क्या उत्तराखंड के बागेश्वर में उद्यमशाला योजना ने युवाओं और महिलाओं को नई उम्मीद दी?
सारांश
Key Takeaways
- उद्यमशाला योजना ग्रामीण युवाओं और महिलाओं को आत्मनिर्भरता की दिशा में प्रोत्साहित कर रही है।
- युवाओं को स्थानीय उत्पादों की प्रोसेसिंग में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।
- बागेश्वर में बायर-सेलर सम्मेलन आयोजित किया गया है।
- इस योजना से 5,000 किसान जुड़े हुए हैं।
- मुख्यमंत्री की पहल से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त किया जा रहा है।
बागेश्वर, 10 नवंबर (राष्ट्र प्रेस)। उत्तराखंड के पर्वतीय जिले बागेश्वर में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की महत्वाकांक्षी उद्यमशाला योजना अब ग्रामीण युवाओं और महिलाओं के लिए आत्मनिर्भरता की एक नई उदाहरण बन रही है। प्रदेश सरकार की यह योजना ग्राम विकास विभाग के रीप (रूरल एंटरप्रेन्योरशिप एंड एंटरप्राइज प्रोग्राम) के माध्यम से संचालित की जा रही है, जिसका उद्देश्य पहाड़ के युवाओं को स्वरोजगार और स्थानीय उद्योगों से जोड़ना है।
इस योजना के अंतर्गत युवाओं को प्रशिक्षण देकर स्थानीय उत्पादों की प्रोसेसिंग, हस्तशिल्प और खाद्य प्रसंस्करण जैसे क्षेत्रों में काम करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। बागेश्वर जिले के विभिन्न ब्लॉकों में अब कई युवा अपने गांव में छोटे उद्योग चला रहे हैं और सफलता की नई कहानियां लिख रहे हैं।
ग्राम विकास विभाग ने हाल ही में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया, जिसमें विशेषज्ञों ने उद्यमियों को उत्पाद निर्माण, विपणन और ब्रांडिंग के व्यावहारिक पहलुओं की जानकारी दी।
उद्यमशाला योजना के मैनेजर विनोद ने राष्ट्र प्रेस से विशेष बातचीत में बताया कि योजना का मुख्य उद्देश्य यह है कि क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे को पहचान सकें। इसी दिशा में बायर-सेलर सम्मेलन आयोजित किया गया। पिछले साल इस सम्मेलन से करीब पांच एमओयू हुए थे, जिनसे खासतौर पर महिलाओं को लाभ मिला और उनके उत्पादों को बेहतर बाजार मिला।
चौखुटिया के लाभार्थी गोविंद रावत ने कहा कि हमने शून्य से शुरुआत की थी और आज हमारे पास 15 काम करने वाले हैं। हमारे साथ करीब 5,000 किसान जुड़े हैं जो हमें बड़े पैमाने पर उत्पाद देते हैं, जिन्हें हम पूरे भारत में सप्लाई करते हैं। इस योजना से हमें कई खरीददार मिले हैं, जिससे हमारा कारोबार बढ़ा है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की यह पहल ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त कर रही है और पलायन को रोकने की दिशा में भी अहम भूमिका निभा रही है। पहाड़ के युवाओं में अब यह विश्वास बढ़ रहा है कि रोजगार की संभावनाएं शहरों में नहीं, बल्कि उनके अपने गांवों में भी मौजूद हैं।