क्या डॉ. के.के. अग्रवाल भारत में 'क्लॉट बस्टर' और 'कलर डॉपलर' के जनक हैं?

सारांश
Key Takeaways
- डॉ. के.के. अग्रवाल का जन्म 5 सितंबर 1958 को हुआ।
- उन्होंने 1984 में क्लॉट बस्टर्स का उपयोग शुरू किया।
- उन्होंने 2010 में पद्म श्री पुरस्कार प्राप्त किया।
- डॉ. अग्रवाल ने चिकित्सा शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- उनका निधन 17 मई 2021 को हुआ।
नई दिल्ली, 4 सितंबर (राष्ट्र प्रेस)। जब भारत के प्रख्यात चिकित्सकों का उल्लेख किया जाता है, तो डॉ. कृष्ण कुमार अग्रवाल (के.के. अग्रवाल) का नाम सबसे पहले आता है। उन्होंने अपने अद्वितीय योगदान से चिकित्सा क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं। डॉ. अग्रवाल ने न केवल हृदय रोगों के इलाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि चिकित्सा जागरूकता और शिक्षा के प्रचार में भी उल्लेखनीय कार्य किए हैं।
5 सितंबर 1958 को नई दिल्ली में जन्मे डॉ. के.के. अग्रवाल ने 1979 में नागपुर विश्वविद्यालय से एमबीबीएस और 1983 में महात्मा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज से एमडी की डिग्री हासिल की। वे नई दिल्ली के मूलचंद मेडसिटी में 2017 तक वरिष्ठ सलाहकार के रूप में कार्यरत रहे।
महात्मा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के अनुसार, डॉ. अग्रवाल ने 1984 में भारत में पहली बार तीव्र मायोकार्डियल इन्फ्रक्शन (हार्ट अटैक) के मरीजों में क्लॉट बस्टर्स का उपयोग शुरू किया। 1987 में, उन्होंने उत्तर भारत में कलर डॉपलर इकोकार्डियोग्राफी की शुरुआत की। वे हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष और मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के मानद सचिव-जनरल रहे। उन्होंने भारतीय चिकित्सा संघ (आईएमए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष (2016-17) के रूप में भी कार्य किया।
डॉ. के.के. अग्रवाल ने चिकित्सा शिक्षा को न केवल नया मोड़ दिया, बल्कि उन्होंने दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फार्मास्युटिकल साइंसेज एंड रिसर्च में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में भी पढ़ाया। उन्होंने एलोवेद सहित कई पुस्तकें लिखीं, जिनमें आयुर्वेद और योग को आधुनिक चिकित्सा से जोड़ा गया। उनकी 129 से अधिक शोध पत्रिकाएं, जैसे 'द अमेरिकन जर्नल ऑफ कार्डियोलॉजी' और 'इंडियन हार्ट जर्नल,' में प्रकाशित हुईं।
इसके अतिरिक्त, अग्रवाल ने सबसे ज्यादा लोगों को हैंड्स-ओनली सीपीआर (कार्डियोपल्मोनरी रिससिटेशन) तकनीक सिखाने का लिम्का बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकॉर्ड भी बनाया। महामारी के दौरान, उन्होंने सोशल मीडिया और यूट्यूब के माध्यम से कोविड-19 से संबंधित मिथकों को दूर करने और लोगों को शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। अपने अंतिम दिनों में भी वे वेंटिलेटर पर रहते हुए वीडियो के माध्यम से जनता को जागरूक करते रहे।
चिकित्सा क्षेत्र में उनके योगदान के लिए 2010 में सरकार ने उन्हें पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया। दुर्भाग्यवश, 17 मई 2021 को, नई दिल्ली के एम्स में कोविड-19 से लंबी लड़ाई के बाद 62 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उनके निधन से चिकित्सा जगत को अपूरणीय क्षति हुई, लेकिन उनकी शिक्षाएं और कार्य आज भी लाखों लोगों को प्रेरित करते हैं।