क्या विक्रम साराभाई वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने भारत को अंतरिक्ष में उड़ना सिखाया?
सारांश
Key Takeaways
- विक्रम साराभाई ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उन्होंने आर्यभट्ट सैटेलाइट का निर्माण किया।
- साराभाई का दृष्टिकोण देश की समस्याओं के समाधान के लिए तकनीक का उपयोग करना था।
- उन्होंने 'लीपफ्रॉगिंग' सिद्धांत को प्रस्तुत किया।
- उनकी प्रेरणादायक कहानी हमें संघर्ष और मेहनत की प्रेरणा देती है।
नई दिल्ली, 29 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। केरल के थुंबा का वह शांत तट और ‘सेंट मैरी मैगडालीन’ चर्च की पुरानी इमारत, अब यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान के पवित्र मंदिर के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुकी है। 1960 के दशक में यहां का दृश्य अद्भुत था। एक बिशप ने देश के वैज्ञानिक सपने के लिए अपना चर्च और निवास खाली कर दिया था। वहां अत्याधुनिक प्रयोगशाला नहीं थी। वैज्ञानिकों ने पादरी के घर को दफ्तर बनाया और रॉकेट के हिस्सों को साइकिल के पीछे लादकर लॉन्चपैड तक पहुंचाया।
उस भीड़ के बीच एक लंबा, शालीन व्यक्ति, जो स्वयं वैज्ञानिकों के साथ रॉकेट के भारी पुर्जों को धक्का दे रहा था, वह डॉ. विक्रम अंबालाल साराभाई थे। वह व्यक्ति जिसने दुनिया को यह दिखा दिया कि ऊंची उड़ान के लिए महंगे लॉन्चपैड की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि एक अटूट दृष्टि की आवश्यकता होती है।
विक्रम साराभाई का जन्म १२ अगस्त १९१९ को अहमदाबाद में हुआ। उनके पिता, अंबालाल साराभाई एक उद्योगपति थे और गुजरात में उनकी कई मिलें थीं। विक्रम साराभाई, अंबालाल और सरला देवी के आठ बच्चों में से एक थे। उनका मन हमेशा तारों और ब्रह्मांड के रहस्यों में रमता था। कैंब्रिज से प्राकृतिक विज्ञान में शिक्षा पूरी करने के बाद, जब वे भारत लौटे, तो उनकी मुलाकात सीवी रमन और होमी जहांगीर भाभा से हुई। यहीं से 'कॉस्मिक किरणों' के प्रति उनके जुनून ने भारत के वैज्ञानिक पुनर्जागरण की नींव रखी।
उन्होंने मात्र २८ वर्ष की आयु में 'भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला' (आरपीएल) की स्थापना की। आज जो आईआईएम अहमदाबाद विश्व भर में अपनी धाक जमाए हुए है, वह साराभाई का विजन है। उन्होंने कपड़ा उद्योग से लेकर कला के क्षेत्र में अपनी छाप छोड़ी।
जब 1960 के दशक में साराभाई ने अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात की, तो दुनिया ने उन पर तंज कसा। आलोचकों ने कहा, "गरीब और भूखे भारत को रॉकेट की क्या आवश्यकता?" साराभाई ने बड़ी शालीनता से उत्तर दिया, "हम चांद या ग्रहों की दौड़ में किसी से प्रतिस्पर्धा नहीं कर रहे, बल्कि हम तकनीक का उपयोग आम भारतीय की समस्याओं को हल करने के लिए करना चाहते हैं।"
उन्होंने 'लीपफ्रॉगिंग' का सिद्धांत दिया, जिसका अर्थ था कि भारत को पश्चिमी देशों के पुराने चरणों को दोहराने की बजाय सीधे अत्याधुनिक तकनीक को अपनाना चाहिए। उन्होंने नासा के साथ मिलकर 'साईट' (सैटेलाइट अनुदेशात्मक टेलीविजन प्रयोग) की योजना बनाई, जिसने भारत के दूर-दराज के गांवों तक टीवी के माध्यम से शिक्षा और कृषि की जानकारी पहुंचाने का मार्ग प्रशस्त किया।
डॉ. साराभाई ने एक भारतीय सैटेलाइट बनाने और लॉन्च करने का प्रोजेक्ट शुरू किया, जिसके फलस्वरूप, पहला भारतीय सैटेलाइट, आर्यभट्ट, १९७५ में एक रूसी कॉस्मोड्रोम से ऑर्बिट में स्थापित किया गया।
इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (इसरो) की स्थापना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी। उन्होंने भारत जैसे विकासशील देश के लिए स्पेस प्रोग्राम के महत्व को सरकार को सफलतापूर्वक समझाया।
३० दिसंबर १९७१ की वह रात आज भी भारतीय विज्ञान के इतिहास में एक काले साए की तरह है। थुंबा में रॉकेट लॉन्च की समीक्षा करने के बाद, वे कोवलम के 'हैलिसन कैसल' होटल में विश्राम करने गए। अगली सुबह, भारत का यह महान सपूत अपने बिस्तर पर मात्र ५२ वर्ष की आयु में मृत पाया गया। उनकी इस अचानक मृत्यु ने सबको झकझोर कर रख दिया था।