बताया कि इस तकनीक से ट्रैफिक और प्रदूषण की समस्याओं को कम करने में भी मदद मिल रही है। कृषि में ड्रोन के माध्यम से कीटनाशक, खाद और दवाओं का छिड़काव मिनटों में संभव हो गया है। सीमा की सुरक्षा के लिए यह तकनीक अत्यंत कारगर साबित हो रही है।

मिलिंद राज ने कहा कि भारत ड्रोन तकनीक में लगातार आत्मनिर्भर बन रहा है और उत्तर प्रदेश इस दिशा में तेजी से अग्रणी भूमिका निभा रहा है। उन्होंने यह गौरव भी साझा किया कि उन्हें पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने 23 दिसंबर 2014 को 'ड्रोनमैन' का खिताब दिया था, जो भारत के तकनीकी विकास और आत्मनिर्भरता की कहानी का प्रतीक है।

Point of View

यह देखना महत्वपूर्ण है कि कैसे यूपीएसआईएफएस की पहल भारतीय तकनीकी विकास में एक नई लहर ला रही है। ड्रोन तकनीक न केवल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह कृषि और चिकित्सा में भी हमारे समाज की आवश्यकताओं को पूरा कर रही है। यह तकनीक भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
NationPress
23/08/2025

Frequently Asked Questions

यूपीएसआईएफएस की लैब में कौन-कौन से ड्रोन विकसित किए जा रहे हैं?
यूपीएसआईएफएस की लैब में स्पाई ड्रोन, हैवी लिफ्टिंग ड्रोन आदि विकसित किए जा रहे हैं।
ड्रोन तकनीक का कृषि में क्या उपयोग है?
ड्रोन का उपयोग कीटनाशक, खाद और दवाओं के छिड़काव में किया जा रहा है, जिससे काम तेजी से होता है।
ड्रोन तकनीक से प्रदूषण कम करने में कैसे मदद मिल रही है?
ड्रोन का उपयोग परिवहन में सुधार और प्रदूषण की समस्याओं को कम करने में सहायक है।