क्या यागंती उमा महेश्वर मंदिर में नंदी महाराज का आकार बढ़ता है?
सारांश
Key Takeaways
- यागंती उमा महेश्वर मंदिर में नंदी महाराज का आकार बढ़ता है।
- यह मंदिर महर्षि अगस्त्य से जुड़ा हुआ है।
- मंदिर के आस-पास कई प्राचीन गुफाएँ हैं।
- यहाँ कौवे नहीं आते हैं, जो इसके विशेषता है।
- नंदी महाराज कलयुग का प्रतीक माना जाता है।
नई दिल्ली, 30 अक्टूबर (राष्ट्र प्रेस)। भारत में कई रहस्यमयी मंदिर हैं, जिनकी पौराणिक कथाएँ और चमत्कार भक्तों को आकर्षित करते हैं। कलयुग में भगवान शिव और नंदी महाराज का एक ऐसा मंदिर है, जहाँ पत्थर से बने नंदी महाराज का आकार लगातार बढ़ता है।
यह सुनकर आपको आश्चर्य हो सकता है, लेकिन यह सच है। यह रहस्यमयी मंदिर आंध्र प्रदेश में है, जहाँ भक्त अपनी इच्छाओं के साथ आते हैं।
यागंती उमा महेश्वर मंदिर आंध्र प्रदेश के कुरनूल जिले में स्थित है, जो विजयवाड़ा से 359 किमी और हैदराबाद से 308 किमी दूर है। इस मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है, जो महर्षि अगस्त्य से जुड़ा हुआ है।
कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 15वीं शताब्दी में संगम वंश के राजा हरिहर बुक्का राय द्वारा करवाया गया था। मंदिर की बनावट और दीवारों पर पल्लव और चोल वंश की नक्काशी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। मंदिर के आस-पास कई गुफाएँ भी हैं, जहाँ ऋषियों और मुनियों ने तपस्या की थी। यह माना जाता है कि इन गुफाओं में बड़े महाऋषियों ने सिद्धि प्राप्त की थी, और भक्त इन पवित्र गुफाओं का दर्शन करने दूर-दूर से आते हैं।
गुफाओं के अलावा, मंदिर में स्थित नंदी महाराज भी एक रहस्य बने हुए हैं। कहा जाता है कि नंदी महाराज की पत्थर की आकृति हर 20 वर्ष में एक इंच बढ़ती है, और इसके साथ ही नंदी महाराज के आस-पास के खंभों को हटाना पड़ता है। मान्यता है कि नंदी महाराज कलयुग का प्रतीक हैं, और जब कलयुग समाप्त होगा, तब नंदी महाराज की प्रतिमा जीवित हो जाएगी। इसे रंका भी कहते हैं, जो कलयुग में जीवित नंदी महाराज से संबंधित है।
यदि हम मंदिर के इतिहास में झाँकें, तो इसे महर्षि अगस्त्य से जोड़ा जाता है। यहाँ महर्षि अगस्त्य ने तपस्या की थी और भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर बनाने की इच्छा व्यक्त की थी, लेकिन जब वेंकटेश्वर के मंदिर की स्थापना की गई, तो प्रतिमा का अंगूठा टूट गया। तब भगवान शिव ने महर्षि अगस्त्य को संकेत दिया कि वे यहाँ अपना कैलाश स्वरूप मंदिर बनाएं।
इस मंदिर की एक विशेषता यह है कि यहाँ कौवे नहीं आते। माना जाता है कि जब महर्षि अगस्त्य तपस्या में लीन थे, तब कौवे ने उनकी तपस्या को भंग करने की कोशिश की थी, जिसके बाद अगस्त्य ने कौवों को शाप दिया, और तभी से मंदिर या उसके आस-पास कौवे नहीं देखे जाते।