क्या यामिनी कृष्णमूर्ति का जीवन नटराज की मूर्तियों से प्रेरित था?
सारांश
Key Takeaways
- यामिनी कृष्णमूर्ति का नृत्य कला में अद्वितीय योगदान है।
- उन्होंने भरतनाट्यम, कुचिपुड़ी और ओडिसी में महारत हासिल की।
- उनका जीवन नटराज की मूर्तियों से प्रेरित था।
- उन्हें कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार मिले।
- यामिनी ने युवा नृत्यांगनों को प्रशिक्षित किया।
नई दिल्ली, 19 दिसंबर (राष्ट्र प्रेस)। भारतीय शास्त्रीय नृत्य की दुनिया में भरतनाट्यम और कुचिपुड़ी की प्रसिद्ध नृत्यांगना यामिनी कृष्णमूर्ति ने अपनी कला के माध्यम से सांस्कृतिक परिदृश्य पर एक गहरी छाप छोड़ी।
यामिनी कृष्णमूर्ति का जन्म 20 दिसंबर 1940 को आंध्र प्रदेश के मदनापल्ली में हुआ था। उनका नृत्य के प्रति समर्पण अद्वितीय था, उन्होंने मात्र पांच वर्ष की आयु में चेन्नई के प्रख्यात कलाक्षेत्र नृत्य विद्यालय में प्रसिद्ध नृत्यांगना रुक्मिणी देवी अरुंडेल के मार्गदर्शन में भरतनाट्यम सीखना आरंभ किया।
यामिनी का जीवन नटराज की मूर्तियों से प्रेरित था। चिदंबरम जैसे मंदिरों से घिरे शहर में पली-बढ़ीं यामिनी ने बचपन से ही मंदिरों की दीवारों पर उकेरे गए करणों और नटराज की विभिन्न मुद्राओं से गहरी प्रेरणा ली। इसके बाद उन्होंने नृत्य को अपने जीवन का आधार बनाया और अपनी साधना से इसे नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
उनके पिता एम. कृष्णमूर्ति संस्कृत के विद्वान थे। उन्होंने अपनी बेटी की नृत्य में रुचि को देखकर अपने करियर का त्याग कर उसे समर्थन दिया।
पिता के त्याग को यामिनी ने कमजोर नहीं होने दिया और भरतनाट्यम के अलावा कुचिपुड़ी और ओडिसी में भी महारत हासिल की। उन्होंने वेदांतम लक्ष्मीनारायण शास्त्री, चिंता कृष्णमूर्ति, पसुमर्थी वेणु गोपाल शर्मा और वेदांतम सत्यनारायण शर्मा जैसे गुरुओं से कुचिपुड़ी सीखा।
वहीं, ओडिसी का प्रशिक्षण पंकज चरण दास और केलुचरण महापात्र से प्राप्त किया। मात्र 17 वर्ष की आयु में 1957 में उन्होंने चेन्नई में अपना पहला एकल प्रदर्शन किया, जो उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। इसके बाद उन्होंने देश-विदेश में अनगिनत प्रस्तुतियां दीं और भारतीय शास्त्रीय नृत्य को वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय बनाया।
उनकी कला को कई बड़े सम्मान मिले। वर्ष 1968 में उन्हें पद्म श्री, 2001 में पद्म भूषण और 2016 में पद्म विभूषण से नवाजा गया। इसके अलावा उन्हें संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड और तिरुमला तिरुपति देवस्थानम की 'अस्थाना नर्तकी' की उपाधि भी मिली।
यामिनी ने 1995 में रेणुका खांडेकर के साथ मिलकर अपनी आत्मकथा 'ए पैशन फॉर डांस' लिखी, जिसमें नृत्य के प्रति उनके जुनून, चुनौतियों और सफलताओं की कहानी है। जीवन के अंतिम वर्षों में वह नई दिल्ली में रहती थीं और डांस स्कूल चलाकर नई पीढ़ी को नृत्य सिखाती थीं।